डायरी ::
तोषी

शीर्षक देना मेरे लिए हमेशा ही एक भयावह विचार है, मैं कन्क्लूजन अच्छे देती हूँ ठीक मेरी बातों की तरह जो कहीं भी जायें पर अगर एंडिंग अच्छी नहीं है तो पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त! लिखना किसी के लिए क्या-क्या कर सकता है? मेरे जैसे लोगों  के लिए लिखना एक आज़ादी है, उन्माद है, प्रेम है और बस उसमें हो कर उसका हो जाना है। बीते कुछ महीनों से मैं एक ऐसी संस्था के साथ काम कर रही हूँ जिसका मिजाज़ मेरे मिजाज़ से बेहद अलग है। सच कहूँ तो कुछ वक़्त पहले तक मैं रोज सुबह उठ कर खुद से सवाल करती थी कि ये मैं कर ही क्यूँ रही हूँ? इसके बहुत सारे तार्किक जवाब हो सकते हैं। पर आसान जवाब है सैलरी! मिडिल क्लास व्यक्ति के लिए पैसे ऐंगज़ाइटी  बन गये हैं। हम असंभावनाओं के दौर में सम्भावना बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हम खुद नहीं जानते कि हमें जिंदगी से क्या चाहिए? पहले मुझे लगता था कि सिर्फ एक प्यार और परिवार हो और क्या? कई बार दिल और अब हिम्मत भी टूटने के बाद ऐसा लगता है कि बेयर मिनिमम भी इस जेनेरेशन का हासिल नहीं है।

ये सब बातें झूठ हैं। सच कहूँ तो जब आप 30 का आंकड़ा पार कर लेते हैं तो आपके लिए सबकुछ या तो एबसर्ड हो जाता है या फिर इंडिविजुअल। आपको या तो हर बात चुभती है या आपको किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। आप हर बात पर अपनी राय देना चाहते हैं या आपको लगता है कि इससे किसी को क्या ही फर्क पड़ जायेगा? आप चीखना चाहते हैं और चुप रह जाते हैं। आप घर की तलाश कर रहे होते हैं और घर से ही भागते जाते हैं। आप दिखना चाहते हैं, पर एकाकी इंसान को।  मुझे लगता है हमारी जेनेरेशन के लिए कोई बीच का रास्ता है ही नहीं। आप या इधर हैं या उधर। खैर मुझे मेरे काम में काफी मज़ा आ रहा है। ठीक से देखा जाए तो मुझे रोज कुछ सीखने को मिल रहा है और इस ज्ञान की बात के अलावा एक ठीक-ठाक सैलरी भी! मेरे मन के बहुत सारे भ्रम टूटे हैं। जैसे गरीबी और बेरोजगारी को लेकर मेरे मन में अधिक गुस्सा आ गया है? इससे पहले ये गुस्सा इस बात का था कि लोग आजकल पढ़ते-लिखते नहीं हैं, कैसे पढ़ेंगे जब उनके दिमागों में गधा-मजदूरी चल रही है, जाहिर है कि वो जो ज्ञान कंज्यूम कर रहे है, वो ही उनके लिए असल ज्ञान है जैसे जब एक ब्रह्म को नहीं समझते हैं तो कई ब्रह्म और उनके साथ भ्रम बना लेते हैं।

अपने काम के साथ ही मेरे भीतर बहुत सारे परिवर्तन आये हैं जैसे मुझे आजकल और अधिक पढ़ना पड़ता है, वो भी वो चीज़ें जो मुझे कभी ऐसे लगतीं थीं कि इनका जीवन में क्या काम हो सकता है?  पर अब वही मेरे काम आ रही हैं। इस दौरान मैंने ये भी समझा कि मेरे भीतर कितना ईगो और घमंड है अपने तथाकथित ज्ञान का, जो आम जिंदगी में न मेरे काम का है और न ही किसी और के। वो बस एक बबल में रहने वाले मेरे दोस्तों और कुछ लोगों को कुछ देर के लिए मुग्ध कर सकता है और इसके अलावा इसमें कुछ नहीं हो सकता है। ये मुझे ये एहसास तो दिलाता है कि ओह, मैंने उसको क्या जवाब दिया है पर वो मेरे अंदर के खालीपन को नहीं भरता है। मुझे अक्सर ये कहा जाता कि  तुम पहले पैराग्राफ में जो कहना चाह रही हो अब वो बात ही नहीं है, ये मेरे भीतर की दीनता को दिखाता है कि मेरे पास कहने को इतना है पर मुझे लगता है कि मुझे सुना नहीं  जायेगा तो मैं सारी चीज़ें इधर-उधर करके एक साथ बताने लगती हूँ? आजकल की भाषा में इसको ओवर-शेयरिंग का नाम दिया जाता है। अरे भाई जिनको सुना ही नहीं गया है, उनसे भी हम उम्मीद करके बैठे हैं।

