कविता ::
आगा शाहिद अली
अनुवाद : अंचित
शाहिद की माँ का इंतक़ाल अमेरिका में हुआ था. कैन्सर से. शाहिद, उनके पिता और उनके भाई बहन , अमेरिका से माँ को कश्मीर लेकर आए. शाहिद चार साल लगभग उसी तरह के कैन्सर से लड़ते रहे– स्मृति की लड़ाई करते रहे , लेकिन माँ की याद में घुलते रहे. यह कविता एक canzone है जो शोकगीत होता है. इसको लिखने के क़ायदे इतने मुश्किल हैं कि बड़े से बड़े कवि ने भी दो से ज़्यादा नहीं लिखे. यह शाहिद का तीसरा canzone था. शायद उनकी आख़िरी कविता. कविता की गद्यात्मक भूमिका में शाहिद लिखते हैं कि युद्द से घिरे घर में, मेरे पिता, मेरे भाई–बहन और मैं, अपनी माँ की देह दफ़्न करने के लिए लाए. कश्मीरी नौहों में बार बार जैनब का ज़िक्र आता है जिनके संदर्भ में लगभग ऐसी ही पंक्तियाँ उन शोकगीतों में हैं. एक और कविता में शाहिद ने लिखा था कि इन नौहों में जैनब को दी गयीं पंक्तियाँ, उनकी माँ को बार बार लगता कि उनके लिए लिखी गयीं हैं. यह कविता शाहिद की सबसे अमर कविताओं में से है और अन्य कविताओं की तरह ही मानव सभ्यता के सबसे दूर के कोनों से भी ध्वनियाँ खोज कर लाती है और उनका इस्तेमाल करती है.
इस कविता का अनुवाद करना इस लिए भी कठिन था कि अंग्रेज़ी में यह जिस तरह राइम करती है, हिंदी में उस तरह से उसको ला पाना असम्भव तो होता ही, कुफ़्र भी होता. अपने इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती शाहिद ने नीरजा मट्टू को बताया था कि वह इस कविता में बार बार “elephant”शब्द का इस्तेमाल करना चाहते थे पर उसको राइम कराना बहुत मुश्किल था. शाहिद ने यह साध लिया था और इस अनुवाद को वह मुस्कुराते हुए एक आलसी का किया हुआ अनुवाद मान लेते. फिर भी मुझको लगता है कि बहुत से बहुत गद्य में इसको बदला जा सकता था, इसके allusions को उसी तरीके से ला सकना भी कहीं कहीं लय को बहुत अधिक तोड़ता था सो मैंने लय को तवज्जो दी है और कविता के फ़ौरी अर्थ को. एक बात और है जो सोचने पर मजबूर करती है, वह यह कि शाहिद की कब्र अमेरिका में है. एमिली डिकिन्सन की कब्र से बहुत दूर नहीं. उसकी माँ यहाँ हैं कश्मीर में. दोनों पास कहाँ आएँगे. शाहिद को इस दूरी में पोएटिक हुजूँ दिखता या नहीं यह तय नहीं कर पाता. फिर भी इस कविता में दोनों पास हैं. मर्सियों का काम यही है क्या.
—अंचित
लेनक्स हिल
(लेनक्स हिल अस्पताल में सर्जरी के बाद,
मेरी माँ ने कहा कि अस्पताल के सायरन की आवाज़
पीर पंजाल रेंज की पहाड़ियों से मिहिरगुला के लोगों द्वारा गिराए जा रहे
मिहिरगुला के हाथियों की तरह लग रही है.)
उस हूण को गिरते हुए हाथियों के रोने की आवाज़
इतनी पसंद थी कि उसको ख्वाहिश होती– वह बार–बार
उनका रोना सुने.
तड़के, हाथियों से भरे
अपने अस्पताल वाले सपने में मेरी माँ ने सुना –
मैन्हैटन में उसी तरह साइरन बजते हुए, मानो कश्मीर
में पीर पंजाल की पथरीली पहाड़ियों से हाथी धकेले जा रहे हों:
जैसा आदेश हुआ था, सैनिकों ने हाथियों को खदेड़ दिया था.
सभी पदचिन्हों में सबसे बड़ा हाथी का होता है,
बुद्ध कहते हैं. लेकिन चूँकि इनको सहेजा नहीं गया
ये चिन्ह कायनात में हमेशा के लिए विलीन हो गए.
घुमक्कड़ लोग इन हाथियों का यह क़िस्सा ऐसे सुनाते हैं,
मानो कल की बात हो, जब हवा ने बिखेरा हो उनका रंग
(“युद्धों के इतिहास रात में गुम जाएँगे/इसके पहले कि उनकी कहानियाँ ख़त्म हों”)
मौत के घाट उतार दिए गये हाथियों,
तुम्हारे लिए शोक मनाते मनाते हम ख़त्म होते हैं,
दुनिया हमें मरते हुए देखती है,
सज़ा देने वाली खाकी के जानिब.
महीनों बाद, ऐमर्स्ट में वह ख़्वाब देखती है:
वह हीरों के साथ थी, पत्थरों से मारी जा रही.
मैंने दुआ की: अगर उसको मारना ही है, तो यह सिर्फ़ कोई ख़्वाब हो.
लेकिन
कई बार ऐसा भी हुआ, माँ, जब तुम सो रही होती,
मैं दुआ करता, “पैग़म्बरों उसे मर जाने दो.”
