कविताएँ ::
योगेश ध्यानी

योगेश ध्यानी

जगह

१.

उस विशाल कमरे में कितनी कम जगह है
जहाँ रहता है कुछ गुलदानों संग
एक व्यक्ति
सम्पूर्ण विलासिता के साथ.

कितनी ज्यादा जगह है
रेल के उस तृतीय श्रेणी कोच में
जहां ठूँसे हुए हैं
कोच की सामर्थ्य से कहीं अधिक लोग
अपनी-अपनी ज़रूरत भर की
जगह के साथ.

२.

कुछ चीजें बदली नहीं जा सकतीं.

किसी शब्द की जगह ले सकता है
शब्द का समानार्थी शब्द,
लेकिन शब्दों के बीच की खाली जगह में
नहीं लिखा जा सकता
‘खाली जगह’ का पर्यायवाची.

३.

तुम मेरी जगह
या मैं, तुम्हारी जगह नहीं हो सकता.
मेरा मेरी तरह सोचने के लिए
तुम्हारा तुम्हारी तरह सोचना जरूरी है.

४.

बढ़ते हुए लोगों के साथ
कम होती गई जगह.

घरों, कस्बों की जगह के लिये
काटे गये जंगल.
जंगल के साथ पशु घटे
पर पशुता नहीं,
उसकी जड़ें मनुष्य के हृदय में
रोपी जा चुकी थीं.

५.

तुम अपने आंगन में
एक पेड़ की जगह छोड़ सकते थे

जगह आकाश में बढ़ती रहती
फलों के रूप में
हर साल.

६.

जंगल काटकर इमारतें बनीं,
पेड़ों से उड़कर पक्षी
जब छतों पर पहुंचे
तो उन्होंने पाया,
उनके हिस्से की धूप
सोलर पैनल सोख रहे थे.

७.

दोनों पक्ष साख वाले थे
लेकिन कोई इंच भर भी
अपनी जगह से
हटने को तैयार नहीं था,
आखिर मसला ज़मीन का जो था.

८.

सारी ज़मीन विवादित थी,
सिर्फ उस जगह को छोड़कर
जहाँ एक धार्मिक स्थल था.

९.

यदि शान्ति ले ले
सब युद्धों की जगह
तो बारूद की जगह
खोले जा पाएंगे
काॅपी, पेंसिल के उद्योग
और सैन्य अस्पतालों की जगह
खोले जा सकेगें
बच्चों के स्कूल.

१०.

कम नहीं है जगह
जितनी अभी है,
उससे कहीं ज्यादा को उड़ने की
आजादी देता है आसमान.
उसकी तरफ से कोई मनाही नहीं.
फिर भी हर पतंग की
खुद उड़ने से ज्यादा
दूसरे को काटने में
होती है रुचि.

११.

एक कोने में रसोई
एक में खाट
एक मे टीन का बक्स
और एक में ईश्वर

कमरा कितना भी छोटा हो
जगह बन ही जाती है
घर की.

…….

योगेश पेशे से इंजीनियर हैं, और कानपुर (उत्तर प्रदेश) में रहते हैं. उनकी कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं. उनसे yogeshdhyani85@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.

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