कविताएँ ::
सपना भट्ट
पुस्तकालय में स्त्री
दुनिया का सबसे सुंदर दृश्य है
पुस्तकालय में अपनी धुन में डूबी और
तन्मय होकर पढ़ती हुई एक स्त्री को देखना।
मन पसन्द किताब ढूंढती हुई स्त्री को
दुनिया के किसी मानचित्र की आवश्यकता नहीं।
वह स्वयं को ही पढ़ने और गढ़ने की नीयत से
अपने ज़हन-ओ-दिल को वर्क दर वर्क खोलती है
और एक दिन स्वयं को पा लेती है।
जीवन की घनघोर विसंगतियो में
कोई सहारा हो न हो।
घने अंधकार में कोई दीपक जले न जले;
फिर भी उसकी हथेलियों से फूटता है
किताबों से झरता प्रकाश।
उसके मार्ग में झिलमिलाते हैं
असंख्य इल्म के जुगनू।
जानती हूं कि
स्त्रियों के हाथों को चूड़ियां दरकार नहीं।
चाहती हूं कि
उन्हें किताबों का उपहार मिले।
किताबें ही उनका श्रृंगार,
उनका सबसे बड़ा हथियार हों।
कोई ठगे नहीं, कोई हक़ न मारे
इसके लिए औरतों को वकीलों न्यायालयों को नहीं,
किताबों को साथी करना होगा
किताबें जीवन के घटाटोप से
स्वतः ही बाहर निकलने का रास्ता दिखाती हैं।
निर्भय और निष्कम्प होकर जीना सिखाती हैं।
एक स्त्री के हाथ मे किताब
एक निर्भार अवलम्ब है कठिन परिस्थितियों में।
सर पर एक भरोसेमंद सायबान है,
आंधी पानी के झंझावातों में।
जब मति विलुप्त और चेतना शून्य हो
मन मे गहराता हो तमस हरदम
किसी इष्ट देवता या पितरों को पुकारने की नौबत आए
तो मन को धीरज देना
और स्वयं को साहस बंधाकर
बस यह दोहराना कि
कि मेरे पास अंधेरे से लड़ने को
मशाल नहीं है;
किताबें हैं।
जो हज़ार मशालों को लौ देती हैं।
शुक्रिया
उन पीड़ाओं का शुक्रिया !
जिनका अंतर्नाद शिराओं में रक्त की तरह बहा
और जिसने दुःख को स्मृति में
प्रेम की तरह दर्ज़ करना सिखाया।
दुःख सहने और कहने के मध्य
ली गयी उस लंबी उसाँस का शुक्रिया!
जिसने अपने और परायों का भेद बताया।
उन भूलभुलैया रस्तों का शुक्रिया!
जिन्होंने मंज़िल तक भले ही न पहुंचाया
किन्तु जिन्होंने जूतों पर नहीं
छाले पड़े पैरों पर भरोसा करना सिखाया।
उन अभावों का शुक्रिया
जिनकी दैनंदिनी ने
दुर्दिनों को शिक्षक बनाया और
इच्छाओं और ज़रूरतों का ज़रूरी अंतर बतलाया।
उन बैरियों का शुक्रिया!
जिन्होंने हमदर्द बनकर
खंजर की नोक से ज़ख़्म सहलाया
और खोखले रिश्तों से मुक्ति का रस्ता दिखाया।
उस प्रीत का भी बहुत शुक्रिया
जिसकी उपेक्षा के शर ने
मेरी बावरी कामनाओं का जल सुखाया।
उस अकेली नीरव घड़ी का शुक्रिया
जिसने प्यार और भरम का फर्क़ समझाया।
और अंत मे इस हठीले जीवट का शुक्रिया !
जिसने जीने में मेरा हाथ बंटाया !