मैं तुम्हारी क़सम खा कर कहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौत नहीं चाहता था,
लेकिन यह चाहता था कि तुम वैसी ही रह जाओ
जैसी तुम थी— जवान, कश्मीर में एक गीत में,
और मैं, एक त्योहार में तुमने मुझे कृष्ण बना दिया था,
कश्मीर सुन रहा था मेरी बांसुरी. तुमने खुदाओं को कभी मरने नहीं दिया.
इसीलिए मैं क़सम खाता हूँ, अभी और यहाँ,
उस कायनात को मैं कभी माफ़ नहीं करूँगा,
जो मुझमें तुम्हारे बग़ैर की किसी कायनात में रहने
की आदत पैदा करवा दे.
वह अकेली, वही अकेली, वह कायनात थी—
दवा से बंधे वक्त में अपने उस पार के सफ़र का घेरा नापते हुए,
बीमारियों के देवता और कायनात के रहीम मालिक से
ना मरने का अधिकार, उसने किसी आकाश गंगा की तरह कमाया था,
और भाग्य से भरा हुआ हाथियों का ख़ुदा तब कहाँ था
जब एक के बाद एक हरे रंग से भरी हुई कायनात को
चाँदी से रंगा जा रहा था?
ठीक है फिर—
कायनात भी जन्नत की तरह एक कब्र समझी जाए.
माँ, वे पूछते हैं, मेरा लिखना कैसा चल रहा है?
मैं कहता हूँ, मेरी माँ ही मेरी नज़्म है.
वे क्या सोच रहे थे? क्योंकि कोई और नज़्म पूरी ही नहीं पड़ती,
सिवाय कश्मीर के धुँधले होने के वादे के और अस्पताल में कश्मीर की पहाड़ियों से
तुम तक पहुँचती हाथियों के चिंघाढ़ने की आवाज़. ( पंद्रह शताब्दियाँ पार करते हुए).
कश्मीर,
वह मर रही है!
ऐमर्स्ट में जब वह सोते हुए साँस लेती है
पूरी कायनात उसकी साँसों में डूब जाती है.
कश्मीर पर खिड़कियाँ खुलती हैं:
वहाँ, नाज़ुक, लकड़ी से बनी हुई दरगाहें—
उतनी दूर – कश्मीर की दरगाहें.
अहरमन, उसको वहाँ तक वापस लौट जाने दो
भले ही फिर वह मर जाए.
कश्मीर के पास सिवाय
उसको गज भर ज़मीन देने के
और कोई अधिकार नहीं.
जब कश्मीर पर खिड़कियाँ बंद होती हैं
मुझे ओलों की तरह बरसते हाथियों के भूत दिखते हैं.
मैं पीछे हटता हूँ: उसे बर्दाश्त नहीं होती थी— उस एक हाथी की कहानी:
(कश्मीर से दूर किसी देश में)
हर साल वह वापस जंगल लौटता था,
उसी दिन. जिस दिन उसकी माँ की मौत हुई थी.
वहाँ अपनी सूँड़ से अपनी माँ की हड्डियाँ छूता.
“यहाँ मेरे पास बैठे, तुम बिलकुल मेरी माँ की तरह लगते हो”,
वह मुझे बताती है. मैं उसके बारे में सोचता हूँ:
कश्मीर में एक दुल्हन, रीगल में पिता के साथ पहली फ़िल्म देखती हुई.
अगर मैं तुम्हें अपनी बाँहों में समेट पाता, मेरी माँ— अब मेरी बेटी—
मैं तुम्हें ख़ुदा से बचा लेता.
कायनात अपना बहीखाता खोलती है.
मैं लिखता हूँ: ख़ुदा की माँ कितनी लाचार थी!
हर पलटा हुआ सफ़हा दर्द का हिसाब लिखता है.
माँ, मुझे एक हाथ दिखता है. मुझसे कहो यह ख़ुदा का हाथ नहीं.
उसे मर जाने दो. वह मुझे दिख रहा है. वह हीरों से भर रहा है. प्लीज़ उसे मर जाने दो.
क्या तुम कहीं हो, ज़िंदा,
कहीं ज़िंदा हो माँ?
क्या तुम वह सुन सकती हो जो एक बार मैंने तुमसे नहीं कहा था:
अपनी माँ की हड्डियों के पास रोते एक हाथी की रुलाई में उन हाथियों की रुलाई
जिन्होंने अंतहीन पाताल तक को सन्न कर दिया.
हाथी–दांत हाथियों को मिटा देते हैं.
उस बही-खाते में मैं लिखता हूँ:
महबूब ने एक को मरने के लिए पीछे छोड़ दिया है
कि तुम्हारे लिए मेरे दुःख के बनिस्बत कश्मीर के दुःख क्या हैं और
(मैं बही-खाता बंद करता हूँ) हर हिसाब किताब से परे—
पूरी कायनात के दुःख क्या हैं
जब तुम्हारी याद आती है मेरी माँ?
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अंचित कवि हैं. उनसे anchitthepoet@gmail.com पर बात हो सकती है.
अंचित के इस अनुवाद में उसी तरह हाथी के चिंघाड़ने की आवाज़ आ रही है अंतहीन किसी प्रांतर से। लय में लय हो रहा शब्द,वाक्य।यही तो कविता की लय है।