कविताएँ : महमूद दरवेश
अनुवाद एवं प्रस्तुति : वंश प्रभात
महमूद दरवेश (13 मार्च 1941 – 9 अगस्त 2008) फ़िलिस्तीन के राष्ट्रीय कवि के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने फ़िलीस्तीनी हालात पर, घोर बाज़ारवाद से जन्मी युद्ध स्थितियों पर और निर्वासन पर कई कवितायें लिखीं। किसी भी कवि को उसके सामाजिक और ऐतिहासिक पर्दे पर रखकर पढ़ना और समझना जितना आवश्यक है उतना ही ख़तरा उसकी काव्यात्मक सक्षमता और उसकी वस्तुनिष्ठता का विघटन कर देने में है। २०वीं शताब्दी के कई लक्षण ऐसे हैं जो आज के उत्तराधुनिक और उत्तरमानविक काल में जैसे के तैसे नहीं बैठते लेकिन मौलिक मानवीय संघर्ष आज के काल में भी उतना ही है जितना तब था। ऐसे सामाजिक-राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि महमूद दरवेश आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे अपने समय में थे। बहरहाल, महमूद दरवेश के 67 साल के जीवन में उनके 30 से अधिक काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए। दरवेश के ऊपर आर्थर रम्बो और एलन गिन्सबर्ग का काफ़ी प्रभाव था। साथ ही इनपर इराक़ी कवियों जैसे अब्द अल-वहाब अल-बयाती और बद्र शकीर अल-सय्यब का भी प्रभाव रहा। महमूद दरवेश की भाषा सरल है और विश्व भर में पाठकों और आलोचकों द्वारा सराही गयी है। इनकी कई रचनाएँ हैं जैसे – ‘Wingless Birds’, ‘Leaves of Olives’, ‘Dairy of a Palestinian Wound’, ‘Unfortunately It Was Paradise’, ‘Why Did You Leave the Horse Alone?’ आदि।
1. साइप्रस टूट गया
साइप्रस वृक्ष नहीं वृक्ष का दुःख है,
और उसकी कोई छाँह नहीं क्योंकि वह वृक्ष की छाँह है
—बसम हज्जार
किसी मीनार की तरह साइप्रस टूट गया, और सड़क पर
अपनी परछाईं पर सो गया, घना, हरा,
जैसा वह हमेशा से था। किसी को चोट नहीं लगी। गाड़ियाँ
उसकी टहनियों पर से गुज़रती रहीं, धूल उनकी काँच पर उड़ता रहा।
साइप्रस टूट गया, लेकिन पड़ोस के घर के कबूतर ने अपना घोंसला नहीं बदला
और दो प्रवासी पंछियों ने उस जगह उड़ते हुए कुछ संकेत साझा किये
और एक औरत ने अपने पड़ोसी से कहा: कोई तूफ़ान आया था?
उसने कहा: नहीं, और कोई बुल्डोज़र भी नहीं दिखाई दे रहा…
और साइप्रस टूट गया।
जो मलबे के पास से गुजर रहे थे उन्होंने कहा: शायद अपनी उपेक्षा से ऊब गया होगा,
या गुज़रते दिनों के साथ बूढ़ा हो गया था, जिराफ़ की तरह लम्बा है, और किसी झाड़ू की तरह छोटा जो
दो प्रेमियों को छाँह भी नहीं दे सकता था,
और एक लड़के ने कहा: मैं इसकी कलाकृति बनाया करता था, इसकी आकृति बनाना आसान था,
और एक लड़की ने कहा: आज आसमान अधूरा है क्योंकि साइप्रस टूट गया
एक नौजवान ने कहा: पर आज आसमान पूरा है क्योंकि साइप्रस टूट गया
मैंने खुद से कहा: न रहस्य है न यथार्थ, साइप्रस टूट गया, बस यही है बात: साइप्रस टूट गया!