रेत में भी पानी की उम्मीद बचाई
कांटों में मुस्कुराने का सलीक़ा सिखाया
कविताओं में दुःख
काश प्रेम के कठिन दुःखों को
भाषा मे बरतने की तरक़ीब सिखा दे कोई
तो किसी दिन बस यह कहने को
करूँगी तुम्हें फोन
कि असह्य पीड़ा में हूँ।
या यह अधीर वाक्य उलीचने को
कि तुम्हारी याद आती है।
ये भी
कि अन्तस् में
तुम्हारा दुःख इतना भर गया है कि
मैं भीतर से रीतती जा रही हूं।
और यह भी कि
तुम्हारी विराटता के भारी पत्थर तले
मेरा कोमल हृदय छटपटाता है।
जानती हूं अधिकार नही है,
फिर भी तुम पर खीझना चाहती हूं।
हमारे बीच के जटिल अंतर को ।
एक पल के लिए भूल जाना चाहती हूं
किन्तु
मेरे शब्द मेरी ही बात काटते हैं।
मेरा अवश मन
मेरे ही स्वाभिमान के आड़े आता है।
मेरी कमियाँ,
मेरी सारी खूबियाँ खा जाती हैं
तुम्हारे हेलो कहते ही
मेरी ज़बान पत्थर की हो जाती है
और मेरे पास कहने को
इससे अधिक कुछ नहीं बचता
कि सुनो! मैं तुमसे प्यार करती हूं।
अब कविताओं में तुम्हारा दुःख नहीं समाता
अब मैं रोज़ तुम्हारे भीतर मरती हूँ।
पलायन
बाहर देह की मिट्टी भींजती रहती है
भीतर मन को शोक गलाता रहता है
पीड़ा के अक्षुण्ण धूसर दाग़ों से
आत्मा बदरंग होती जाती है।
यह कैसा असंभव आकर्षण है
तुम्हारे अभाव का कि
सारी वांछाएँ तुम पर आकर खत्म हो जाती हैं
मैं रूप, माधुर्य और लावण्य से भरी हुई होकर भी
प्रार्थनाओ में तुम्हे माँगती हुई
कितनी असहाय और दरिद्र दिखाई देती हूँ।
निमिष भर को सूझता नहीं
कि प्रेम करती हूं या याचना !
या याचनाओं में ही स्वयं के स्मृतिलोप की कामना ।
जीवन कठिन परीक्षाओं का सतत क्रम है
देह को देह ही त्यागती है
प्रेम को प्रेम ही मुक्त करता है।
तुम पुरुष हो सो ब्रह्म हो।
मैं स्त्री हूँ सो भी वर्जनाओं में।
कहीं भाग जाना चाहती हूं
लेकिन कहाँ ?
स्त्री की सहचरी तो उसकी छाया भी नहीं
मृत्यु भी प्रेम के मारे की बांह नहीं धरती।
तिस पर स्त्री देह लेकर पलायन की इच्छा रखना
उतना ही दुष्कर है,
जितना चोरी के बाद
घुंघरू पहन कर चलने पर
पकड़े न जाने की इच्छा करना।
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सपना भट्ट ने अपनी कविताओं से हाल के दिनों में हिंदी काव्य-संसार में सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई है और अब वो एक जाना-पहचाना नाम हैं। 25 अक्टूबर को कश्मीर में जन्मी और उत्तराखंड में पली-बढ़ी सपना अंग्रेजी और हिंदी से परास्नातक हैं और उत्तराखंड में शिक्षिका हैं। उनसे cbhatt7@gmail.com पर बात हो सकती है।
मरहम सी है सारी कविताऐं , दर्द आँखों से टपकता रहा, मन अपराजिता को भी तत्क्षण याद करता रहा।
सपना आपकी दुनियाँ विशाल है, यूँही लिखती रहें, बहुत शुभकामनाएं।
इन कविताओं में प्रेम में दुःख की विविधताएँ अभिव्यक्त हुई हैं। ये विविधताएँ ही इन्हें एकांगी होने से बचाया है अन्यथा प्रेम और दुःख पर लिखी गई अधिकतर कविताएँ प्रायः अपनी आत्ममुग्धता और मोनोटोनी के कारण अपना असर खो बैठती हैं। ‘पुस्तकालय में औरत’ इनमें सबसे सशक्त कविता है।
महोदय नमस्कार।आपका ईमेल मिल सकता है क्या