फ़रोग फ़रुखज़ाद की कविताएँ ::
अंग्रेजी से अनुवाद : श्री विलास सिंह

“… इन कविताओं का अनुवाद मैंने मूल परशियन के अंग्रेज़ी अनुवाद से किया है। फ़रोग फ़रुखज़ाद (1934-1967) ने केवल बत्तीस वर्ष की अल्प आयु पाई किंतु इसी अवधि में वे ईरान की सबसे प्रसिद्ध कवयित्री बन गयी और उन्होंने मध्य पूर्व की कविता पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।”

— श्री विलास सिंह

फ़रोग़ फरुख़ज़ाद | फ़ोटो साभार : wikipedia

१. हवा ले जाएगी हमें

मेरी छोटी सी रात में, आह!
हवा का वादा है पेड़ों की पत्तियों से,
मेरी छोटी सी रात में पीड़ा है ध्वंश की
सुनो
क्या तुम सुन रहे हो अंधेरे का विस्फोट?
यह आनंद अजनबी है मेरे लिए
मुझे आदत है अपनी निराशा के नशे की.

सुनो, क्या तुम सुन रहे हो अंधेरे का विस्फोट?
कुछ गुजर सा रहा है रात में.
बेचैन है छत के ऊपर रक्तिम चाँद
जहाँ है टूट कर गिर जाने का स्थायी भय.
बादल, जैसे हों शोक मनाने वालों का जुलूस
प्रतीक्षारत वर्षा के क्षण की,
एक क्षण
और फिर कुछ भी नहीं.
कंपकंपाती है रात इस खिड़की से परे
और रुक जाती है घूमती हुई पृथ्वी
इस खिड़की से परे
देख रहा है कोई अज्ञात
तुम को और मुझे.

ओ सिर से पाँव तक हरियाले
रखो अपना हाथ जलती हुई स्मृति की भांति
मेरे स्नेहिल हाथों में
अपने होंठो का प्रणय स्पर्श दो मेरे प्रेमिल होंठों को
जीवन के गर्म एहसास की तरह
हवा ले जाएगी हमें
हवा ले जाएगी हमें.

२. एक और जन्म

मेरी समूची आत्मा है एक अबूझ छंद
तुम्हें दोहराती अपने आप में
ले जाती तुम्हें
प्रस्फुटित और पुष्पित होने कीअनंत भोर तक
इस छंद में, मेरी निःश्वास में हो तुम, आह इस छंद में
मैंने किया है तुम्हें प्रतिरोपित वृक्षों में, अग्नि में और जल में.

संभवतः जीवन है
एक लंबी सड़क
जिस पर से गुजरती है
रोज टोकरी लिए एक स्त्री.

संभवतः जीवन है एक रस्सी जिसके सहारे किसी डाल से
लटक जाता है कोई व्यक्ति स्वयं ही,
संभवतः जीवन है स्कूल से घर लौटता हुआ
एक बच्चा.

संभवतः जीवन है सिगरेट सुलगाने जैसा
प्रणय के दो क्षणों के बीच का
नशीला अंतराल
अथवा अपनी हैट के सिरे को छूते
किसी व्यक्ति का विभ्रमित गुजर जाना
किसी दूसरे व्यक्ति को सुप्रभात कहते हुए
भावशून्य मुस्कराहट के साथ.

संभवतः जीवन है वह प्रतिबंधित क्षण
जब मेरी दृष्टि लय हो जाती है तुम्हारी आँखों की
पुतलियों में
और इसमें निहित है एक अर्थ
जिसे मैं मिला दूँगी चंद्रमा की अनुभूति से
और अंधेरे को ग्रहण करते
अकेलेपन के आकार के कक्ष में

मेरा हृदय
प्रेम का एक विस्तार
देखता अपनी स्वयं की प्रसन्नता के सीधे सरल बहानों को,
और गुलदानों में फूलों के मुरझाने की सुंदरता को,
तुमने रोपा है जिस पौधे को फूलों की क्यारी में,
नन्ही चिड़ियों के गानों को
जो गाती हैं खिड़की के विस्तार में
आह!
यह मेरा हिस्सा है
यह मेरा हिस्सा है
मेरा हिस्सा
है एक आकाश, जो छिन जाता है मुझसे.

