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विस्थापन, विषाद और मछलियाँ

श्वेत रव :: कविता : अपर्णा अनेकवर्णा वरिष्ठ चित्रकार अखिलेश जी के आदिवासी कलाकार जनगढ़ पर लिखे आलेख को पढ़ने के बाद बहुत बेचैनी रही. उसी बेचैनी में यह सब लिखा : मछलियाँ अपनी अन्धी आँखों से ताकती हैं रहस्य नीले से हरा हुआ जाता है एक कैनवास में बंध गए हैं तृप्ति कलाकार की और उसी कलाकार का निर्वासित विषाद शैवाल मुँह बाए ताकते हैं अन्धी हैं हरी मछलियाँ नीले जल वाले एक फ्रेम में उस फ्रेम के बाहर एक कमरा...