कविताएँ ::
पवन कुमार वैष्णव
कविता माँ है
कठोर से कठोर प्रहार भी सह लेता हूँ,
कविताओं को लिखता नहीं
जी लेता हूँ.
मुझसे अधिक सहती हैं
मेरी कविताएँ.
मैं वह बच्चा हूँ जिसे
हर सिसकी में,
कविता ने माँ की तरह अपने सीने से लगाया है.
यदि इंसान मुझे अपने हिस्से से निकाल दे तो..!
मैं वह रंग हूँ
जिसे तितलियाँ नहीं लगाना चाहती,
आसमान मुुुुझे
स्वीकार करे.
मैं वह सुगन्ध हूँ
जिसे फूल अपनाना नहीं चाहते,
धरती मुझे
स्वीकार करे.
मैं वह प्रवाह हूँ
जिसे आँसू नहीं समझते,
सरिताएँ मुझे
स्वीकार करें.
मैं वह रेखा हूँ
जिसे तूलिका नहीं बनाती,
विधाता मुझे
स्वीकार करें.
मैं आसमान, धरती, सरिता और तूलिका के हिस्से रहूँगा
यदि इंसान मुझे अपने हिस्से से निकाल दे तो!
ऊँचाई पर अकेले..!
व्यक्ति को इतना ऊँचा नहीं होना चाहिए
कि उसे गले लगाने के लिए
बाहें छोटी पड़ें!
प्यार से दूर रहने वाला
ऊँचा भले हो जाए
पर अपनी ऊंचाई पर अकेला होता है.
ऊँचाई पर अकेले रहना
सबसे खतरनाक है!
मैं दोगला हूँ..!
सब लौटाना चाहता हूँ,
किसी के शब्द
किसी के अहसान
किसी का प्यार
तो किसी का
आशीर्वाद..!
मैं इतना अधिक दोगला हूँ
कि ज्यादा दिन यह सब मेरे पास रहे तो
एक-एक कर सब दोगले हो जाएँगे!
यदि शब्द दोगले हुए तो
अर्थ मर जायेंगे,
और अर्थों के मर जाने से मेरा गूँगा होना तय है.
यदि अहसान दोगले हो गए तो
रिश्तें मर जायेंगे,
और रिश्तों के मर जाने से मेरा लावारिस होना तय है.
यदि प्यार दोगला हो गया
तो साँसे मर जाएँगी,
और साँसों के मर जाने से मेरा भी मर जाना तय है.
यदि आशीर्वाद दोगले हो गए तो
देवता मर जायेंगे,
और देवताओं के मर जाने से मेरा दानव बनना तय है.
इस तरह मैं
देवताओं को नहीं मारना चाहता
और न दानव बनना चाहता हूँ..!
अंत में उतना ही कहना है मुझे कि
देवता सब वही हैं
जिन्होंने मुझे दोगला सिद्ध किया एक दिन….!
……..
पवन कुमार वैष्णव उदयपुर (राजस्थान) से आते हैं. हमें प्रेषित किये अपने परिचय में पवन लिखते हैं, “…मैं कविता के क्षेत्र में किंचित-सा दखल रखता हूँ….लेकिन मेरी इतनी क्षमता नहीं कि मैं कवि कह लूँ स्वयं को…क्योंकि कविता लिखना आसान है…कवि होना बहुत मुश्किल…”. पवन साहित्य के प्रेमी और मननशील पाठक यूँ ही बने रहें, यही कामना करते हुए हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं. पवन से pkvaishnav8543@gmail.com पर बात की जा सकती है.
बहुत अच्छी कविताएँ। बहुत सरल और सार्थक।
जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया सर
मुझे बहुत ही प्रसन्नता है कि मेरी कविताएँ इंद्रधनुष पर इतनी सुंदरता और आकर्षक प्रस्तुति के साथ प्रस्तुत की गई। मैं आभार व्यक्त करता हूँ..इंद्रधनुष दिन-रात साहित्य के आसमान में अपना रंग खिलाता करता रहे..!