पर मेरे काम के दौरान ऐसा नहीं हुआ। ये काम थोड़ा अलग है मेरे सारे पिछले कामों से। ये न तो कॉर्पोरेट है, न ही स्कूल, न तो फील्ड है, न ही ऑफिस बस वही बीच में। लेकिन यहाँ आपका फीडबैक बिल्कुल क्लीयर है कि आपको सरल रहना है जो मेरे जैसे लोगों के लिए लेम जीवन का परिचय है। सरल रहने में किसको महानता मिली है? शिव कौन हुआ है? इससे भी ज्यादा इम्पोर्टेंट बात मेरे बॉस की है- समय के साथ मेरे अंदर उनके लिए इज्ज़त जैसे बढ़ी है वो अपने-आप में बहुत अलग कहानी हो सकती है। स्व को श्रेष्ठ देखने वाले जब हकीकत की जमीन पर पाँव रखते हैं तो उनका सिर्फ ईगो नहीं जाता बल्कि वो डर जाते हैं। ये मौका अपनी सच्चाई को देखने का ही नहीं बल्कि अपने डर को भी देखने का होता है,  वो चीज़ें जो आप अब तक छुपाते चले आ रहे थे। मुझे लगता है उस इंसान ने यह देख लिया है। मैं इसको कैसे बताऊँ। एक बड़े पत्थर से जब कभी किसी चिड़िया का टूटा पंख टकराता होगा तो, इससे पंख को नहीं पत्थर को चोट लगती है, क्योकि पत्थर को लगता घर्षण उसका भाग्य है, नाकि बस छुआ जाना। खैर पहले ही दिन से ही वो मुझे बस एक बात कहते आ रहे हैं कि अगर आपने अनलर्न नहीं किया तो बहुत दिक्कत होगी! हां?? क्या ?? कोई मुझे मेरी ही बात कैसे कह सकता है? दुनिया को मैं अनलर्न करने की बात कहती आई हूँ। मुझे क्या अनलर्न करना हो सकता है?

ऐसे में एक दिन मैंने बीनाकी की कहानी पढ़ी। बीनाकी एक जेन साधू थे, कहते थे उनके पास बहुत दिव्य ज्ञान था, ये बात सुनकर एक फिलोसफी का प्रोफ़ेसर उनसे मिलने जाता है, जहाँ पहुँचने के लिए उनको कई किलोमीटर पैदल चल कर जाना होता है। वो जब पहुँचते हैं तो बीनाकी नाच रहे होते हैं। वो भी कोई बहुत सुन्दर नृत्य नहीं। बस नाच। बीनाकी को रोकर प्रोफ़ेसर ने कहा, मुझे वो ज्ञान दीजिये जिसके बारे में सब कहते हैं कि वो केवल आपके पास है!! बीनाकी ने कहा कि  तुम बहुत थक के आये हो, आ जाओ चाय पी लो! प्रोफ़ेसर ने कहा मुझे चाय नहीं ज्ञान चाहिए। बीनाकी ने कहा, वो तुम्हे चाय पीते-पीते मिल जायेगा। प्रोफ़ेसर को लगा बीनाकी एक अन्य पागल है जिसको लोग संत समझ बैठे हैं। बीनाकी ने चाय कप में डालना शुरू किया। चाय बहने लगी। प्रोफ़ेसर ने कहा “मुझे लगा था कि तुम मुर्ख हो पर तुम किसी काम के नहीं हो!” बीनाकी मुस्कुराये बोले “हाँ! और मुझे तुम इस कप की तरह लगे जिसमें अब कुछ भी नया डालने को बचा नहीं है।  तुम किसी तरह का ज्ञान भी तब ही ले सकते हो जबकि तुम कुछ तो खाली हो पर तुममे सिर्फ खालीपन है। रीता होना और रीत के चलते रीत जाना दो अलग बात है।” ये बात कह कर बीनाकी फिर नाचने लगे।

बस मैं भी एक दिन बीनाकी की तरह नाच सकूँ, वो रास्ता देखना चाहती हूँ।
अब ये अलग-अलग रास्ते कहीं भी ले जाए।
बस अंत इतना हो कि सुन सकूँ
she lived with no regrets.

***

तोषी की लिखत आत्मकथात्मकता और निजी संस्मरणों से बनी है जो ऐसी दुनिया का निर्माण करती है जहाँ लिखत और लिखने वाले में किसी तरह का भेद नहीं रह जाता। उनसे toshi.pandey01@gmail.com पर बात हो सकती है। 

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