कविताएँ : तो हू
अनुवाद : अरुण कमल

झाड़ू की आवाज

गर्मी की रात
जब कीड़ों की आवाज़ भी
सो चुकी है।
मैं सुनता हूँ
‘त्रान फू’ पथ पर
नारियल के झाड़ू की आवाज़
इमली के पेड़ों को नींद से उठाती
गर्मी की रात में
धूल बुहारती।

जाड़े की रात
जब शीत लहर थमी है तुरंत
मैं देखता हूँ रुककर
सुनसान पथ पर
वो औरत
लोहे की बनी
काँसे की बनी
वो औरत
बुहारती है धूल।
और सुबह उसी सड़क से निकलती
फूलों से भरी गाड़ियाँ
रंगों और खुशबू से भरे फूल
उसी पथ पर।

लेकिन फूलों, न भूलो
उस औरत को जिसने
रात भर जग कर पोंछी है गंदगी।

मेरी प्रिय, भूलना मत

झाड़ू की आवाज़
वो बुहारती औरत
गर्मी की रात
जाड़े की रात,
सुबह और शाम
आगे और पीछे
रास्ते चमकाती वो
औरत
सौन्दर्य की राह
कभी भूलना मत।

मेरी चिड़िया

मर गयी मेरी चिड़िया
छोटी गौरया, नये नये पंख वाली।
कल तक वह फुरफुरा रही थी पंख अपने
लेकिन एक ही दिन की जेल ने समाप्त कर दिया उसका जीवन।

मैंने सोचा था वह मेरा अकेलापन कुछ हरेगी
मैंने उसे बेहद प्यार किया।
लेकिन यह तो अविचारा प्यार था, निर्मम निष्ठुर!
मैं तो जेल में था ही।
उसे क्यों जेल में डाल दिया ?

गान मत रोको
एक पल के लिए भी किसी पक्षी का गान मत रोको
फिर से उसे आकाश और धूप में मत हो जाने दो।

फिर से उसे भेज दो हवा और बादलों में

एक एक दाना चावल खिलाया उसे मैंने,
लेकिन खोये आसमान के बराबर कुछ भी नहीं।
मैं समझा क्यों नहीं? क्यों?

मर गयी चिड़िया जो और कुछ नहीं
बस चाहती थी जीना।

माताएँ

यह सच है कि मेरी कविता में इतनी माताएँ हैं।
शायद इसलिए कि जब मैं बारह साल का था तभी मेरी माँ मर गयी।

अपनी माताओं के द्वारा ही
एक जाति अपने को बार-बार जीवित करती है।

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प्रसिद्द कवि अरुण कमल द्वारा अनुवाद की गयीं महान वियतनामी कवि तो हू की कविताएँ, किसी समय ‘आवर्त की प्रस्तुति’ में पुस्तिका के आकार में छपीं थीं। वियतनाम युद्ध के समय तो हू फ़्रेंच और अमेरिकी सरकारों के विरुद्ध सबसे प्रखर साम्यवादी आवाज़ों में थे। महान कविता बेशुमार होती है और सदैव कुछ न कुछ देती ही है। भले ही समय के साथ संदर्भ बदलते हों, उसकी प्रासंगिकता समय पर निर्भर नहीं होती। वह हर नयी पीढ़ी को अपनी तरह से खाद पानी देती है और उसका पोषण भी करती है। महान कविता विचारों के एक कल्पवृक्ष की तरह है।  तो हू के सौंदर्यशास्त्र में जो सबसे ज़्यादा ध्यान देने योग्य बात है वह है साम्यवाद की उनकी समझ जो साधारण के उत्सव को, सर्वहारा के दस्तावेज़ीकरण को उनकी कविता का मुख्य लक्ष्य बनाती है। इससे न सिर्फ़ उनकी कविता को एक नैसर्गिक बल मिलता है बल्कि ‘जिए जाने’ की ईमानदारी भी बार बार स्थापित होती है। ज़ाहिर है महानता की हर परिभाषा को इस रास्ते गुजरना होगा।