गुनाहों का देवता पढ़ते हुए : शुभम कुमार
गुनाहों का देवता..!
पढ़ने वाले दो-तीन दोस्तों ने कई बार बताया कि गुनाहों का देवता एक कालजयी उपन्यास है और इसे जरूर पढ़ लेनी चाहिए. पर मैं जब-कभी इस किताब को पढ़ने की सोचता, हर बार इसके नाम पर ही अटक जाता. इतने प्रसिद्ध उपन्यास का ऐसा नाम क्यों ?
संयोगवश उसी दौरान यह किताब मुझे इनाम के रूप में मिली और मैंने तुरंत पढ़ भी लिया.
इसे पढ़ने के दौरान न जाने कितने ख्याल और विचार आते-जाते रहे जो कि शायद मेरे साथ पहली बार हो रहा था.
जो इस उपन्यास को पढ़ चुके हैं वे तो बस नाम सुनते ही न जाने इसकेे बारे में कितनी बातें कहने को बेचैन हो जाएँ. और उनके आंखों के सामने सुधा, चन्दर, पम्मी, विनति, गेसू, डॉ शुक्ला जैसे मुख्य पात्र तैरने लगेंगे और उनके मन में इन किरदारों के संवाद गूंजने लगेंगे. यह उन क़िताबों में से है जो पढ़ने के बाद जीवन भर याद रहेगा. दरसअल इस किताब को पढ़ लेने के बाद भी ऐसा लगता है कि इसकी कहानी अभी भी जारी है किसी न किसी के जीवन में या आने वाले समय में कभी हमारे सामने भी ऐसी ही कोई कहानी होगी.
साठ साल पहले लिखी गई उपन्यास आज भी प्रासंगिक लगती है. चाहे वो प्रेम पर लिखी गई बातें हो या लड़कियों के जीवन में होने वाली कठिनाइयाँ हो. धर्मवीर भारती ने एक साथ कई बातें इस कहानी के जरिए कहे हैं. उनका यह कहना की – ‘जिंदगी में प्रीत से बढ़ कर कोई चीज नहीं हो सकती है’, यह एक कड़वी सच्चाई जैसी लगती है जो आप मानो या ना मानो लेकिन सच है. इसके साथ ही यह किताब कई कठिन सवाल भी हम सब से करती है. जैसे – क्या प्यार का मतलब सिर्फ अपनी खुशी होती है ? क्या जरूरी है कि पुरुष और महिला के दोस्ती का संबंध शारीरिक ही हो ? क्या एक लड़का-लड़की का प्यार-शादी और उसके बाद घर बसाने तक ही सीमित होता है ? किताब खत्म करने के बाद भी मैं इन्हीं सवालों में उलझा रहा. जैसा कि आज ज्यादातर देखने को मिलता है जहां प्यार का मतलब सिर्फ शारिरिक सुख से होता है. क्या यही सच है या फिर आज के जमाने में कुछ लोगों ने अपने प्यास का नाम प्यार दे दिया है !
कहानी के मुख्य पात्र सुधा और चन्दर भी गहरे अंतर्द्वंद के बावजूद शायद ही इन सभी सवालों के जवाब समझ पाते हैं. लेकिन यह उलझन सही भी लगती है. हमारे जीवन में कोई एक फैसला कैसे सबके जीवन को प्रभावित कर देता है ये भी बहुत महत्वपूर्ण बात है. इन सब के अलावे धर्मवीर भारती के इस किताब से और भी बातें निकल कर आती है. जैसे विवाह के बाद जो परेशानी किसी लड़की को झेलनी पड़ती है वो सचमुच दर्दनाक है. अपने माँ-बाबा के दुलार में पलने के बाद जब जिंदगी की असली सच्चाई से उनका सामना होता है तो उनको उसके लिए कितना मजबूत बनना पड़ता है. और एक विवाह रिश्तों में तो परिवर्तन लाता ही है, साथ ही साथ जिंदगी की धारा में उथल-पुथल भी मचा देता है और इसके प्रभाव दोनों घरों में एक अलग ही परिवर्तन लाता है.
इस लोकप्रिय किताब पर अगर गंभीर चर्चा हो तो बहुत सारी बातें कही और समझी जा सकती है. मैंने कुछ बातें आप लोगों के सामने लाने की कोशिश की है. इसका नाम ‘गुनाहों का देवता’ क्यों है इसको जानने के लिए आप इस किताब को जरूर पढ़ें, अगर अब तक नहीं पढ़ा हो तो.
उपन्यास में से संवाद का एक अंग:
“शरीर की प्यास भी उतनी ही पवित्रऔर स्वाभाविक है जितनी आत्मा की पूजा. आत्मा की पूजा और शरीर की प्यास दोनों अभिन्न हैं. आत्मा की अभिव्यक्ति शरीर से है, शरीर का संस्कार, शरीर का संतुलन आत्मा से है. जो आत्मा और शरीर को अलग कर देता है, वही मन के भयंकर तूफानों में उलझकर चूर-चूर हो जाता है.”
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[ शुभम कुमार अंग्रेजी के छात्र हैं और पुस्तकों की समीक्षा करते हैं. इनसे shubhamkrjbad@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.]