एक पर्दे के गिरते ही
मेरा सब कुछ पतित हो रहा
परित्यक्त सीढ़ियों से
किसी वस्तु के साथ क्षय और विषाद में सम्मिलित.

मेरा सब है एक आनंदहीन यात्रा
स्मृतियों के उपवन में
और मर जाना एक आवाज़ के शोक में
जो कहती है मुझसे
“मुझे प्रेम है
तुम्हारे हाथों से”
मैं रोपूंगी अपने हाथ
फूलों की क्यारी में
फूटेंगे अंकुर, मैं जानती हूँ, मैं जानती हूँ, मैं जानती हूँ
और गौरैया अंडे देंगी
मेरी स्याही से रंगी उंगलियों के निर्वात में.
मैं पहनूँगी लाल चेरी के कर्णफूल
अपने कानों में
और मेरी नाखूनों पर सजी होंगी पंखुड़ियाँ डहलिया की.
एक अंधेरी गली है
जहाँ वे लड़के, जो थे कभी मेरे प्रेम में
बिखरे बालों, पतली गर्दन और कृश पैरों वाले,
अभी भी सोचते हैं एक छोटी सी लड़की की
मासूम मुस्कराहट के बारे में
जो एक रात उड़ गयी थी हवा में,
एक अंधेरी गली जिसे मेरे हृदय ने
चुरा लिया है मेरी बचपन की जगहों से
समय की रेखा के साथ
यात्रारत एक आयतन
और समय की वंध्या रेखा को गर्भित करता
एक आयतन
एक परिमाण
जो सचेत है एक छवि के प्रति.
आईने के उत्सव से लौटते हुए
इसी तरह
कोई मर जाता है
और कोई जीवित रह जाता है.
किसी मछुआरे को नहीं मिलेगा मोती
किसी गड्ढे की ओर बह रही छोटी सी धारा में.
मैं जानती हूँ एक छोटी जलपरी को
जो रहती है सागर में
धीरे से, कोमलता से फूँकती
अपने हृदय के स्वर
लकड़ी की बाँसुरी में,
बेचारी दुःखी जलपरी
जो मर जाती है रात में एक चुम्बन के साथ.

३. खिड़की

एक खिड़की काफी है
एक खिड़की बांध रखने को
एक खिड़की सुनने को.
एक खिड़की
मिलती जुलती एक कुएं की गड़ारी से
पहुंचती धरती के तल तक उसके हृदय की सीमा में
और खुलती इस बार बार की कृपा के विस्तार की ओर.
एक खिड़की भर रही एकाकीपन से मुट्ठियाँ
आश्चर्यलोक के तारों की सुगंधि की
रात्रिचारी शुभेच्छा से

कोई बुला सकता है सूरज को.

४. मेरे लिए एक खिड़की पर्याप्त है

मैं आयी हूँ गुड़ियों के देश से
एक चित्रमय पुस्तक के उपवन में स्थित
कागजी वृक्षों की छाया के नीचे से
दोस्ती और प्रेम के नपुंसक अनुभवों के सूखे मौसमों से
मासूमियत की धूल अटी गलियों में
किसी क्षय रोगी स्कूल की मेज के पीछे से
पीले पड़ते ककहरे के अक्षरों वाले वर्षों से
इसी क्षण से जब बच्चे लिख सकते थे “पत्थर” श्यामपट पर
और उत्तेजित मैना दूर उड़ जाएंगी प्राचीन वृक्ष से.

मैं आयी हूँ मांसाहारी पौधे की जड़ों से
और अभी भी आप्लावित है मेरा मष्तिष्क
एक तितली की भयोत्पादक चीत्कार से
जिसे सूली पर चढ़ा दिया गया पिनों की मदद से
एक पुस्तिका के ऊपर.

