मिलेना के नाम काफ़्का के ख़त; कुछ अंश
अनुवाद और प्रस्तुति : उत्कर्ष
फ्रान्ज़ काफ्का बीसवीं सदी के प्रमुख लेखकों में से हैं. उनके लेखन का विस्तार यथार्थ और रहस्य के बीच चहलकदमी करता हुआ आमतौर पर ऐसे चरित्रों के इर्दगिर्द घूमता है जो अस्तित्व के प्रश्नों से दो-चार होते नजर आते है. प्रस्तुत अंश अपनी प्रेयसी मिलेना को लिखे गए उनके खतों से लिया गया है. जिसमें प्रेम और जीवन के प्रति उनकी गूढ़ दृष्टि की झलक दिखाई देती है.
“तुम्हारा
अब तो मैं अपना नाम भी खो रहा हूँ- यह छोटा होता जा रहा था, बीतते समय के साथ और छोटा और यह अब है : तुम्हारा”.
“मैं मलिन हूँ, मेलिना, बेहद मलिन, और इसीलिए मैं निर्मलता को लेकर इतना शोर करता हूँ. कोई इतना प्रगाढ़ नहीं गाता जितने वो जो नर्क में हैं; उसके गाने को ही हम फरिश्तों का गीत कहते हैं.”
” मैं एक बड़े ख़तरनाक रास्ते पर हूँ, मिलेना. और तुम अडिग एक दरख़्त के पास खड़ी हो, युवा, सुंदर, तुम्हारी आँखें अपनी आभा से अपने अधीन करती इस संघर्षरत संसार को.”
“मैं थका हुआ हूँ, और किसी चीज़ के बारे में नहीं सोच सकता, और बस चाहता हूँ अपने चेहरे को तुम्हारी गोद में, मेरे सिर पर तुम्हारे हाथ का स्पर्श महसूस करते, और इसी तरह रह जाना अनंत काल तक.”
“एक तरह से, तुम कविता का सार-तत्व हो; धुंधली गूढ़ता से भरी हुई – जिसे समझते मैं पूरा जीवन बिता देना चाहता हूँ. तुम्हारे मर्म में से स्फुरित होते शब्द और उनकी धूल लिए जाती तुम, अपने ओजमयी व्यक्तित्व के छिद्रों में.”