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जतिन कुमार की कविताएँ :

1.तुम्हारे न होने की कविता

तुम्हारे न होते हुए,
तुम्हारे ख़यालों से शुरू हुआ दिन
मेरे कमरे में चुप्पी बिखेर देता है।

आलस से भरी दोपहर में
तुम्हारे चेहरे के अलग-अलग रंगों को
मैं अपनी आँखों के सामने देखता हूँ।

कुछ न करने की थकान
हफ़्तों तक मेरे शरीर में रहती है।

बेतरतीब पड़े बिस्तर से अपना मोबाइल उठाता हूँ
और तुम पर लिखी कविता जोर-जोर से पढ़ने लगता हूँ।

तुम्हारे जाने के बाद
दीवारें मेरी दोस्त बन चुकी हैं
रात में जब तुम्हारी यादें मुझे सोने नहीं देतीं
तब इन्हें छू लेता हूँ
गर्दन से बहते पसीने की बूँद
सरसराहट से पीठ की ओर चली जाती है
कभी इन्हें बेवजह ताकता हूँ, तो
कभी इनमें तुम्हारी स्मृतियाँ तलाशता हूँ।

बैठे-बैठे जब ऊब जाता हूँ, तो
बाहर चलने के लिए निकल जाता हूँ
जिसे जानता नहीं उससे बातें करने लगता हूँ
और अपनों को हफ़्तों तक फोन भी नहीं मिलाता।

रात को सोने से पहले कविताएँ पढ़ने लगता हूँ
उंगलियाँ कब मोबाइल ढूंढती हैं
और कब तुम्हारी तस्वीर मेरे सामने होती है
मुझे इसका अंदाज़ा भी नहीं लगता
तुम्हें देखते ही मेरी आँखें नम हो जाती हैं।

हाथों से पौंछे हुए आँसू जब जीभ को लगते हैं
तो वह मीठे स्वाद पड़ते हैं
वह अभी भी तुम्हारे होने की मिठास लिए हुए हैं।

इस दशा में प्यार के गाने भी
मेरा खूब साथ निभाते हैं
वह तुम्हें मुझसे अलग नहीं करते
वह तुम्हें मेरे और करीब ले आते हैं।

तुम्हारी यादों के सताने पर,
एक कोने में बैठ जाना
साँस न आना महसूस करना
पानी पीना और पहले ही घूँट का मूँह में रह जाना
कुछ भी बोलने की शक्ति खो बैठना
तुम पर लिखी आखिरी कविता का अधूरा रह जाना ।

तुम्हारा चले जाना
मेरी कविता का चले जाना है
तुम्हारा न होना तुम्हारे बहुत ज्यादा होने को सहना है।

2. कई दिनों से

कई दिनों से
मन में एक कविता फूट रही है
तितली और चिड़िया की कविता ।

मैं यह कविता लिखना चाहता हूँ
दर्ज करना चाहता हूँ इसे
उन्हीं पन्नों पर
जहाँ मैंने तुम्हारा तितली होना लिखा था।

रोज़ “तितली और चिड़िया” कविता की
शुरुआती पंक्तियाँ गुनगुनाता हूँ
और सोचता हूँ

आज तो इसे लिख ही लूंगा
परन्तु, मैं ऐसा नहीं कर पाता
रह-रहकर आती कविता के अंश मुझसे छूटने लगते हैं

घंटों कोरे पन्नों के आगे अपना माथा खपाता हूँ
मगर उंगलियाँ खामोश रहती हैं।
शायद तुम्हें तुम्हारा चिड़िया लिखा जाना पसंद नहीं

तुम तितली रहना चाहती हो
तुम्हें उड़ना पसंद है
पसंद है मेरे साथ वो खालीपन से भरी दोपहरें बिताना
जिनमें तुम मेरी डायरी के कोरे पन्नों पर उतरकर
मुझसे बातें किया करती थीं
और मैं मेरे द्वारा लिखे गए शब्दों को काट दिया करता था
मैं तुम्हें चिड़िया बनाना चाहता था
अपने ढंग से तुम्हें जीना चाहता था

अभी भी मैं वही कर रहा हूँ
तुम जो हो उससे अलग तुम्हें लिखना चाहता हूँ
यही वजह है
जो मेरी उंगलियाँ खामोश हैं और मेरी डायरी का पन्ना कोरा।