जब स्थगित था मेरा विश्वास न्याय के कमजोर धागों से
और पूरे शहर में
वे छाँट रहे थे मेरे हृदय के दीपक.
जब वे बांध देंगे मेरी आँखें
न्याय के काले रुमाल से
और मेरी कामनाओं की चिंतित कनपटियों से
फूट उठेंगे लहू के फव्वारे
जब मेरा जीवन तुच्छ हो गया होगा
तुच्छ
एक घड़ी की टिक टिक,
मैंने खोज लिया
मुझे जरूर
जरूर
जरूर प्रेम करना चाहिए
पागलों की भांति.

एक खिड़की काफी होगी मेरे लिए
एक खिड़की सचेत क्षणों के लिए
अनुभूति के लिए
और मौन के लिए.
अब
अखरोट का पौधा
हो गया है इतना बड़ा कि मैं व्याख्यायित कर सकती हूँ दीवार को
इसकी जवान पत्तियों से।
आईने से पूछो
मोक्षदाता का नाम।

क्या नहीं है एकाकी तुम्हारे पैरों के नीचे की कंपित भूमि तुम से भी अधिक?
तमाम पैगम्बर लाये हैं विनाश के कार्यक्रम हमारी शताब्दी में.
क्या ये लगातार विस्फोट
और विषाक्त बादल
नहीं है प्रतिध्वनियाँ पवित्र आयतों की।
तुम,
सम्मोहित,
मेरे भाई,
आत्मविश्वास से भरे थे
जब तुम पहुँचे चाँद पर
अब लिखो फूलों के संहार का इतिहास.

स्वप्न हमेशा छलांग लगा देते हैं
अपनी मूर्ख ऊँचाई से
और मर जाते हैं
मुझे आती है महक चार पंखुड़ियों वाले तिपतिया के फूलों की
जो उग आयी है प्राचीन अर्थों की कब्र पर।

क्या नहीं हैं औरतें दफ़्न
लिपटी अपेक्षाओं और मासूमियत के कफ़न में
मेरा यौवन?

क्या मैं चढूं उत्सुकता की सीढ़ियां
अभिवादन करने उस अच्छे ईश्वर का जो टहलता है छत पर?

मैं महसूस करती हूँ कि “समय” बीत गया है
मैं महसूस करती हूँ कि “क्षण” है इतिहास के पन्नों में मेरा हिस्सा
मैं महसूस करती हूँ कि”डेस्क” है एक छद्म दूरी
मेरे केशों और
इस उदास अजनबी के हाथों के बीच.

बात करो मुझसे
एक जीवित देह की करुणा अर्पित करता कोई तुमसे और क्या चाहेगा?
केवल अस्तित्व की अनुभूति की समझ के अतिरिक्त.

मुझ से बात करो
मैं हूँ खिड़की की शरण में
मेरा नाता है सूरज के साथ.

फ़रोग़ फरुख़ज़ाद

५. प्रेमगीत

मेरी रातें चमकती हैं तुम्हारे सपनों के उजले रंग से, मधुर प्रेम!
और भारी हैं मेरे वक्ष तुम्हारी खुशबू से.
तुम भर देते हो मेरी आँखों को अपनी उपस्थिति से, मधुर प्रेम!
दे कर अधिक खुशी दुःख की तुलना में.
जैसे वर्षा धो देती है मिट्टी को
तुमने धो कर पवित्र कर दिया मेरा जीवन.

तुम हो धड़कन मेरे उत्तप्त शरीर की;
मेरी पलकों की छाँव में प्रज्ज्वलित एक अग्नि,
तुम हो गेंहूँ के खेतों से सुन्दर,
किसी स्वर्णिम डाल से अधिक फलों से लदे.
अंधेरे संशयों के आक्रमण के क्षणों में,
तुम हो एक द्वार जो खुलता है सूरज की ओर.

जब मैं होती हूँ तुम्हारे साथ, मुझे नहीं होता भय किसी पीड़ा का
क्योंकि मेरी एकमात्र पीड़ा है प्रसन्नता की पीड़ा.
मेरा यह दुःखी हृदय और इतना हल्का?
कब्र की तली से आते जीवन के स्वर?

