कविताएँ ::
रूपेश चौरसिया

रूपेश चौरसिया

१.

प्रिय,
मैं तुमसे तब
बात करना चाहूंगा
जब
धरती स्थिर हो जाएगी,
रात गहरी नींद में
सोई रहेगी,
हवाएँ खामोश रहेंगी,

चाँद हमारी
पहरेदारी करेगा कि
कोई आवाज
हमसे न टकरा जाए.

२.

पते पर पहुंचे सारे प्रेमपत्र
‘माँ देख लेगी’ कहकर जला दिए गए
जैसे चोरी के सबूत जलाए जाते हैं
पुलिस के डर से
कि सजा होगी

प्रेम चोरी से भी जघन्य अपराध है.

३.

राहों की लम्बाई का गणित
लिखते जाएंगे.
सीने की चौड़ाई का गणित
लिखते जाएंगे.
सड़क के कंकड़ों पर लहू
छोड़ते जाएंगे.
रोटियों पर पसीने की खुशबू
छोड़ते जाएंगे.
घरों की ऊंचाई का गणित
लिखते जाएंगे.
सारे कदमों का हम हिसाब
रखते जाएंगे.
और हर गिरगिटों का आदाब
रखते जाएंगे.
घावों की गहराई का गणित
लिखते जाएंगे.
तारीख में कालिखों से हम आज
लिखते जाएंगे.
हर गुमनाम मजदूर की आवाज
लिखते जाएंगे .

४.

स्मृतियों के अवशेष
अवचेतन में सोए रहते हैं.

पुरानी डायरी की
सोंधी सुगंध से
एकाएक उठ बैठती हैं
अल्हड़ जवान स्मृतियाँ,
और
ठहाके मारकर हंसती हैं
जैसे
एक बच्चा खिलखिला रहा हो
आईने में अपनी सूरत देखकर.

५.

सिद्धार्थ से बुद्ध होना
सबसे आसान काम है,
यशोधरा बने रहना
उतना ही मुश्किल.

विडंबना है कि
क‌ई यशोधराएं आज भी
गुमसुम हैं
हमारे घर में,
और
एक सरल बुद्ध पूजनीय है.

६.

औरत देकची में सिर्फ
भात नहीं पकाती है.

वो उसनती है उसमें
गुंइयां के साथ की कित-कित.
भाई के हाथ की एक कौर रोटी
पीठ पर के काले दाग.
बड़का बेटा जो उसे देता है
वो गालियाँ.

आठवीं की छमाही की
फटी-चिटी मार्कशीट.

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रूपेश छात्र हैं और खगड़िया, बिहार में रहते हैं. इंद्रधनुष पर प्रकाशन का पहला अवसर है. वह साहित्य के पाठ और लेखन के प्रति निरंतर चिंतनशील और सजग बने रहें, इसी कामना के साथ हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं. रूपेश से rupeshchaurasia@yahoo.com पर बात की जा सकती है.
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