नए पत्ते::
ऋतु त्यागी की कविताएँ:
ठगों की सभा और उसकी पीठ
ठगों की सभा में
वह कछुए की तरह खड़ी थी
उसकी पीठ पर ठगों ने लाद दिए थे
ठगी के कारनामे
सभा अपनी इस कार्यवाही के बाद स्थगित हो गई.
और वह धीरे-धीरे चलकर
मुख्य मार्ग पर आ गई
उसने थोड़ी देर में देखा
कि सड़क के किनारे खड़े लोग
उसकी कुबड़ी पीठ पर
अपनी फूहड़ हँसी के ढेले फेंकने में मशग़ूल हो गये थे।
अभी इस वक़्त
अभी इस वक़्त जब हम
दरवाज़ा बंद करना चाहते हैं
एक लंबा एकांत
कमरे में फैला देता है अपने पंजे
हमारी सारी भंगिमाएँ
छड़ी के सहारे टटोलती हैं रास्ता
ये कितना आश्चर्यजनक है!
कि रोशनी में लिखे वाक्य
अंधेरे में भी अपनी चमक बरक़रार रखतें हैं
हम इन सबके बीच में भी पकड़ लेतें हैं
संतुलन की नब्ज़
और ठीक एक दिन हम कर ही देतें हैं
ऐसे ही
किसी भी चीज़ की शुरुआत।
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डॉ. ऋतु त्यागी कविताएँ लिखती रही हैं और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं. इनकी दो किताबें ‘कुछ लापता ख़्वाबों की वापसी’ और ‘समय की धुन पर’ प्रकाशित हैं. इनसे ritu.tyagi108@gmail.com पर सम्पर्क सम्भव है.