तुम्हारी आँखें हैं मेरी चारागाह, मधुर प्रेम!
तुम्हारी निगाहों के चिन्ह दहकते हैं मेरी आँखों की गहराई में.

अगर तुम होते मुझमें पहले से, मधुर प्रेम!
मैं न स्वीकारती किसी अन्य को तुम्हारी जगह.

ओह! यह है गहन पीड़ा, तीव्र चाह;
बहिर्गमन, स्वयं को अनावश्यक अपमानित करती;
उन सीनों पर सिर रखती जिन के भीतर थे कालिमायुक्त हृदय;
प्राचीन घृणा से मलिन करती अपना वक्ष;
देखती मित्रवत मुस्कानों के पीछे का विष;
धोखेबाज हाथों में सिक्के रखती;
खो जाती बाज़ारों के बीच में.

तुम हो मेरे जीवन की सांस, मधुर प्रेम!
तुम मुझे वापस लाये कब्र से जीवन तक.

तुम उतरे हो दूर आसमानों से,
दो स्वर्णिम पंखों वाले सितारे की भांति
चुप कराते मेरे अकेलेपन को, मधुर प्रेम,
मेरी देह को रंगते अपने आलिंगन की सुगंधि में.
तुम जल हो मेरे वक्षों की शुष्क धाराओं के लिए,
एक सोता मेरी नसों की सूख चुकी धरती के लिए.
इतनी ठंडी और अंधेरी दुनिया में,
तुम्हारे कदमों से मिलाते हुए कदम, मैं बढ़ रही हूँ आगे.

तुम छिपे हो मेरी त्वचा की तह में
प्रवाहित मेरी कोशिकाओं में,
मेरे बालों को दहकाते अपने स्नेहपूर्ण हाथों से.
तुम हो अजनबी, मधुर प्रेम, मेरे वस्त्रों से
पर कितने परिचित मेरी नग्नता के क्षेत्रों से.

ओ चमकीले और अनंत सूर्योदय!
दक्षिणी भूमि की तेज धूप
तुम हो नई भोर से भी नए
नए ज्वार से अधिक आर्द्र और ताज़गी भरे.

यह अब नहीं रहा प्रेम, यह तो है तेजोमय दीप्ति,
एक फ़ानूश जलता हुआ सन्नाटे और अंधकार के मध्य.
जब से प्रेम जागा है मेरे हृदय में
मैं हो चुकी हूँ कामना की भक्ति,
अब मैं नहीं हूं, नहीं हूँ मैं,
ओह व्यर्थ बीते वे वर्ष जब मैं जी रही थी “मैं” के साथ.

मेरे होंठ हैं वेदी तुम्हारे चुम्बनों की, मधुर प्रेम!
मेरी आँखें प्रतीक्षारत हैं तुम्हारे चुम्बनों के आगमन की.

तुम हो मेरी देह में आनंदातिरेक का कंपन,
एक परिधान की भांति, मुझे आच्छादित किये तुम्हारी देहयष्टि.
ओह, मैं प्रस्फुटित होने को हूँ एक कली की भांति,
मेरे आनंद को ग्रहण लगाता यह क्षणिक शोक.

मैं चाहती हूँ अपने पैरों पर उछलना
और बरसाना अश्रु किसी बादल की भांति.

मेरा यह दुखी हृदय और सुगंधित जलन?
किसी प्रार्थना-कक्ष में तुरही और वीणा का संगीत?
यह रिक्ति और ऐसी उड़ानें?
यह मौन रात और इतना संगीत?

तुम्हारी दृष्टि है जादुई लोरी सी, मधुर प्रेम!
बेचैन शिशुओं के लिए पालना।
तुम्हारी सांसें हवा का अर्द्धसुप्त झोंका,
मेरे संताप के कम्पनों को प्रक्षालित करती;
यह छिपा है मेरे भविष्य की मुस्कराहटों में
यह डूब चुका है गहरे मेरी दुनिया की गहराइयों में.