2. एक नए कवि के लिए
मत मानना हमारी रेखाएँ, उन्हें भूल जाना
और अपने शब्दों से शुरू करना
ऐसे जैसे तुम पहले हो जो कविता लिखता है
या फिर हो आख़िरी कवि।
अगर तुम हमारी कृति पढ़ते हो तो
उसे हमारे आसमान का खिंचाव मत होने देना
बल्कि दर्द की क़िताब में हमारी ग़लतियों को सुधारना।
मत पूछना किसी से: कौन हूँ मैं?
तुम जानते हो तुम्हारी माँ कौन है
अपने पिता खुद बनना।
सच सफ़ेद है, लिखना उसपर
कौए की स्याही से
सच काला है, लिखना उसपर
किसी मरीचिका की रोशनी से।
अगर तुम बाज़ से लड़ना चाहते हो
तो बाज़ के साथ परवाज़ लेना।
अगर तुम एक स्त्री के प्रेम में पड़ते हो
तो तुम, वह स्त्री नहीं, बनना वह
जो अपना अन्त चाहता है।
जितना हम सोचते हैं उससे कम ही जीवित है जीवन पर
इतना हम सोचते नहीं वरना भावनाओं की सेहत कम हो जाएगी।
अगर तुम काफ़ी देर तक एक गुलाब सोचते हो
तो तुम तूफ़ान में अडिग रहोगे।
तुम मेरी तरह हो पर मेरी खाई साफ़ है
और तुम्हारे पास रास्ते हैं जिनके राज़ कभी खत्म नहीं होते
जो उतरते हैं और चढ़ते हैं, उतरते हैं और चढ़ते हैं।
तुम शायद कहोगे कि जवानी का अन्त है
कला की परिपक्वता या ज्ञान। बेशक़ वह ज्ञान है,
एक ठण्डी अ-कविता का ज्ञान।
मुट्ठी में एक हज़ार परिंदे भी
उस एक परिंदे के बराबर नहीं जिसने पूरा पेड़ पहन रखा है।
मुश्किल वक़्त में एक कविता
क़ब्रिस्तान की सुंदर फूल है।
उदाहरण पाना आसान नहीं है
इसलिए वास्तविक बनना और बनना अपने अलावा
गूँज की सीमाओं के पीछे।
उत्साह की एक एक्स्पाइरी तिथि है जिसकी विस्तृत सीमा है
इसलिए जुनून से भर जाओ अपने दिल के लिए
पीछा करो उसका अपने रास्ते पर पहुँचने से पहले।
माशूक को मत कहो: तुम मैं हो और
मैं तुम, उसका उल्टा कहो: हम दो मेहमान हैं
एक भारी, मुखबिर बादल के।
लाँघना, अपनी पूरी ताक़त के साथ, हर नियम को लाँघना।
नैतिकता कवि-दिल के लिए एक गोली की तरह है
एक घातक ज्ञान।
जब गुस्सा हो तो एक बैल की तरह मज़बूत बनना
एक बादाम के फूल की तरह नाज़ुक जब तुम प्यार करना, और
जब बंद कमरे में खुद को खुश करना तब कुछ नहीं, कुछ नहीं।
रास्ता लम्बा है जैसे किसी पुराने कवि की रात:
मैदान और पहाड़ियाँ, नदियाँ और घाटी।
अपने सपनों के हिसाब से चलना: या तो एक कुमुदिनी मिलेगी
या फाँसी।
तुम्हारा काम मुझे तुम्हारी चिन्ता नहीं देता।
मुझे तुम्हारी चिन्ता उनसे है जो नाचते हैं
अपने बच्चों की क़ब्र पर,
और छिपे कैमरे
जो गायकों की नाभि में हैं।
मुझे दुःख नहीं होगा
अगर तुम औरों से दूरी बनाओ, मुझसे भी।
जो मुझ जैसा नहीं है ज़्यादा हसीन है।
अब से, एक अनदेखा भविष्य ही तुम्हारा हाफ़िज़ है।
मत सोचना, जब तुम दुःख में पिघल रहे होगे
किसी मोमबत्ती के आँसू जैसे, कि कौन देखेगा या अनुसरण करेगा
तुम्हारे मनोभाव के प्रकाश का।
अपने बारे में सोचना: क्या यह मैं पूरा हूँ?
