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कविताएँ :: प्रदीप्त प्रीत आमंत्रण पाँच गुना चार की खिड़की से एक भरा-पूरा आकाश खुला है औंधे मुँह पड़ी है एक कूरा मिट्टी अवसन्न भभकती हुई दुःख और संत्रास में ताप से छिटकती हुई इस मिट्टी को इंतजार है तुम्हारी…

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कविताएँ :: तो हू अनुवाद : अरुण कमल झाड़ू की आवाज गर्मी की रात जब कीड़ों की आवाज़ भी सो चुकी है। मैं सुनता हूँ ‘त्रान फू’ पथ पर नारियल के झाड़ू की आवाज़ इमली के पेड़ों को नींद से…

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कविताएँ :: गुंजन उपाध्याय पाठक जीत रेंगते घसीटते खुद ही की देह को घुटने टिकाकर बैठा आहत विस्मृत है भविष्य तुम्हारी मानसिक विक्षिप्त स्थिति से जहाँ खुद की ही आवाज़ तुम तक नहीं पहुंचती, तुम शोर को ठूंस देना चाहते…

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