तुमने छुआ मुझे कविता के आवेग के साथ
उड़ेलते हुए आग मेरे गीतों में
जगाते प्रेम का ज्वर मेरे हृदय में
इस तरह आग लगाते मेरी सारी कविताओं में, मधुर प्रेम!

६. सात की उम्र

ये सात की उम्र
ये प्रस्थान का महान क्षण
जो भी हुआ तुम्हारे बाद
हुआ घोर अज्ञानता और पागलपन में.

तुम्हारे बाद,
खिड़की जो एक चमकीला संपर्क थी हमारे और चिड़ियों के बीच
हवा के झोंके और हमारे बीच
टूट गया
टूट गया
टूट गया
तुम्हारे बाद
वह लौकिक गुड़िया जो कुछ बोलती न थी,
कुछ नहीं बस जल
जल
जल
डूब गई जल में.

तुम्हारे बाद,
हमनें चुप करा दी झींगुर की आवाज़
और आकर्षित हुए
ककहरे के अक्षरों से आती घंटियों की ध्वनि से
और हथियारों के कारखानों की सीटियों से.

तुम्हारे बाद, जब हमारा क्रीड़ास्थल था मेजों के नीचे
हम पारंगत हुए मेजों के नीचे से
मेजों के पीछे तक
और मेजों के पीछे से
मेजों के ऊपर तक
और हम खेले मेजों के ऊपर
और हार गये
हम हार गए अपना रंग
आह, सात की उम्र.

तुम्हारे बाद,
हमने धोखा दिया एक दूसरे को
तुम्हारे बाद,
हमनें धो डालीं अपनी स्मृतियाँ
सीसे के टुकड़ों और बिखरी हुई रक्त की बूंदों से
गली की दीवारों के प्लास्टर लगे माथे पर से.

तुम्हारे बाद,
हम गए चौराहों तक
और चिल्लाए:

“……जिंदाबाद
और …. मुर्दाबाद”

और चौराहे के शोर में
हमने तालियाँ बजायी
गाते हुए सिक्कों के लिए
जो गुप्त रूप से आये थे हमारा शहर देखने.

तुम्हारे बाद,
हम: एक दूसरे के हत्यारे,
प्यार का न्याय किया
और जब हमारे हृदय चिंतित थे हमारी जेबों में,
हमने प्यार के हिस्से का न्याय किया.

तुम्हारे बाद,
हम कब्रिस्तानों में गए और मृत्यु सांस ले रही थी दादी के नकाब के नीचे
और मृत्यु
थी वह स्थूल वृक्ष
जिस में “उत्पति” के इस छोर के जीवित लोग
बांधेंगे अपनी कामनाओं के धागे इसकी जर्जर शाखाओं में
और “अंत’ वाले दूसरे छोर के मृतक
नोचेंगे इसकी चमकीली जड़ें
और मृत्यु
बैठी थी चार नीले ट्यूलिप वाले पवित्र मकबरे पर
एकाएक प्रज्वलित करते इसके चारों कोने.

आ रही है हवा की आवाज़
आ रही है हवा की आवाज़
आह, सात की उम्र.

मैं उठी और मैंने पानी पिया
और एकाएक याद आया कि किस प्रकार हमारी युवावस्था के वन
आंदोलित हुए झींगुरों की बाढ़ से.

किसी को कितना भुगतान करना चाहिए
कितना सीमेंट के इस चौकोर की प्रगति को?

हम ने खो दी हर चीज जो खो जानी चाहिए थी
हम चलते रहे बिना लालटेन के
और चाँद,
चाँद
दयालु मादा,
थी वहाँ सदैव
बचपन की मिट्टी और खर पतवार की छत की स्मृतियों में
और युवा वनों के ऊपर
डरा रही झींगुरों की बाढ़.

किसी को करना चाहिए कितना भुगतान?…

७. पाप

मैंने पाप किया, आनंद से ओतप्रोत पाप
आलिंगन में लिपटा, गर्म और अग्निमय.
मैंने पाप किया बांहों के घेरे में
जो था चमकदार, मर्दाना और आक्रामक.