कविता हमेशा अधूरी रहती है, तितलियाँ इसे पूरा करती हैं।
प्रेम के लिए कोई सलाह नहीं, यह एक अनुभव है।
कविता के लिए कोई सलाह नहीं, यह एक हुनर है।
और अन्त में, सलाम!
3. वह अपने हत्यारे को गले लगाता है
वह अपने हत्यारे को गले लगाता है।
काश वह उसका दिल जीत ले: क्या तुम्हें ज़्यादा गुस्सा आता है अगर मैं बच जाऊँ?
भाई.. मेरे भाई!
क्या किया था मैंने कि तुम मुझे मिटा दो?
दो पंछी ऊपर उड़ते हैं।
तुम ऊपर की तरफ़ गोली क्यों नहीं चलाते?
क्या कहते हो?
तुम थक गए मेरे आलिंगन से और मेरी बू से।
वैसे ही क्या तुम थक नहीं गए मेरे अंदर के डर से?
तो फिर फेंक दो अपनी बन्दूक नदी में!
क्या कहते हो?
नदी किनारे जो दुश्मन है वह अपनी मशीन गन तानता है एक आलिंगन पर?
दुश्मन को गोली मारो!
इस तरह हम दुश्मन की गोली से बच जाएँगे और बच जाएँगे गुनाह करने से।
क्या कहते हो?
क्या तुम मुझे मारोगे ताकि दुश्मन हमारे घर जा सके
और फिर से उतर सके जंगल के क़ानून में?
क्या किया तुमने मेरी माँ की कॉफ़ी के साथ; अपनी माँ की कॉफ़ी के साथ?
क्या गुनाह किया था मैंने जो तुम मुझे मिटा दो?
मैं तुम्हें गले लगाना कभी बंद नहीं करूँगा
और मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा।
4. रीटा और राइफल
रीटा और मेरी आँखों के बीच है
एक राइफल;
जो भी रीटा को जानता है
झुकता है और सजदा करता है
उन शहद के रंग वाली आँखों की अलोहियत का।
मैंने रीटा को चूमा था
जब वह जवान थी
मुझे याद है वह किस तरह आई थी
और कैसे मेरी बाँह ने घेरी थी सबसे सुंदर चोटियाँ।
मुझे रीटा याद है
जैसे एक गौरैया याद रखती है उसकी धारा
आह रीटा!
हमारे बीच करोड़ों गौरैया और तस्वीरें हैं
और हैं कई मेहफ़ूज़ जगहें जिनपर राइफल चलाए गए।
रीटा का नाम मेरी ज़बान के लिए दावत थी
रीटा का जिस्म मेरे खून में शादी थी
मैं दो साल रीटा में खोया रहा
और वह दो साल मेरी बाँह पर सोती रही
और हमने वादे किये
कुछ हसीन प्यालों पर
और हम जले अपने होंठों के मय में
और फिर से पैदा हुए।
आह रीटा!
इस राइफल से पहले क्या था जो मेरी आँखें तुमसे हटवा लेता था
सिवाय एक-दो झपकी या शहद के रंग वाले बादलों के ?
एक ज़माने में
ओह! शाम की वह चुप्पी!
सुबह को मेरा चाँद कहीं दूर प्रवासित हो गया
उन शहद के रंग वाली आँखों की ओर
और शहर समेट कर ले गया सभी गायकों को
और रीटा को।
रीटा और मेरी आँखों के बीच है
एक राइफल।
5. मैं इसी उबाऊ रास्ते पर चलूँगा
मैं इसी उबाऊ अंतहीन रास्ते पर इसके अन्त तक चलूँगा
जबतक मेरा दिल न रुक जाए, मैं इसी उबाऊ अंतहीन अंतहीन रास्ते पर चलूँगा
जब मेरे पास खोने को कुछ नहीं हो सिवाय धूल के, जो मुझमें मर गया है उसके और खजूर के पेड़ की क़तार
जो शून्य के तरफ़ इशारा करती हैं। मैं खजूर की क़तार को पार करूँगा।
घाव को उसका कवि नहीं चाहिए जो अनार की तरह मौत का खून रंगता है!
