Taggadya

लीजिए, अब आप प्रेमचंद से बात कर रहे हैं

गद्यांश :: प्रेमचंद प्रेमचंद के बेटे अमृतराय द्वारा लिखी गई अपने पिता की जीवनी बहुत सुंदर और सुपाठ्य है, जिसको पढ़कर हमें मुंशीजी के बचपन और फिर समूचे जीवन में झाँकने का सुअवसर मिलता है। प्रेमचंद का जीवन उनकी लिखी दास्तानों की ही तरह मर्मस्पर्शी वृतांतों और मनुष्यता की गहराइयों से भरा हुआ है। प्रेमचंद के जीवन में झाँकना, आदमी के आईने में ताकने जैसा है, जिससे इस आधुनिक समय में बिखरते हुए नैतिक...

हर दिन आसमान को आशा भरी निगाह से निहारता हूँ

डायरी : गिरीन्द्रनाथ झा न बरखा, न खेती, बिन पानी सब सून खेत उजड़ता दिख रहा है. बारिश इस बार धरती की प्यास नहीं बुझा रही है. डीजल फूँक कर जो धनरोपनी कर रहे हैं और जो खेत को परती छोड़कर बैठे हैं,  दोनों ही निराश हैं- हर दिन आसमान को आशा भरी निगाह से निहारता हूँ लेकिन…किसानी कर रहे हमलोग परेशान हैं. फ़सल की आस जब नहीं दिख रही है, तब ऋण का बोझ हमें परेशान कर देता है. नींद ग़ायब हो जाती है. खेती नहीं...

साप्ताहिक प्रहसन

गद्य : आदित्य शुक्ला (शाम के सात बजे आज साप्ताहिक प्रहसन सुनिए…) “जरा हटके, जरा बचके ये है बम्बे मेरी जां” *फ़िल्मी वह एक स्कैंडेलस शाम थी. सब लोग इस दुनिया में व्याप्त केओस से परेशान थे. लेकिन आखिरकार वे ही लोग उस केओस के वाहक थे. वहां उपस्थित सभी लोग जंगली सूअरों के मुखौटे पहनकर घूम रहे थे. उन सब की आँखों से लालसा, लालच और ईर्ष्या झलक रही थी. वे सभी किसी न किसी सेन्स ऑफ़ अर्जेंसी में थे और...