उस शांत और अंधेरे एकाकी स्थान पर
मैंने उसकी रहस्य से आप्लावित आँखों मे देखा
मेरी छाती में धड़कता मेरा हृदय उत्तेजना वश
मेरी आँखों मे चमकती कामना से.

उस शांत और अंधेरे एकाकी स्थान पर
जब मैं बैठी थी उसके पास बिखरी हुई भीतर से
उसके होंठों ने उड़ेल दी वासना मेरे हाथों पर
और मैंने पीछे छोड़ दिया मेरे हृदय का शोक.

मैं फुसफुसाई उसके कानों में प्रेम के शब्द:
मैं चाहती हूँ तुम्हें मेरी आत्मा के साथी
मैं चाहती हूँ तुम्हें, जीवनदायी आलिंगन
मैं चाहती हूँ तुम्हें, पागल हो चुके प्रेमी.

उसकी आँखों मे थी कामना की बाढ़
प्याले में घूम रही थी लाल मदिरा
मेरी देह तैर रही थी उसकी देह के चारो ओर
भोर के बिछावन की कोमलता में.

मैंने पाप किया, आनंद से ओतप्रोत पाप
एक शिथिल और थकी हुई देह के पास

मैं जानती नहीं मैंने क्या किया, ईश्वर!
उस शांत और अंधेरे एकाकी स्थान पर.

८. मैं फिर से स्वागत करूंगी सूर्य का

मैं फिर से स्वागत करूंगी सूर्य का
स्वागत करूंगी उन धाराओं का जो कभी बहती थीं मुझमें
उन बादलों का जो थे मेरे लहराते हुए विचार
बगीचे के पॉपलर के पौधों की कठिन वृद्धि
कौन मेरे साथ था अकाल के मौसमों से गुजरते समय

मैं स्वागत करूंगी कौवों के झुंड का
जिन्होंने दिया है मुझे बाग से आती रात की महक का उपहार
और अपनी माँ का जो आईने में रहती थीं
और थी मेरी वृद्धावस्था का प्रतिविम्ब.

एक बार फिर मैं धरती का स्वागत करूंगी
जिसका प्रज्ज्वलित उदर फूल जाता है हरे बीजों से
मेरे पुनर्स्रिजन की लालसा में.

मैं आऊंगी, मैं आऊंगी, मैं जरूर आऊंगी

मेरे केशों से उड़ रही होगी मिट्टी की सुगंधि
मेरी आँखें सूचित कर रही होंगी अंधेरे की सघनता
मैं आऊंगी दीवार की दूसरी तरफ की झाड़ियों से चुने
गुलदस्ते के साथ.

मैं आऊंगी, मैं आऊंगी, मैं जरूर आऊंगी

दरवाजा प्रदीप्त होगा प्रेम से
और मैं एक बार फिर स्वागत करूंगी उनका जो प्रेम में हैं,
स्वागत करूंगी उस लड़की का जो खड़ी है
डयोढ़ी की लपटों में.

९. केवल आवाज़ ही बची रहती है

मुझे क्यों रुक जाना चाहिए, क्यों ?
पक्षी जा चुके हैं नीली दिशा की खोज में.
क्षितिज है उर्ध्वाकार, उर्ध्वाकार
और गतिशीलता फव्वारे की भांति;
और दृष्टि की सीमा पर
घूम रहे हैं चमकते ग्रह.

पृथ्वी ऊंचाई पर पा लेती है दुहराव.
और हवा के कूएँ
बदल जाते है संपर्क की सुरंगों में,
और दिन का विस्तार नहीं समाता
अखबारी कीड़ों के संकुचित मस्तिष्क में.

मुझे क्यों रुक जाना चाहिए ?
राह गुजरती है जीवन की सूक्ष्म शिराओं से
चाँद के गर्भाशय की नौका के वातावरण की गुणवत्ता
नष्ट कर देगी दोषपूर्ण कोशिकाओं को।
और केवल ध्वनि है
सूर्योदय के बाद के रासायनिक निर्वात में,
ध्वनि जो आकर्षित करेगी
समय के कणों को.