हिनहिनाहट की छत पर मैं अर्थ के तीस छेद काटूँगा
ताकि तुम एक यात्रा खत्म करो और शुरू कर सको दूसरी।
यह दुनिया खत्म हो या न हो, हम इसी उबाऊ अंतहीन रास्ते पर चलेंगे।
एक कमान से ज़्यादा तने हुए, हमारे क़दम, तीर होंगे। एक पल पहले हम कहाँ थे ?
क्या हम कुछ देर में, पहली तीर के पीछे चलें?
चक्करदार हवा ने हमें बिखेर दिया। तो, क्या कहते हैं आप ?
मैं कहता हूँ: मैं इसी उबाऊ अंतहीन रास्ते पर चलूँगा इसके और मेरे अन्त तक।
6. काव्यात्मक नियम
तारों का बस एक काम था: उन्होंने मुझे पढ़ना सिखाया।
उन्होंने बताया मुझे कि स्वर्ग में मेरी एक भाषा है
और धरती पर एक अलग भाषा है।
कौन हूँ मैं? कौन हूँ मैं?
मैं अभी जवाब देना नहीं चाहता।
काश कि एक तारा टूटकर खुद में गिर जाए
और काश कि शाहबलूत के पेड़ों का एक जंगल
रात को आकाश गंगा की ओर मेरे साथ उठे और कहे:
यहीं रहो!
कविता ‘ऊपर’ है और जो चाहे मुझे सिखा सकती है।
वह सिखा सकती है मुझे एक खिड़की खोलना और
गाथाओं के बीच अपनी गृहस्थी सँभालना।
वह मेरी खुद से शादी करवा सकती है कुछ देर के लिए।
मेरे पिता ‘नीचे’ हैं, हज़ार साल पुराने जैतून के पेड़ को लिए
जो न पूरब से है न पश्चिम से।
उन्हें अधिपतियों से थोड़ा आराम करने दो,
मेरे साथ कोमल होने दो और मेरे लिए आईरिस और कुमुदिनी चुनने दो।
कविता मुझे छोड़कर एक ऐसे बंदरगाह की ओर जाती है
जहाँ के नाविक जाम पसंद करते हैं
और एक ही स्त्री की तरफ़ दुबारा कभी नहीं लौटते।
न उनमें ग्लानि है न किसी चीज़ की आकांक्षा।
मैं अभी तक प्रेम में मरा नहीं हूँ , लेकिन एक माँ
अपने बेटे की आँखों में देखती है डर जो
गुलनार के फूल गुलदान के लिए रखते हैं।
वह रोती है जिससे अनिष्ट टल जाए
वह रोती है ताकि मैं भाग्य के रास्ते से ज़िंदा लौट आऊँ और यहाँ रहूँ।
कविता न यहाँ है न वहाँ , और एक स्त्री के सीने से
वह रातें रोशन कर देती है।
एक सेब की चमक से दो शरीर रोशनी से भर देती है और
गंधराज के फूल की साँस से देश में प्राण फूँक सकती है।
कविता मेरे हाथों में है और उस स्त्री के
हाथों से कहानियाँ सुना सकती है
पर जबसे मैंने कविता को गले लगाया है, मैंने
अपनी आत्मा लुटायी है और फिर पूछा है:
कौन हूँ मैं ? कौन हूँ मैं ?
•••
वंश प्रभात हिंदी की नई पीढ़ी के कवि-अनुवादक हैं। उनसे और परिचय एवं इन्द्रधनुष पर उनके पूर्व-प्रकाशित कार्य के लिए यहाँ देखें: कल मेरे आलिंगन तुम्हें अजगर के पाश जैसे लगेंगे
