
नए पत्ते कविताएँ :: अपूर्वा श्रीवास्तव कई सदियों की उदासी पीढ़ी दर पीढ़ी उतरती है उदासी स्त्रियों के भीतर जिम्मेदारियाँ सौंपते हुए पुरखिनें सौंप देती हैं अपने हिस्से की उदासी भी जैसे उन्हें सौंपा गया होगा कभी जिसे ढोते वे बनती गईं वह जो होना उनके होने में कभी नहीं था शामिल मेरे भीतर भी बैठी है कई सदियों की उदासी जिसे साझा करती हूँ मैं कविताओं संग कागज़ सोख लेता है उसे और शब्द लगा लेते हैं गले...