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जंगल में सामुदायिक रंगमंच और रेबेका : हृषीकेश सुलभ
वह सन 2013 के अक्तूबर महीने की ढलती हुई दोपहर थी. जब मैं स्वप्निल के साथ बर्कली से चला, सेन फ्रांससिको के समुद्र–तट से रोज़ उठनेवाला कुहासा खाड़ी को पार करते हुए बर्कली के आकाश पर छाने लगा था. चमकती हुई धूप नरम हो रही थी और हवाओं का शोर तेज़ हो रहा था. हम बे–ब्रिज से सेन फ्रांसिसको पहुँचे और फिर प्रशांत महासागर के पश्चिमी–तट के किनारे–किनारे हाई–वे कैल वन से सांता क्रूज़ होते हुए मोन्टेरे तक गए. राह में रुक कर सूर्यास्त देखा,….सांता क्रूज़ फिशरमैन वार्फ में रेड वाइन के साथ तली हुई समुद्री मछली रेड स्नैपर का स्वाद लिया. मोन्टेरे पहुँचते–पहुँचते रात हो चुकी थी. हमने लगभग ढाई सौ किलोमीटर की दूरी तय की थी. हमारा ठिकाना बना ‘वेगा बान्ड इन‘. मोन्टेरो की सुबह चमक भरी थी. तेज़ और सर्द हवा के झोंके और चाँदी की तरह चमकती हुई धूप. गुजरात से आकर बाबूभाई से बॉब बन चुके ‘वेगा बान्ड इन‘ के मैनेजर ने खीझ के साथ हमें विदा किया. वह अपनी भारतीय पहचान छुपाने में असफल रहा था और यह बात उसे चुभ रही थी. मोन्टेरे से कार्मेल की सीधी दूरी बहुत कम थी, पर हमें ‘सेवेन्टीन माइल ड्राइव‘ नामक एक ख़ास रास्ते से गुज़रते हुए कार्मेल जाना था. इस रास्ते में साँप–सीढ़ी के खेल की तरह समुद्र और वन एक–दूसरे में गुँथे हुए हैं, जिनसे गुज़रते हुए खो जाने को जी ललचता है.
हमारे कार्मेल पहुँचते–पहुँचते सूरज बीच आसमान में,….ठीक हमारे सिर के ऊपर आ चुका था. कार्मेल,…समुद्र–तट पर सघन वन के बीच बसा एक छोटा–सा कस्बाई शहर. हम यहाँ फॉरेस्ट थिएटर ढूँढ़ रहे थे. बित्ते भर का शहर पलक झपकते गुम हो गया और हम घने जंगल के बीच थे. विशाल वृक्षों और गझिन झाड़ियों के बीच ऊपर उठते…..नीचे ढुलकते घुमावदार रास्तों की अनगिन भाँवरों से होते हुए हम ‘फॉरेस्ट थिएटर‘ पहुँचे.
फॉरेस्ट थिएटर में कार्मेल और कैलिफोर्निया के अन्य नगरों के नाट्य–समूह समय–समय पर अपनी नाट्य–प्रस्तुतियाँ मंचित करते हैं. इसकी देखरेख करने वाला फॉरेस्ट थिएटर गिल्ड युवाओं के लिए यहाँ अभिनय और संगीत प्रशिक्षण वर्कशाप भी लगातार आयोजित करता है. जंगल की नीरवता के बीच किसी तपःस्थली की तरह बने मुक्ताकाश रंगमंच पर पेसेफिक रिपर्टरी की प्रस्तुति शेक्सपीयर के नाटक ‘‘मिड समर नाइट्स ड्रीम‘‘ के मंचन की तैयारियों में अपने अभिनेताओं और तकनीकी दल के साथ जुटे थे निर्देषक स्टीफन मूरर. लगभग पचास फीट के अग्रभाग वाला विशाल रंगमंच हमारे सामने था. चारों ओर से चीड़ और साइप्रस के वृक्ष–समूहों से आच्छादित और प्रकाश तथा ध्वनि के आधुनिकतम उपकरणों से सम्पन्न. सामने थी दर्शक–दीर्घा. सीमेंट की आधारपट्टियों पर लकड़ी की बेंचें. मंच के दोनों कोने पर अलाव जलाने के लिए बने थे पत्थर के फायरप्लेस.