3. दृश्य

मैं उन दृश्यों को शब्द देना चाहता हूँ जिनमें मैंने तुम्हें देखा है
या जिनमें मैं तुम्हें देखने की इच्छा रखता हूँ।

  • वह हल्की उगी हुई घास जहाँ तुम्हारी उपस्थिति ने मुझे हमेशा उत्साहित किया है
  • घास पर एक छोटे झुंड में बैठी हुईं तुम
  • झुंड को सिर्फ तुम्हें देखने के लिए देखता हुआ मैं
  • चुपके से तुम्हारे बगल बैठकर तुम्हारी कही बातें सुनता हुआ मैं
  • पूरी इच्छा के साथ अपने दोस्तों को कविता सुनाती हुईं तुम
  • मेरे स्वप्न में मेरे लिए कविता कहती हुईं तुम
  • मेरी लिखी कविता को चूमने पर तुम्हारे मोबाईल पर पड़े होंठों के निशान…

घास में बैठे हुए हम दोनों की दूरी का दृश्य
मुझे अच्छा लगता है
एक तरफ जहाँ तुम्हारे पास होते हुए मैं तुम्हारी साँसे सुनता हूँ
वहीं बहुत थोड़ी दूरी से
मैं तुम्हारे चेहरे की मासूमियत और सुंदरता भी ठीक से देख पाता हूँ
हमारी मुलाकात की मेरी “अकेली इच्छा” का दृश्य अभी घटना बाकी है

मैं उसे शब्द नहीं दूंगा
मैं उसे लिखने से बेहतर जीना पसंद करूंगा।

4. मेरे निज में तुम्हारा प्रवेश

एक पार्क है
जिसमें मैंने अभी-अभी प्रवेश किया है

पार्क की पगडंडी पर
बज़रि बिछी हुई है

उसपर चलते हुए
कचर-कचर की आवाज़
मैं अपने कानों में सुनता हूँ।

मैं बैठने के लिए
एक बेंच की खोज में हूँ
लेकिन हर तरफ़ मुझे सभी बेंचें
प्रेम में पड़े प्रेमियों से घिरी हुई मिलती हैं
मैं हताश हो जाता हूँ

उन्हें देखकर मुझे तुम्हारी याद आने लगती है
तुम्हारी याद हद से बढ़ जाए
उससे पहले मैं तुम्हें अपने बदन से झाड़ देता हूँ
मानो अपने कपड़ों से धूल झाड़ रहा होऊं

आगे चलते हुए मुझे एक छोटी बच्ची दिखाई दी है
अकेली,
वह फूल-पत्तियों से खेल रही है
मैं उसके पास जाता हूँ
उसकी उंगलियाँ अपने हाथों में लेता हूँ
उंगलियाँ देखते हुएमुझे फिर तुम्हारी याद आ जाती है
मैं उस लड़की के गालों को छूता हूँ

वह मुस्कुरा देती है
मैं चल देता हूँ

मैं देखता हूँ मुझे
एक रिक्त बेंच दिखाई दे रही है
मैं उसपर अपने कुल्हे टिका लेता हूँ

बेंच पर बैठे हुए
मैं अपने आसपास मौजूद चीजों को बड़ी बारीकी से देखता हूँ
फूल-पत्तियाँ पेड़-पौधे,
रिश्ते ऐसे जैसे कोई सौदे

मैं अपने बैग से डायरी निकालता हूँ
एक कविता लिखना शुरू करता हूँ
मेरे निज में तुम्हारा प्रवेश।

5. त्रासदी

आज एक सपना देखा है
जो कल कुछ और था
और जो कल कुछ और होगा
नींद स्थिर है
वह नहीं बदलती
आज भी वही है
कल भी वही होगी
जैसे प्रयास नहीं बदलते सिर्फ परिणाम बदलते हैं
कभी जीत तो कभी हार
और कभी न जीत, न हार
दोनों के न होने पर
त्रासदी घटती है
जो बहुत ही दुखदायी है।

•••

जतिन कुमार की उम्र अभी बीस वर्ष है और उनकी कविताओं में उनकी उम्र का खिच्चापन समाया हुआ है। जतिन मथुरा, उत्तर प्रदेश के रहनेवाले हैं और शहीद भगत सिंह कॉलेज से स्नातक कर रहे हैं। उनसे jatinkumar00637@gmail.com पर बात हो सकती है।