
नए पत्ते:: कविताएँ : रौशन पाठक ढूँढती हूँ तुम में, तुमको। जब भी तुमसे मिलता हूँ, तुम मेरी कमीज़ पर कुछ ढूँढती हो। कुछ रेशे, कुछ धागे, उलझे सवाल और कुछ रौशनी के दाग़। दूर बैठकर निहारती हो मेरा चेहरा और पास बैठे ढूँढती हो मेरे स्वेटर में अधबुने, टूटे, काटे गए धागे। जैसे ढूँढती है एक बंजारिन बारिश में सूखी लकड़ियाँ। जैसे कुम्हारिन चुनती है माटी से कंकर, और बाशिंदे पौधों से कपास। चुनती हुई तुम, भर...