हमें रेबेका से मिलना था. रेबेका जस्टिन बैरीमोर. रेबेका इस रंगमंच और फॉरेस्ट थिएटर गिल्ड से लम्बे अरसे से जुड़ी हैं. इस सामुदायिक रंगमंच की गतिविधियों के संचालन में उनका व्यापक योगदान है और साथ–साथ वह यहाँ अपने नाटकों का मंचन भी करती रही हैं. पिछले सीजन में उन्होंने ‘‘हैमलेट‘‘ मंचित किया था. हम रेबेका से मिलने के लिए निर्धारित समय से कुछ पहले ही पहुँच गए थे. रेबेका रास्ते में थीं. उन्होंने फ़ोन पर कहा कि अगर हमने थिएटर देख लिया हो तो हमारी मुलाक़ात किसी कॉफी हाउस में भी हो सकती है और उन्होंने एक कॉफी हाउस का पता बताया.
कॉफी हाउस में रेबेका बहुत गर्मजोषी से मिलीं. हमने कई घन्टे साथ गुज़ारे. थियेटर, मनुष्य के जीवन संघर्ष, अमरीकी समाज, दुनिया की राजनीति, दुनिया के एक बड़े भूभाग में अमरीकी पूँजीवाद की नकारात्मक छवि, अमरीकी जन–जीवन को गहरे प्रभावित करनेवाली ऐतिहासिक राजनीतिक भूलों तक पर बेबाकी से रेबेका बातें करती रहीं. बातचीत का आरम्भ ही रेबेका ने एक उत्तेजक और मन के भीतर बहुत गहरे उतरने वाले वाक्य से किया – ‘‘ हमारा समाज एक पितृविहीन समाज है.‘‘ रेबेका के इस कथन में केवल परिवार का बिखराव ही नहीं छिपा था बल्कि, अतीत और वर्तमान की राजनीतिक प्रपंचों से उपजी पीड़ा भी शामिल थी. रेबेका बोलती रहीं, ‘‘हमारे परिवारों के बिखराव को पूरब के लोग, ख़ासकर भारत जैसे देश के लोग अजीब नज़रिए से देखते हैं. दुनिया इसे हमारी आर्थिक निर्भरता, शिक्षा , पूँजी और विकास तथा औरतों की स्वतंत्रता से जोड़कर देखती है. यह इकहरा सच है. इसे अब नए ढंग से विष्लेषित करने की ज़रूरत है. हमारे अधिकांश बच्चे सम्बन्धों में आनेवाले बिखराव के कारण माताओं के साथ पलते हैं. उन्हें पिता का सुख और साथ नसीब नहीं होता.….इसके अलावा संसाधनों पर एकाधिकार, राजनीतिक और सामरिक वर्चस्व की पिपासा ने हमें युद्ध की आग में झोंका है. मैं वियतनाम युद्ध के उन भयावह दिनों को भूल नहीं पाती कि कैसे हम अपने पिताओं, भाइयों और प्रमियों यानी अपने पुरुषों को युद्ध के लिए भेजते थे और फिर उनकी अपाहिज देह या लाशों की वापसी की त्रासद प्रतीक्षा करते थे. इस युद्ध ने हमें या समूची मानवता को क्या दिया? ….अविश्वास , भय, घृणा के सिवा और क्या मिला किसी को भी? …. मैं ही नहीं, आज अमरीका का आम नागरिक इन प्रश्नों से उबर नहीं पाया है. वियतनाम के बाद भी यह सिलसिला कई स्तरों पर जारी रहा….. नाइन एलेवन को लेकर भी नागरिकों के एक तबके में यह सन्देह है कि कहीं यह बुश प्रशासन का नाटक तो नहीं था! ‘‘ रेबेका पल भर को ठिठकती हैं. अपने भीतर उबलती हुई उत्तेजना पर मानो क़ाबू पाने का प्रयास कर रही हों. और क्षणिक चुप्पी के बाद वह भारत के रंगमंच के बारे में अपनी जिज्ञासाएँ प्रकट करती हैं और फॉरेस्ट थिएटर के मुक्ताकाशी रंगमंच तथा फॉरेस्ट थिएटर गिल्ड के बारे में विस्तार से बताती हैं.
