Tagadityashukla

सितारों की गिनती करना असम्भव कार्य नहीं है

प्रतिसंसार :: आदित्य शुक्ल मूलभूत प्रस्ताव: हम सबके पास सत्य है इसीलिए किसी के पास सत्य नहीं है. जब भी कोई विमर्श शुरू होता है वह इसी मूलभूत मान्यता से अस्तित्व में आता है कि वह आपको सत्य तक पहुंचा देगा. दुनिया की सभी भाषाओं, सभ्यताओं ने अपने-अपने समय में अपने-अपने तरीके से सत्य का अन्वेषण किया है. अगर हम अपना विमर्श भी सत्य-केन्द्रित रखेंगे तो हमारा भी वही हश्र होगा जो दूसरी भाषाओं और सभ्यताओं...

दूसरी चिठ्ठी : सब दृश्य रैंडम है

प्रतिसंसार :: आदित्य शुक्ल [प्रियंबदा प्रिय.] ______________ इमराना कहती थी कि सब एक न एक दिन बिछड़ जाते हैं. एक दिन मैं उसपर चिढ़ गया. वीरू तो बचपन का दोस्त है, सब बिछड़ जाएं वो न बिछड़ेगा. कुछ दिन पहले वीरू की चाची का कैंसर से देहांत हो गया. वीरू शहर छोड़कर चला गया. पर वह बिछड़ा तो नहीं न, पर क्या जाने कल का. फिर भी मैं इमराना की बात को पूरा सच नहीं मानता. हम सब एक समानांतर विश्व में जीते हैं. एक ही...

मतभेद की कला

प्रतिसंसार :: मतभेद की कला : आदित्य शुक्ल  पिछले दिनों अंग्रेजी के दो शब्द मीडिया में छाए रहे – डिसेंट (dissent) और अर्बन नक्सल (urban naxal). अर्बन नक्सल को फिलहाल अपने विमर्श के दायरे से बाहर रखते हुए मतभेद और उसके कुछ पहलुओं पर कुछ बात करते हैं. मैं एक लंबे समय तक ऐसे लोगों के सम्पर्क में रहा जो ‘चुप रहने की कला’ सिखाते रहे. चुप रहने और बोलने, इन दोनों ही पक्षों का सरलीकरण किए बगैर...

साप्ताहिक प्रहसन

गद्य : आदित्य शुक्ला (शाम के सात बजे आज साप्ताहिक प्रहसन सुनिए…) “जरा हटके, जरा बचके ये है बम्बे मेरी जां” *फ़िल्मी वह एक स्कैंडेलस शाम थी. सब लोग इस दुनिया में व्याप्त केओस से परेशान थे. लेकिन आखिरकार वे ही लोग उस केओस के वाहक थे. वहां उपस्थित सभी लोग जंगली सूअरों के मुखौटे पहनकर घूम रहे थे. उन सब की आँखों से लालसा, लालच और ईर्ष्या झलक रही थी. वे सभी किसी न किसी सेन्स ऑफ़ अर्जेंसी में थे और...