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राजे ने अपनी रखवाली की

कविता :: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ स्वर : उपांशु राजे ने अपनी रखवाली की; किला बनाकर रहा; बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं। चापलूस कितने सामन्त आए। मतलब की लकड़ी पकड़े हुए। कितने ब्राह्मण आए पोथियों में जनता को बाँधे हुए। कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए, लेखकों ने लेख लिखे, ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे, नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे रंगमंच पर खेले। जनता पर जादू चला राजे के समाज का।...

मूंद लो आँखें

कविता :: मूंद लो आँखें : शमशेर बहादुर सिंह स्वर : बालमुकुन्द शमशेर बहादुर सिंह (13 जनवरी 1911 — 12 मई 1993) हिंदी के सुपरिचित कवि हैं, जिन्होंने अपनी कलात्मकता को कविता, आलोचना, कहानी, निबंध जैसी साहित्यिक विधाओं में प्रखरता से अपनी अनूठी प्रस्तुतियों में अभिव्यक्त किया। प्रस्तुत कविता में कवि की अनूठी लयबद्ध कविताई का पता चलता है. मूंद लो आँखें शाम के मानिंद। ज़िंदगी की चार तरफ़ें मिट गई हैं।...

Democracy

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POETRY :: DEMOCRACY : D. H. LAWRENCE RECITATION : SMRITI CHOUDHARY I am a democrat in so far as I love the free sun in men and an aristocrat in so far as I detest narrow-gutted, possessive persons. I love the sun in any man when I see it between his brows clear, and fearless, even if tiny. But when I see these grey successful men so hideous and corpse-like, utterly sunless, like gross successful...

बहुत शर्म आती है

कविता :: बहुत शर्म आती है : मुक्तिबोध स्वर : आसिया नक़वी बहुत शर्म आती है मैंने खून बहाया नहीं तुम्हारे साथ बहुत तड़पकर उठे वज्र से गलियों के जब खेत खलिहानों के हाथ बहुत खून था छोटी छोटी पंखुरियों में जो शहीद हो गई किसी अनजाने कोने कोई भी न बचे केवल पत्थर रह गए तुम्हारे लिए अकेले रोने. किसी एक वीरान गाव के भूरे अवशेषों के रखवाले बरगद के चरण तले की धूल मैंने मस्तक पर लगा तुम्हें जब याद किया देखी...

जा रहे हम

संजय कुंदन की कविता : जा रहे हम
प्रस्तुति : अंचित

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संजय कुंदन चर्चित कवि-कथाकार हैं। उनसे sanjaykundan2@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।