कविताएँ::
सौरभ राय
थोड़ा
आसमान में हवाई जहाज देखकर
बचपन की उमंग याद करूँगा
और डरूंगा भी थोड़ा
कहीं बम तो नहीं बरसा देंगे
बादल गरजेंगे
उन्हें सुनूंगा
पानी बरसेगा
उसमें अधनंगा होकर नाचूंगा
जहाँ लगी होगी चोट
वहीं बार बार ठुकवाऊंगा
इसी से दर्द की बनी रहेगी याद
जिन्होंने सबसे अधिक अवहेलना की
टिकट खरीदकर मिलने जाऊंगा उनसे
देखता रहूँगा दरवाज़े पर खड़ा
किसी लम्बी ट्रेन को गुज़रते
जिन लोगों ने मुझे धकियाया था
उतारी थी मेरी खाल
उम्मीद करूंगा
रखते होंगे मुझे अब भी याद
जैसे अखाड़े में मुक्केबाज़
सुस्ता लेते हैं एक दूसरे के कंधे पर थोड़ा
ठंडी आँखों से तापूंगा हाथ
पैदा करूँगा समुद्र में उछाल
उसमें डूबकर.
सिर्फ इसलिए
कि मछली नदी के भीतर
एक और नदी है
और चिड़िया
आकाश में फड़कता
एक और आकाश
या इसलिए कि तुम हँस रही हो
और दूर पहाड़ों की छलनी पर
छन रहा है कोहरा
मैं पेड़ और घाटी की चुप्पी के साथ
तुमसे बात कर रहा हूँ
मैं मेघ हूँ यहाँ वहाँ रोशनी कम बेशी करता हुआ
तुम पानी में चिरकाल से हिलती धूप
हम एक ही दृश्य के दो बिम्ब हैं
तुम मेरी हथेली पर बुन रही हो मकड़ी का जाला
मैं तुम्हारी काट से जब्त
चमकते रेशों के बीच चमकता
इस इंतज़ार में बौराया कि तुम्हें भूख लगे
और तुम मुझे खाओ.
खर्राटे
कितनी अनोखी है
देखा जाए तो एक साँस…
पहाड़ चढ़ता आदमी
चट्टान पर निढाल पड़ा हुआ
वो देह की मशीन में बज रहा है…
खुली मांद में गूंज रहा है
मन अचेतन
वो घरों में बज रहा है
वो बाल्टियों में बज रहा है
वो चाय के प्यालों में बज रहा है
उसके इशारे पर डोलते है धरती आकाश
चाहता है वो
दुनिया बदल दे…
नींद में वो सब कर देता है
जो नहीं कर सकता है
ठक्-ठक् आती है सिर्फ पत्थर रगड़ने की आवाज़
फैलती है जैसे जंगल की आग
वो जम्हाई लेता है.
***
सौरभ राय हिन्दी के सुपरिचित कवि और अनुवादक हैं. मूलत: झारखंड के सौरभ बंगलोर में रहते हैं. इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं, यायावर (कविता-संग्रह), कर्णकविता – बैंगलोर वासियों की कविताएँ (संपादन, आटा गलाटा प्रकाशन), तीन नाटक – अभिषेक मजुमदार (संपादन, ब्लूम्सबरी प्रकाशन), सोहो में मार्क्स और अन्य नाटक – हॉवार्ड ज़िन (अनुवाद, राजकमल प्रकाशन), ओस की पृथ्वी – तीन जापानी हाइकु कवि (संकलन व अनुवाद, वाणी प्रकाशन). अद्यतन कविता-संग्रह शीघ्र प्रकाश्य है. सौरभ ऑनलाइन पत्रिका ‘बंगलोर रिव्यू’ का सम्पादन भी करते हैं. उनसे sourav894@gmail.com पर बात हो सकती है.