न से नारी ::
कविताएँ : मीना कंदासामी
अनुवाद एवं प्रस्तुति : स्मृति चौधरी
मीना कंदासामी की कविताएं हमारे समाज में अंतर्निहित जाति–व्यवस्था के खिलाफ प्रतिरोध हैं. जातिवाद और पितृसत्ता से पीड़ित, कंदासामी अपनी कविताओं में एक दलित महिला होने के अनुभव के बारे में लिखती हैं. उनकी हर किताब हमारे समाज के लिए एक आइने की तरह है. ‘मिस मिलिटेंसी‘ और ‘टच‘ उनके सबसे लोकप्रिय कविता संग्रह हैं. इसके अलावा उन्होंने तीन उपन्यास भी लिखे हैं – ‘द जिप्सी गॉडेस‘, ‘वेन आई हिट यू‘ और ‘एक्सक्विज़िट कैडवर्स‘ .
वृत्तांत
मैं अपने मकान मालिक का नाम ले कर
तुम्हारे सामने विलाप करूँगी,
और तुम मेरे पके हुए इशारों से
समझ जाओगे –
मेरी फटी साड़ी, मेरे बिखरे बाल,
मेरी दबी हुई रुलाई, और मेरा प्रतिरोध-रहित समर्पण.
उस समय, मैं अछूत नहीं थी.
मैं आसमान को श्राप दूंगी
और चीखूंगी: चिल्लाऊंगी तुम पर उन शब्दों में
जिनसे विनाश बरसे और
तुम्हें पक्का समझ आएगा –
वह पुजारी, उसकी अय्याश आँखें
उसकी नज़र जो निर्वस्त्र कर दे, नापाक कर दे
चार फ़ीट दूर रह कर मैं कुछ भ्रष्ट नहीं कर रही थी.
और मैं अपने ही मर्द के खिलाफ
कुछ भी, कुछ भी
कैसे कहूँ?
कैसे?
इसलिए मैं खामोशी में पनाह ढूंढ़ती हूँ
और उसे एक नकाब की तरह पहन लेती हूँ.
एकांत में मैं एक असंगत सैलाब में डूब जाती हूँ.
बंदी
मर्द ऐसी औरतों से डरते हैं जो कविताएं लिखती हैं और खतरनाक पूर्व सूचनाएँ बन कर आती हैं. वे ये नहीं समझ पाते कि ये औरतें क्यों, और किसके लिए अपना मुंह खोलेंगी, और चूंकि वे उनकी आवाज दबा नहीं पाते, तो वे उन्हें चुप करा देते हैं.
कुलामाई के तोते को बलि के बकरे के माँस चस्का लग गया, तो कुलामाई को एक डब्बे में बंद करके कावेरी में बहा दिया गया.
उसने एक लोकप्रिय ढोंगी बाबा के ब्रह्मचर्य को छेड़ा, तड़पाया, तो उसे (miss success–village) कुएँ में फेंक दिया गया.
दुर्गा दुर्गम थी, पहुंच से बाहर थी, तो, उसे एक लोहे की पेटी में बंद कर दिया गया और वह पेटी नदी में गहरे डूब गई. जब भी कोई आदमी या औरत उस तक पहुँचने की कोशिश करता, तो एक पहले से रिकार्ड की हुई आवाज़ में उन्हें सूचना दी जाती – दुर्गा अभी नेटवर्क कवरेज क्षेत्र से बाहर हैं.
वह निर्वासित थी और उसमें एक प्रभावशाली वक्ता होने की सारी काबिलीयत थी. वह शायद एक दिन सांसद बनती. इसलिए उसके ब्राह्मण मंगेतर के निर्देश पर उसके सर में कील ठोक कर, उसके ताबूत को एक रोती हुई नदी में बहा दिया गया.
क्योंकि वह सांवली थी और खून की प्यासी थी, काली ने भी खुद को एक मंदिर में कैद पाया.
और बाकी औरतों से कुछ ख़ासा डरने की बात नहीं थी, तो उन्हें घर में कैद कर दिया गया.
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स्मृति चौधरी कवि-अनुवादक हैं और फिलवक्त जेएनयु से भाषा विज्ञान में स्नातकोत्तर कर रही हैं . उनसे choudharysmriti9@gmail.com पर बात हो सकती है.