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मैं नहीं चाहता मृत्यु का आदिम बोध

कविताएँ :: तनुज यदि कोई विचार आपको कन्विन्स करता है तो हो जाइए : शशि प्रकाश यदि कोई प्यार तुम्हें बहुत दिनों तक सालता जा रहा है, तो बहुत इन्तज़ार करते हुए बड़े फैसले लेने में कोई देरी नहीं करनी चाहिए यदि कोई अख़बार का पन्ना बहका रहा है तुम्हें अपने कर्त्तव्य-बोध और निष्ठा के प्रति तो बात करनी चाहिए मनुष्यता के उस गुप्तचर से जिसे शहर के नुक्कड़ों में पाया तुमने तुम तक वह ख़बर पहुँचाते हुए कोई बस्ती की...

कितनी बार स्वयं चलकर आएगा प्रेम

नए पत्ते कविताएँ :: अपूर्वा श्रीवास्तव कई सदियों की उदासी पीढ़ी दर पीढ़ी उतरती है उदासी स्त्रियों के भीतर जिम्मेदारियाँ सौंपते हुए पुरखिनें सौंप देती हैं अपने हिस्से की उदासी भी जैसे उन्हें सौंपा गया होगा कभी जिसे ढोते वे बनती गईं वह जो होना उनके होने में कभी नहीं था शामिल मेरे भीतर भी बैठी है कई सदियों की उदासी जिसे साझा करती हूँ मैं कविताओं संग कागज़ सोख लेता है उसे और शब्द लगा लेते हैं गले...

इस क्रूर, पूँजीवादी समाज के सवाल तक

नए पत्ते :: कविताएँ : सार्थक दीक्षित राष्ट्रीय प्रवक्ता  वो सबसे अधिक जानकारी रखने वाले लोग थे उन्हें मालूम थीं सबसे बेहतर और अधिक तकनीकें जिनसे वो कर सकते थे प्रधानसेवक के सेवा-भाव का बचाव उनके शब्दकोश में थे सबसे अधिक नफरती शब्द वो संविधान के अनुच्छेद ’19’ के असली झंडाबरदार थे जो जहाँ जी आता वो बोल देते ‘मार डालना’, ‘काट डालना’ थे उनके लिए आम शब्द जो समाचार...

प्रेम स्मृतियों का बैकअप है

नए पत्ते :: कविताएँ : केतन यादव बैकअप स्मृतियाँ तुम्हारे प्रेम की क्षतिपूर्ति स्वरूप मिलीं जो तुम्हारे होने का भ्रम बनाए रखती हैं सदा। बाँट लेता हूँ  तुम्हारी अनुपस्थिति फेसबुक, इंस्टाग्राम से हर स्क्रोल में दिख जाता है हमारा साथ बिखरा पड़ा रील्स दर रील्स मोबाइल के की-पैड पहचानते हैं तुम्हारा नाम एक अक्षर टाइप होते ही पहुँचा देते हैं संवाद के आख़िरी शब्द तक, जिसे यह सदी कहती है ऑटोसजेशन वह...

समय कविताओं को जीवित रखता है

नए पत्ते :: कविताएँ : नीरज वसंत अभागों को प्रेम होता है— पतझड़ में उनकी ओर ईश्वर लौटते हैं‌ हाथ में फूल लिए तो वसंत आता है। निवेदन जिनके हिस्से में मॉं नहीं हैं हे ईश्वर! तुम उनको मुझसे ज्यादा ही देना ज्यादा भी सम्भवतः भर पाए उनका खालीपन। सोचना जरूर दो फूलों को कुचलते हुए अगर मैं तुम तक पहुँचता हूँ तो तुम मुझे तुरन्त अस्वीकार कर देना दो फूलों के साथ अगर मैं तुम तक पहुँचता हूँ तो तुम मुझे स्वीकार...

तुम्हारे साथ के कारण शब्द आ गए हैं मेरे पास

नए पत्ते :: कविताएँ : अनिकेत कुमार मौन और तुम्हारे शब्द का साथ रात हो चुकी है, मन शांत हैं मेरा, आवाज नहीं आ रही आस पास, शायद मन तुम्हारी आवाज का इंतजार कर रहा। शायद मन तुम्हारी खुसफुसाहट का इंतजार कर रहा। सर्दी की रात है, शायद मन तुम्हारी स्पर्श की गर्माहट का इंतजार कर रहा। होठों के स्पर्श में ठंडक होती है, पर मन सर्दी भूल कर उस ठंडक को पा लेना चाहता है। तुम हो शायद आस पास, पर बिलकुल मौन है मेरा...

बन अचल हिमवान रे मन

कविता-भित्ति :: सोहनलाल द्विवेदी सोहनलाल द्विवेदी ( २२ फरवरी, १९०६ – १ मार्च १९८८ ) का जन्म फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) के बिंदकी गाँव में हुआ था। उनकी रचनाएँ देशप्रेम की ओजस्विता के लिए जानी हैं और महात्मा गाँधी पर केंद्रित उनकी कई भावपूर्ण रचनाएँ अत्यंत प्रशंसनीय हैं। वह जन-सरोकार और स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय रहनेवाले कवि थे। उनकी कविता-शैली सहज और मर्मस्पर्शी होने के साथ ही, गाँधीजी के...

भूलने की चाह में मन की दिशा बदल जाती है

कविताएँ :: शंकरानंद याद के लिए भूलने के लिए किसी को बताना नहीं पड़ता भूलने की चाह में मन की दिशा बदल जाती है दूसरे गैरजरूरी काम याद आ जाते हैं कोई पुरानी किताब ध्यान खींच लेती है कोई जंगली फूल एकाएक अच्छा लगने लगता है जिस बात से ऊब होती थी वही सुनने का मन करता है बस कोशिश यह रहती है कि चाहे कुछ भी हो जाए जो भूला हुआ है वह याद नहीं आए याद के बारे में सबकुछ इतना आसान नहीं होता सब भीतर ही रहे तो...

मेरा बिस्तर बस एक दलदल है

कविताएँ :: मेरिलिन हैकर अनुवाद, चयन एवं प्रस्तुति : अमित तिवारी अमरीकी कवयित्री मेरिलिन हैकर का जन्म 27 नवंबर 1942 को न्यूयॉर्क के एक यहूदी परिवार में हुआ था। पढ़ाई के बाद 1970 में वे लन्दन चली गयीं और बुक डीलर के तौर पर काम शुरू किया। 1974 में उनका पहला कविता संग्रह प्रेज़ेंटेशन पीस छपा जिसको कई पुरस्कार मिले। हैकर ने प्रेम की तात्कालिक ज़रूरत, तृष्णाओं विलगाव आदि पर समकालीन, अनौपचारिक भाषा में...

‘बहुत-सी छायाएँ’ और ‘संकोच’

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कविताएँ :: कुशाग्र अद्वैत बहुत-सी छायाएँ अपनी एड़ियों की सूखती चमड़ी नोचता बैठा हुआ हूँ तुम्हारी बातें सुनता बैठा हुआ हूँ बहुत-सी छायाएँ छितरा गईं हैं बाहर दुपहरी बीत चुकी है अभी तुम मेरी गोद से अपने आल्ता लगे पैर हटाते हुए उठोगी, पानी पियोगी आहिस्ता, गुड़गुड़ की आवाज़ करते जाने का कहोगी चली ही जाओगी तुम्हारे जाने के बाद मैं क्या करूँगा अख़बार पढूँगा या कोई किताब कुछ लिखने लगूँगा टीवी चला लूँगा...