Tagbookreview

Whenever he wanted, he could return

W

Readings:: Sally Rooney’s Normal People : Shristi Reading makes you understand the world in a better way and gives you insight into others’ emotions and feelings. It’s one of the best ways to get in touch with people who can understand you. Recently I read Normal People by Sally Rooney. Marianne was like any other girl having her insecurities inside her heart. She had her share of...

आख़िर कब तक चलेगी अमेरिका की मनमानी

समीक्षा :: ‘तख़्तापलटः तीसरी दुनिया में अमेरिकी दादागिरी’ जाने-माने पत्रकार-इतिहासकार विजय प्रशाद की अंग्रेजी किताब ‘वॉशिंगटन बुलेट्स’ का हिंदी अनुवाद है। इसके अनुवादक हैं- कवि-कथाकार संजय कुंदन। यह किताब एक तरह से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का संक्षिप्त विश्व इतिहास है, जो बताती है कि अमेरिका ने पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए किस तरह के हथकंडे अपनाये और उसकी करतूतों का विश्व पर...

घाव, उम्मीद और प्रकृति प्रेम की कविताएँ

समीक्षा :: दिव्या श्री देवेश पथ सारिया युवा कवि, कथेतर गद्य लेखक होने के साथ विश्व कविताओं के अनुवाद में भी सक्रिय हैं। फिलवक्त वे ताइवान में कार्यरत हैं। देवेश पथ सारिया द्वारा अनुवादित ताइवान के वरिष्ठ कवि ली मिन-युंग का काव्य संग्रह ‘हक़ीक़त के बीच दरार’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। ली मिन-युंग की कविताओं में जो ख़ास बात है वह है उनकी पाठक को बांध लेने की क्षमता। विषयवस्तु तो अपनी‌‌...

फिसलना हमारे समय का महत्तम समापवर्तक है

पाठ :: प्रभात प्रणीत हमारे दर्शन, यथार्थ और स्वप्न स्वाभाविक तौर पर हमें, हमारी मनःस्थिति को अपने बस में रखते हैं, हम इनसे उलझते हैं, प्रेरित होते हैं, संघर्ष करते हैं. एक हद तक हमारा संपूर्ण अस्तित्व इस प्रक्रिया की ही परिणति है. दुर्भाग्य यह है कि हम इसके प्रति ईमानदार नहीं रह पाते और खुद को खुद से ही छुपाते रहते हैं, बचने और बचाने की कोशिश करते रहते हैं. लेकिन कवि इस किताब में अपनी चेतना और...

गूंगी रुलाई का कोरस : कुछ नोट्स

लेख :: अंचित मुझे किताब तक पहुँचने में समय लगा। मैंने किताब के बारे में सुना था। चर्चा भी थी लेकिन समकालीन हिन्दी उपन्यासों के साथ चल रहे एक बहुत अग्रेसिव प्रचार तंत्र की वजह से मन में एक पूर्वाग्रह बन गया था। इस उपन्यास को पढ़े बिना वह टूटता भी नहीं। अगर इस उपन्यास पर बात नहीं करनी होती तो शायद इसको पढ़ता भी नहीं । यह बात भी ईमानदारी से स्वीकारता हूँ। उपन्यास पढ़ते हुए कई संदर्भ याद आए, यह लेख...

अगर तुम अतीत पर पिस्तौल से गोली चलाओगे, तो भविष्य तुम पर तोप से गोली बरसायेगा

‘मेरा दागिस्तान’ से कुछ उद्धरण :: प्रस्तुति :: स्मृति चौधरी रसूल हमजातोव ने कहा था “कविगण इसलिए पुस्तकें लिखते हैं कि लोगों को युग और अपने बारे में, आत्मा की हलचल के बंध में बांध सकें, उनको अपनी भावनाओं और विचारों से अवगत करा सकें.”  यह उपन्यास सुखद एवं संजीदा किस्सों से भरा है, बिल्कुल वैसा जैसा हमारा जीवन.  यह उपन्यास किसी महाकाव्य से कम नहीं लगता क्योंकि, उनकी भाषा भी...

A Portrait of an Artist as a Young man : James Joyce

A

BOOK REVIEW : SMRITI CHOUDHARY It is universally acknowledged that childhood and adolescence are the formative years of a person. Our family, the language we learn, and the culture that props out from it, our schooling and all other areas of formal socialisation, all of it, condition the kind of person we turn out to be. Our individuality relies on the virtues and vices we imbibe into us, and the...

Marquez and One hundred Years of Solitude – travelling into memory.

M

Book Review :: Smriti Choudhary In an interview in 1991, when asked where did the urge to write come from, Gabriel Garcia Marquez answered “I think it all comes from nostalgia”. Nostalgia is what fills the voids inside you while reading One Hundred Years of Solitude, nostalgia for the fantastic world that Marquez builds. Macondo is a mythical village, the more you read about it, the more you want...

Invisible Cities :A Dream Spread Out in Around 150 Pages

I

BOOK review:: Invisible Cities by Italo Calvino : Smriti Choudhary “Of all tasks, describing the contents of a book is the most difficult and in the case of a marvellous invention like Invisible Cities, perfectly irrelevant” – Gore Vidal Italo Calvino’s Invisible Cities is a dream spread out in around 150 pages. I call it a dream because just like a dream, the book is far removed from...

सामान्य एक आदमी को असामान्य बनाकर मार डालना हमारी उपलब्धि है

समीक्षा : : प्रभात मिलिंद संदर्भ : अनिल अनलहातु का सद्य प्रकाशित कविता संग्रह ‘बाबरी मस्जिद तथा  अन्य कविताएँ‘ ..’यही कारण है कि/मेरी कविताएँ अपने/अकेलेपन के कटघरे से होकर/बूमरैंग की भाँति/वापस लौट आती हैं/अपने निभृत एकांत में/मैं जानता हूँ कि/कुछ पढ़े–लिखे बुद्धिमान लोग/नाक–भौं सिकोड़ते उठेंगे/अपने सजे–सजाए ड्राइंग–कक्षों से/और मेरी कविताओं की...