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इस क्रूर, पूँजीवादी समाज के सवाल तक

नए पत्ते :: कविताएँ : सार्थक दीक्षित राष्ट्रीय प्रवक्ता  वो सबसे अधिक जानकारी रखने वाले लोग थे उन्हें मालूम थीं सबसे बेहतर और अधिक तकनीकें जिनसे वो कर सकते थे प्रधानसेवक के सेवा-भाव का बचाव उनके शब्दकोश में थे सबसे अधिक नफरती शब्द वो संविधान के अनुच्छेद ’19’ के असली झंडाबरदार थे जो जहाँ जी आता वो बोल देते ‘मार डालना’, ‘काट डालना’ थे उनके लिए आम शब्द जो समाचार...

प्रेम स्मृतियों का बैकअप है

नए पत्ते :: कविताएँ : केतन यादव बैकअप स्मृतियाँ तुम्हारे प्रेम की क्षतिपूर्ति स्वरूप मिलीं जो तुम्हारे होने का भ्रम बनाए रखती हैं सदा। बाँट लेता हूँ  तुम्हारी अनुपस्थिति फेसबुक, इंस्टाग्राम से हर स्क्रोल में दिख जाता है हमारा साथ बिखरा पड़ा रील्स दर रील्स मोबाइल के की-पैड पहचानते हैं तुम्हारा नाम एक अक्षर टाइप होते ही पहुँचा देते हैं संवाद के आख़िरी शब्द तक, जिसे यह सदी कहती है ऑटोसजेशन वह...

समय कविताओं को जीवित रखता है

नए पत्ते :: कविताएँ : नीरज वसंत अभागों को प्रेम होता है— पतझड़ में उनकी ओर ईश्वर लौटते हैं‌ हाथ में फूल लिए तो वसंत आता है। निवेदन जिनके हिस्से में मॉं नहीं हैं हे ईश्वर! तुम उनको मुझसे ज्यादा ही देना ज्यादा भी सम्भवतः भर पाए उनका खालीपन। सोचना जरूर दो फूलों को कुचलते हुए अगर मैं तुम तक पहुँचता हूँ तो तुम मुझे तुरन्त अस्वीकार कर देना दो फूलों के साथ अगर मैं तुम तक पहुँचता हूँ तो तुम मुझे स्वीकार...

Every creation of this universe is a metaphor exploding

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NEW LEAVES ::  Poems : RIDHIKA SINGH IMMORTALITY OF LITERATURE! Poetry and instincts along a burgeoning park and monotonous path Lang, Frost and Atticus abide Allen Dahl to Sylvia Plath How well do you decipher the ambiguity of literature? Often perceived to be fictional veracity, an exaggerated manifestation of the machinations which whelves as escapades in the mind, it delineates further to...