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हम एक ही दृश्य के दो बिम्ब हैं

कविताएँ:: सौरभ राय थोड़ा आसमान में हवाई जहाज देखकर बचपन की उमंग याद करूँगा और डरूंगा भी थोड़ा कहीं बम तो नहीं बरसा देंगे बादल गरजेंगे उन्हें सुनूंगा पानी बरसेगा उसमें अधनंगा होकर नाचूंगा जहाँ लगी होगी चोट वहीं बार बार ठुकवाऊंगा इसी से दर्द की बनी रहेगी याद जिन्होंने सबसे अधिक अवहेलना की टिकट खरीदकर मिलने जाऊंगा उनसे देखता रहूँगा दरवाज़े पर खड़ा किसी लम्बी ट्रेन को गुज़रते जिन लोगों ने मुझे धकियाया था...

सत्रह की उम्र में कौन गम्भीर होता है. 

कविता :: आर्थर रिम्बौ अनुवाद एवं प्रस्तुति : अंचित आर्थर रिम्बौ विश्व कविता का जाना पहचाना नाम हैं. फ़्रेंच में लिखने वाले रिम्बौ ने पच्चीस की उम्र के बाद कविता नहीं लिखी और ग़ुलामों के व्यापार में लग गए. उनके बाद आने वाले कई यूरोपियन कवियों पर उनका प्रभाव साफ देखा जा सकता है. मेरे लिए रिम्बौ प्रथम अनुभवों और सहज जुनूनी प्रेम के कवि हैं. उनकी कविता का कैरेक्टर वही है जिसमें देह अपनी सम्पूर्णता...

Marquez and One hundred Years of Solitude – travelling into memory.

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Book Review :: Smriti Choudhary In an interview in 1991, when asked where did the urge to write come from, Gabriel Garcia Marquez answered “I think it all comes from nostalgia”. Nostalgia is what fills the voids inside you while reading One Hundred Years of Solitude, nostalgia for the fantastic world that Marquez builds. Macondo is a mythical village, the more you read about it, the more you want...

Invisible Cities :A Dream Spread Out in Around 150 Pages

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BOOK review:: Invisible Cities by Italo Calvino : Smriti Choudhary “Of all tasks, describing the contents of a book is the most difficult and in the case of a marvellous invention like Invisible Cities, perfectly irrelevant” – Gore Vidal Italo Calvino’s Invisible Cities is a dream spread out in around 150 pages. I call it a dream because just like a dream, the book is far removed from...

आखिर कल्पों बाद कौन सिखाता है चुम्बन की विधा

कविताएँ :: ज्योति शोभा निर्गुण का राग अत्यधिक दूरी है कलकत्ते से उसके शहर की इसलिए वह भेजता है मेघ , काले और घने जैसे उसके रोम है वक्षों पर. मैं यह बात साफ़ कहती हूँ उसके दूत से , दुनिया को छलने में निपुण हुए हैं कवि कैसे होगा वह , जो लिखना नहीं जानता एक शब्द भी. निर्गुण का राग ऐसा होता है जिसे वही सुनता है जो उबर आया हो प्रेम के जल से. मुझे भय करना चाहिए फिर कुछ दिवस से रात्रि भर बोलते हैं स्वप्न...

सितारों की गिनती करना असम्भव कार्य नहीं है

प्रतिसंसार :: आदित्य शुक्ल मूलभूत प्रस्ताव: हम सबके पास सत्य है इसीलिए किसी के पास सत्य नहीं है. जब भी कोई विमर्श शुरू होता है वह इसी मूलभूत मान्यता से अस्तित्व में आता है कि वह आपको सत्य तक पहुंचा देगा. दुनिया की सभी भाषाओं, सभ्यताओं ने अपने-अपने समय में अपने-अपने तरीके से सत्य का अन्वेषण किया है. अगर हम अपना विमर्श भी सत्य-केन्द्रित रखेंगे तो हमारा भी वही हश्र होगा जो दूसरी भाषाओं और सभ्यताओं...

आते हुए साल की पूर्व संध्या पर

ख़त :: प्रिय पाठक मुख्य विमर्श यह है कि देश में फ़ासीवाद है. यह बात खुल कर 2018 में स्थापित हो गयी, जो ढँका छिपा था वह बार-बार सुनियोजित घटनाओं से ज़ाहिर होता रहा है. फ़ासीवाद क्यों है, यह भी सोचा जाना चाहिए, सोचा जा रहा है. कई बार मुझको लगता है कि देश में जो घट रहा है और जो षड्यंत्र राजनीतिक दल, बड़े व्यापारी और नीति निर्धारक कर रहे हैं, सब सीधा-सीधा थ्योरी की क्लास से निकल बाहर आ रहा है और इतनी...

दूसरी चिठ्ठी : सब दृश्य रैंडम है

प्रतिसंसार :: आदित्य शुक्ल [प्रियंबदा प्रिय.] ______________ इमराना कहती थी कि सब एक न एक दिन बिछड़ जाते हैं. एक दिन मैं उसपर चिढ़ गया. वीरू तो बचपन का दोस्त है, सब बिछड़ जाएं वो न बिछड़ेगा. कुछ दिन पहले वीरू की चाची का कैंसर से देहांत हो गया. वीरू शहर छोड़कर चला गया. पर वह बिछड़ा तो नहीं न, पर क्या जाने कल का. फिर भी मैं इमराना की बात को पूरा सच नहीं मानता. हम सब एक समानांतर विश्व में जीते हैं. एक ही...