
कविताएँ:: सौरभ राय थोड़ा आसमान में हवाई जहाज देखकर बचपन की उमंग याद करूँगा और डरूंगा भी थोड़ा कहीं बम तो नहीं बरसा देंगे बादल गरजेंगे उन्हें सुनूंगा पानी बरसेगा उसमें अधनंगा होकर नाचूंगा जहाँ लगी होगी चोट वहीं बार बार ठुकवाऊंगा इसी से दर्द की बनी रहेगी याद जिन्होंने सबसे अधिक अवहेलना की टिकट खरीदकर मिलने जाऊंगा उनसे देखता रहूँगा दरवाज़े पर खड़ा किसी लम्बी ट्रेन को गुज़रते जिन लोगों ने मुझे धकियाया था...