‘‘कार्मेल एक बहुत छोटी सी जगह थी. बहुत थोड़े से लोग. बाहर से आकर यहाँ बसना आसान नहीं था. आवागमन के साधन नहीं थे. समुद्र का अनंत विस्तार और तटों पर दुर्गम पहाड़, घाटियाँ और सघन वन. घोड़ों की सवारी करके ही यहाँ पहुँचा जा सकता था…..और घोड़ों पर,……घोड़ों से चलनेवाली गाड़ियों पर सामान लादकर बोहेमियन यहाँ आए और उन्होंने इस जगह को आबाद किया. आज जहाँ फॉरेस्ट थिएटर बना है, वह कई अर्थो में बेहद महत्त्वपूर्ण है. वह साक्ष्य है हमारे विकास का और अपने को अभिव्यक्त करने के मानवीय प्रयासों का. यह रंगमंच इस बात का भी साक्ष्य है कि आर्थिक या भौतिक विकास ही मानव–समाज का लक्ष्य नहीं रहा है. मनुष्य ने अपने बौद्धिक विकास के लिए कलाओं और प्रकृति से सौन्दर्यबोध अर्जित किया है. इस भूमि पर कभी नेटिव अमरीकी लोग रहा करते थे और वे अपने मनोरंजन के लिए यहाँ नाट्य या करतब दिखाया करते थे. उनके बाद भी यह परम्परा कायम रही. जब इन जंगलों पर बाहर से आए लोगों ने कब्ज़ा किया, तब भी यह स्थल इसी काम के लिए उपयोग में आता रहा. कार्मेल बोहेमियन समुदाय के लोगों का ठिकाना था. इन जंगलों पर जिन ताक़तवर लोगों यानी रीयल एस्टेट फार्मर्स ने कब्ज़ा किया, उन्होंने बोहेमियन लोगों के प्रदर्षन के लिए इस स्थल को उपलब्ध रहने दिया. यह स्थल तब से आज तक सामुदायिक सक्रियता का केन्द्र बना हुआ है. यह विधिवत रूप से सन् 1910 में स्थापित हुआ. इसके पहले यह मात्र एक ढलानवाली भूमि थी, जहाँ प्रदर्शन होता था. यहाँ मुक्ताकाश रंगमंच बनाने का ख़्याल सबसे पहले लेखिका मेरी ऑस्टिन को सन् 1908 में आया. यह एक औरत का ख़्याल था यानी एक औरत की भविष्य–दृष्टि और कल्पना.‘‘ …….यह कहते हुए रेबेका के का चेहरा दीप्त हो उठता है. वह मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखती हैं, चुहल भरे अंदाज़ में. कहती हैं ‘‘………..लिंगभेद में मेरा विश्वास नहीं, पर आप मानेंगे कि औरतों की उपस्थिति ने इस संसार को सुन्दर और कल्पनशील बनाया है…हाँ, तो… मेरी ऑस्टिन की इस कल्पना को कवि–नाटककार हर्बट हेराल और लेखक माइकेल विलियम्स ने समर्थन दिया और सहयोग किया. उन्होंने एक मुक्ताकाश रंगमंच की कल्पना की, जहाँ स्थानीय लोग नाटक मंचित कर सकें और वे नाटक में शामिल विविध क्रियाकलापों … अभिनय, निर्देशन, प्रकाश , मंच–सज्जा आदि का स्वाद ले सकें. इसके लिए उस समय तक कार्मेल में अपने प्रभाव का पूरी तरह विस्तार कर चुके रीयल एस्टेट फार्मों की मदद ली गई. शहर के ठीक बीच में फैले चीड़ और साइप्रस के जंगलों के बीच प्रकृति की गोद में रंगमंच की स्थापना उस समय के अमरीकी समाज के लिए एक विलक्षण उपहार था। पहला रंगमंच चीड़ के दो विशाल गगनचुम्बी वृक्षों के बीच ढलानवाली भूमि पर बना. चीड़ के इन वृक्षों की डालियों का फैलाव अद्भुत था और इनके आपस में मिलने से लगभग साठ फीट का प्रोसिनियम आर्क बनता था. इस रंगमंच पर कोई यवनिका नहीं थी और प्रकाश के लिए उन दिनों बिजली भी नहीं थी. मंच पर मशाल और मंच तक पहुँचने के लिए रास्तों में जगह–जगह अलाव जलाए जाते थे. मंच