कविताएँ ::
पूर्वांशी

मृत्यु

कितने लोगों की मृत्यु को
पिया है इन आँखों ने
ठूँसते हुए उनका जीवन
स्मृतियों के संदूक में,
जो हर बीते शब्द के साथ
दबता जाता है धड़कनों के खोदे गड्ढे में और भीतर।
और कितने लोगों का जीवन
खुद जीवन ने ही
लिखा है शरीर के हर कण में।
इस भीड़ में
कहाँ बचती है
मेरे जीवन की जगह।

तुम्हारा पता

अब तक तो तुम्हारा शरीर
आधा होगा,
पर याद सब तुम्हें वैसे ही करते हैं
पूरा, हर अंग के साथ।
न जाने कितने कीड़े मकोड़ों
का भोजन बनी होगी तुम,
और कितने रेत के कणों से
भिन्ना कर उन्हें हटाने की इच्छा हुई होगी।
होती है ना तुम्हें ऐसी इच्छा?
कीड़े कौन से हैं और कहाँ से आ रहे
देखती होगी ना तुम तो सब?
तुम्हारे नेत्र हैं ना अभी?
मुझे नहीं मालूम, तुम्हारी मृत्यु का पता
वो तुम्हारा घर था,
या वह कमरा जिसे घर बनाने की उम्मीद थी,
या मशीनों के बीच कोई जगह।
मुझे नहीं मालूम तुम्हारा पता।

लिखावट

दीवारें बदल गई हैं,
बहुत दीवारें टूट भी गई हैं,
उस टूटी हुई दीवार के साथ टूटी है—

उस बच्चे की लिखावट
जिसने लिखना सीखा ही था,
टूट गई है उसके पढ़ने की इच्छा।
खटिया में पसरे सपने
और सपनों की मुस्कुराहट टूटी है,
टूट गया है वो सब कुछ
जिसे बनाने की मेहनत में जीवन गुज़र गया।
लेकिन दीवारें अलग हैं,
किसी कलाकृति जैसी
जिसकी तस्वीर खींची जा सकती है,
उस आँसू को अनदेखा कर जिससे नम है वही दीवार।
पर तस्वीर में नमी दिखाई देगी,
दिखाई देगी उस बच्चे की लिखाई।

शब्द

हर एक उबाल के साथ
फूटते हैं कुछ शब्द,
शब्द जिन्हें
हम तलाशते फिरते हैं
किसी की मृत्यु, या किसी के जीवन में।
दबे रहते हैं ये शब्द,
साँसों की गहराईयों में,
डर कर लोगों की विस्मयता से।

अदृश्य नहीं है ये शब्द,
मेरे भी नहीं ये,
ये शब्द उस उबाल के हैं,
जो फूटता है
हमारी निर्जीव चेतना के भीतर।

तलाश

तुम हो घर
या वो सड़क जिस पर नंगे पैर भागी हूँ कभी
वो कमरा पसंद है मुझे
जिसमें अपनी जगह खोजना मुश्किल हुआ करता था
क्या वही है मेरा घर?
घर की तलाश में हूँ ,
खो गया है वह,
या था ही नहीं कभी शायद
तुम भी उस घर में ही थे, खो गए हो तुम भी।
अब तुम्हारी तलाश ही
शायद घर की तलाश है।

कीड़े

यहीं दफ़्न थे शब्द
इसी मिट्टी के भीतर
जिसे चूम कर तुम
माथे से लगा लेते थे

यही शब्द जिनका ज़िक्र नहीं करना अब
जिनमें कीड़े रेंगते हैं
यह कीड़े मेरी साँस हैं
यह दब रहे इस मिट्टी से, जो मेरा जीवन है
यही मिट्टी जिस पर थूकते हो तुम अब
यही मेरी मृत्यु है।

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पूर्वांशी कवि हैं और उनकी कवितायें अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। उनसे purwanshi2005@gmail.com पर बात हो सकती है।