कविताएँ ::
सूरज सरस्वती
प्रेमाक्षर
कितनी ध्वनियां
कण्ठ से निकलने से पूर्व ही
विलुप्त हो गयीं
कितने ही रस, छंद, अलंकार
श्वेत पृष्ठ पर
कलरव करते रहें
न जाने कितने स्पर्श
अंगुलियों की पोरों पर
अनवरत नृत्य करते रहें
कितना प्रेम
हम एक दूजे से करने का समय
निश्चित नहीं कर पाएं
तुम किसी निरीह की भांति
मुझसे मिली
मुझसे बातें की
और मैं किसी चिंतक की भांति
होने वाली घटनाओं की
सांख्यकी तैयार कर रहा था
जबकि मुझे तो बस
तुमसे पूछना था
तुम्हारे नाम का प्रथम अक्षर
परियों के देश में
यहाँ से दूर एक संसार
जिसकी कल्पना नहीं हुई हो
जिसकी रचना में अनवरत
ईश्वर लिखे जा रहा हो
नवीन दृश्य
तुम उसी अज्ञात संसार में जन्म लेना
यदि मेरी मृत्यु के पश्चात
मुझे विलीन होना पड़ा किसी देह में
मैं चुनूँगा तुम्हें
मुझे दूसरे संसार की भाषा तो नहीं आएगी
लेकिन मुझे स्मरण हैं
वहाँ भी कुछ होगा ऐसा
जिससे व्युत्पत्ति हो सकती है
एक अपरिचित अलंकार की
एक अज्ञात स्वर की
एक नवीन धुन की
पुनः प्रेम में विलय हो जाने के लिए
एक अनभिज्ञ कारण की.
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सूरज सरस्वती आते हुए कवियों में से हैं. उनकी कविताएँ अब तक अप्रकाशित रहीं हैं और अभी उनके कवि जीवन एवं अनुभव बोध का विस्तार होना है. यह रास्ता धैर्य की माँग करता है और परिश्रम की भी. सोशल मीडिया के उपहारों और तिरस्कारों से कवि जब तक बचा रहेगा, टिका रहेगा. उम्मीद है सूरज इसके प्रति गंभीर रहेंगे. इनसे 01suraj.maac@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.
सुन्दर