मुझे क्यों रुक जाना चाहिए?
क्या हो सकता है दलदल?

क्या हो सकता है दलदल
भ्रष्ट कीड़ों के
पसीजते धरातल के सिवा?

फुले हुए शव लिखते हैं
मुर्दाघर के विचार,
नपुंसकों ने छिपा ली है
अपनी पौरुषहीनता कालिमा में।

और कीड़े… आह
जब कीड़े बात करते हैं,
मुझे क्यों रुक जाना चाहिए?

सीसे के अक्षरों का सहयोग व्यर्थ है
ये नहीं करेंगे रक्षा निकृष्ट विचार की.

मैं वृक्षों के वंश की पैदाइश हूँ.
बासी हवा में सांस से होता है मुझे अवसाद.
एक चिड़िया ने, जो मर गयी, मुझे सलाह दी
मुझे उड़ना चाहिए स्मृतियों में।
शक्ति की अंतिम सीमा है संघ में,
सूर्य के चमकदार सिद्धांतों से जुड़ने और
प्रकाश की समझ में विलय हो जाने में.

स्वाभाविक है
पवनचक्कियों का ध्वस्त हो जाना.

मुझे क्यों रुक जाना चाहिए?

मैं अपने वक्ष से भींच लेती हूँ
गेंहूँ की अधपकी बालियों को और
कराती हूँ उन्हें स्तनपान.

आवाज़, आवाज़, केवल आवाज़!
जल के कलकल बहने की
पारदर्शी इच्छाओं की आवाज़,
धरती के स्त्रीत्व की दीवार पर
तारों के प्रकाश के पड़ने की आवाज़,
प्रेम के साझा मस्तिष्क के विस्तार और
अर्थों के वीर्य के बीच गठबंधन की आवाज़,

आवाज़, आवाज़, आवाज़,

केवल आवाज़ बची रहती है।

बौनों के देश में
तुलना की शर्त घूमती है सदैव
शून्य की कक्षा में।

मुझे क्यों रुक जाना चाहिए?

मैं आज्ञा मानती हूँ चार तत्वों की;
और मेरे हृदय के संविधान की
रचना के कार्य से
नहीं है अंधों की स्थानीय सरकार का।

जानवरों के यौवनांगो के दीर्घ
रिरियाते जंगलीपन में
क्या है मेरे लिये?

अपने मांसल निर्वात में
कीड़े की तुच्छ गति में
क्या है मेरे लिए?

फूलों की रक्तस्रावित कुल-परंपरा ने
किया है मुझे जीवन को समर्पित.

क्या तुम्हारा परिचय है
फूलों की रक्तस्रावित कुल-परंपरा से?

……….

श्री विलास सिंह

ईरान की प्रसिद्ध कवयित्री फ़रोग फरुखज़ाद की इन कविताओं का अनुवाद अनुवादक ने इसके मूल पर्शियन के अंग्रेज़ी अनुवाद से किया है. फ़रोग फ़रुखज़ाद (1934-1967) को आधुनिक-काल की एक बहुत महत्वपूर्ण आवाज़ के रूप में जाना जाता है, जिनकी कविताओं और फिल्मों ने रूढ़िवादिता पर गहरी चोट की और जीवन के सत्यों और अनुभवों पर अपनी राय बेबाकी से और खुलकर रखी. अपनी अल्प आयु में उन्होंने अपना जीवन जिस रूहानियत और अपने विशिष्ट शिल्प से अपनी रचनाओं में उतारा है, उसमें इतनी ताकत है कि लोग उस एहसास की तरफ बार-बार लौटते हैं. उनको सशक्त फ़िल्म-निर्देशन और कविताओं में उनकी स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए याद किया जाता है. श्री विलास सिंह से sbsinghirs@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है. उनसे और परिचय एवं इंद्रधनुष पर प्रकाशित उनके काम के लिए यहाँ देखें : चैत का पुराना उदास गीत