के अग्रभाग में दोनों तरफ़ पत्थरों के फ़ायर प्लेस बनाए गए थे, जो आज भी पहले की तरह मौजूद हैं और प्रदर्शन की हर शाम जलाए जाते हैं. सन् 1910 में यहाँ मंचित पहले नाटक ‘डेविड‘ को देखने के लिए एक हज़ार जुटे. कॉन्स्टान्स स्किनर के लिखे इस नाटक को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के गार्नेट हाल्मे ने निर्देशित किया. यहाँ लेखक जैक लंडन आए. वह एक ख्यात वामपंथी थे और इस रंगमंच के विकास को उनकी उपस्थिति और उनकी गतिविधियों से मदद मिली। समुदायों के लिए रंगमंच की स्थापना को लेकर उनकी अपनी अवधारणाएँ थीं, जिससे इस रंगमंच को विचारों का एक और द्वार मिला. सन् 1929 में जब मंदी का दौर आया, जिसे ‘ग्रेट डिप्रेशन‘ कहा जाता है, इस रंगमंच को चलाना मुश्किल हो गया. भूमि के मालिक ने इसे स्थानीय कार्मेल प्रशासन को सौंप दिया और प्रशासन ने सन् 1937 में इसे कार्मेल की जनता के लिए सार्वजनिक सम्पत्ति के रूप में घोषित किया. ढलानवाली भूमि पर लकड़ी से बने मुक्ताकाश रंगमंच की यह संरचना वर्षा, धूप, समुद्री हवाओं और मौसम की प्रतिकूलताओं की मार सहती हुई धीरे–धीरे नष्ट होने लगी. स्थानीय रंगकर्मियों ने इसके लिए धन एकत्र करना शुरु किया और इसके संरक्षण के लिए रंगमंच के विश्व –समुदाय से अपील की. डेम जुडिथ एंडरसन अपनी प्रस्तुति लेकर आईं और उन्होंने अपने प्रदर्शन से धन एकत्र किया. उन्होंने इसी रंगमंच से अपना रंगमंचीय जीवन आरम्भ किया था और प्रसिद्ध हुई थीं. उनकी वापसी और प्रदर्शन से इतना धन एकत्र हुआ कि इसका पुनर्निर्माण किया जा सके. इस रंगमंच की अवधारणा के केन्द्र में समुदाय था और इसका जीवित रहना समुदाय से इसके परस्पर सम्बन्धों पर निर्भर करता था. आज भी यह समुदाय के साथ अपने गहरे और आत्मीय सम्बन्ध के कारण जीवित है.‘‘
रेबेका जस्टिन बैरिमोर अभी फॉरेस्ट थियेटर गिल्ड की अध्यक्ष हैं. रोचेस्टर, न्यूयार्क में पली–बढ़ी रेबेका के मन में नृत्य और अभिनय के लिए बचपन से ही गहरा आकर्षण था. उन्होंने अभिनय के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया. थिएटर में अभिनय करने के अलावा उन्होंने लम्बे समय तक फिल्मों और टेलिविजन के लिए भी काम किया. अब वह पूरी तरह रंगमंचीय गतिविधियों को समर्पित हैं. कार्मेल में उनकर भरा–पूरा परिवार हैं. उनकी 90 वर्षीय माँ भी उनके साथ ही रहती हैं. रेबेका अमरीकी समाज में बिखरते परिवारों और छीजते मानवीय सम्बन्धों को लेकर बहुत चिन्तित दिखीं. बातचीत के क्रम में बार–बार परिवार आता रहा. लम्बी बातचीत का सिलसिला जब ख़त्म हुआ, दोपहर ढलने को थी. हम सब विदा हुए. मैंने फिर आने का वायदा किया. विदा के क्षण अक्सर भावुकता भरे होते हैं. इस मुख़्तसर–सी मुलाक़ात ने रेबेका को भी भावुक किया था और अमरीकी समाज के प्रति मेरे पूर्वाग्रहों की एक परत पिघल गई थी. कुछ दूर जाने के बाद मैंने पीछे मुड़कर देखा. रेबेका हम दोनों को अपने से दूर जाते हुए निहार रही थीं. कार्मेल से विदा होने से पहले मैं एक बार फिर जंगल के बीच बनी उस रंगस्थली को भर आँख निहारने जा रहा था.