ABOUT
पटना में 1969 में पैदा हुए संजय कुंदन ने पटना विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एमए किया। वह छात्र जीवन से ही थियेटर और साहित्य-लेखन से जुड़ गए थे। 18 वर्ष की उम्र में ‘अंतत:’ नाम से अपना नाट्य दल बनाया और बिहार के शहरों-गांवों में घूम-घूमकर नुक्कड़ और मंच नाटक किए। कई नाटक लिखे और अनेक में अभिनय और निर्देशन किया। फिर लेखन पर केंद्रित हुए।
अब तक तीन कविता संग्रह ‘कागज के प्रदेश में, ‘चुप्पी का शोर’, ‘योजनाओं का शहर’, दो कहानी संग्रह ‘बॉस की पार्टी’ और ‘श्यामलाल का अकेलापन’ और दो उपन्यास ‘टूटने के बाद’ और ‘तीन ताल’ प्रकाशित। कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, हेमंत स्मृति सम्मान और विद्यापति पुरस्कार से सम्मानित। उपन्यास ‘टूटने के बाद’ पर कई विश्वविद्यालयों के छात्रों ने लघु शोध प्रबंध लिखे। लघु फिल्म ‘इट्स डिवेलपमेंट स्टुपिड’ का पटकथा लेखन। रचनाएं मराठी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी में अनूदित। जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास ‘एनिमल फॉर्म’ और जेवियर मोरो के उपन्यास ‘पैशन इंडिया’ का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया। आजीविका के लिए पत्रकारिता की शुरुआत धनबाद के ‘आवाज’ से की। फिर पाटलिपुत्र टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा और जनसत्ता होते हुए अब नवभारत टाइम्स, दिल्ली में। पिछले कुछ वर्षों से ‘लोगबाग’ नामक कॉलम का नियमित लेखन। सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक विषयों पर अनेक लेख प्रकाशित।
चुप रहकर, जिंदगी की हलचलों से एक निश्चित दूरी बनाकर एक जासूस की तरह समाज के व्यवहार को देखना-परखना, पत्नी और बेटे के साथ समय बिताना और देसी-विदेशी व्यंजनों का स्वाद लेना पसंद है।

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