लंबी कविता ::
संजय शांडिल्य

1.

समय का थान काटकर
ईश्वर ने
असंख्य कैनवास तैयार किए
फिर आत्मकूँची से
मनरंगों को मिलाकर
उन्हें रँगता गया

पहले
नीले में पीला मिलाकर रँगा

फिर
पीले को गहरा पीला करके

पीले में फिर मिलाया लाल
और रँग दिया

फिर लाल में
नीला मिलाकर रँगा

फिर नीले को
और गहरा नीला कर दिया

इस तरह
ईश्वर ने
असंख्य रातें तैयार कीं

इसी तरह
असंख्य दिन तैयार किए…

2.

समय
अपने चाकू से
चीरता है अपनी देह

एक हिस्सा
रह जाता है इधर
साँवले समुद्र में

दूसरा
गोरे समुद्र में
उछल पड़ता है उधर…

3.

छायाएँ दिन की
रात का पूर्वाभास हैं
पूर्वाभ्यास भी…

4.

रात की दो संतानें हैं
पहली को छोड़कर उदास
दूसरी के साथ
वह निकलती है
मुस्कुराते हुए संसार में…

5.

कवि
गायक
चित्रकार
प्रेमी
और चोर—
सबको पसंद है रात

कोई
एक भी हुआ
तो समझो सब हुआ…

6.

सुबह
दोपहर
शाम
और रात—
ईश्वर ने इन्हें रँगते हुए
बाक़ी समय को भी रंगा
फिर मिलाकर दूसरे रंग
रंग डाली पूरी सृष्टि
रच डाली पूरी सृष्टि

सृष्टि में
हमें भी रंगकर रच डाला…

7.

शाम अल्फ़ा किरण है
झुकी हुई
कुछ इधर

सुबह बीटा किरण
झुकी हुई
कुछ उधर

रात है गामा किरण
बीच में खड़ी
एकदम अड़ी…

8.

शाम
वह वृक्ष है
जिस पर बैठते हैं
नीले-पीले पंछी समय के…

9.

सुबह
संध्या है
जैसे संध्या है
सुबह

सुबह
रात-दिन की
संध्या है

संध्या
दिन के बाद की
सुबह…

10.

रात
जवानी में शाम थी

बुढ़ापे में
सुबह हो जाएगी

रात
दरअसल
पचास पार की औरत है…

11.

शाम है
विदा

सुबह
स्वागत है…

12.

जाते हुए प्यार की उदासी से
बनी है शाम

उसके न होने की वेदना से
रात बनी है

भोर
लौटने की प्रतीक्षा से बना है

और दिन
आने के बाद की हँसी से…

13.

दिन और रात के परिदृश्य में
फ़र्क़
किसी के होने
और न होने का ही होता है

14.

रात का भय
पिता का भय है

रात का प्रेम
पत्नी का प्रेम

रात की गोद
माँ की गोद है

रात का साथ
दोस्त का साथ

रात का सौंदर्य
मृत्यु का सौंदय है

रात की चमक
जीवन की चमक…

15.

दिन खिला हुआ है
तुम्हारी तरह

तुम्हारी तरह
मुरझा जाएगा

तुम्हारी तरह
फिर निकल आएगा
क्षितिज से…

16.

किसी के प्यार में
यहाँ तुम डूब जाते हो

किसी जीवन के लिए
कहीं से निकल जाते हो

यह बर्ताव
तुम्हें सूर्य बनाता है

सूर्य को
तुम्हारे-जैसा आदमी…

17.

जैसी शाम होती है
वैसी सुबह होती है

वही लालिमा
वही धुंध
वही कालापन

अंतर
जाने और आने का होता है
मतलब
उदास होने और मुस्काने का होता है…

18.

जो डूबता हुआ होता है
वही निकलता हुआ होता है

कहीं डूबना
कहीं और से निकलना है
कहीं से निकलना
कहीं डूबना

तुम्हें नहीं लगता
इस दुनिया में डूबता हुआ आदमी
किसी और दुनिया में
निकलता हुआ आदमी होगा ?

19.

रात कितनी ही काली हो
उसमें कोई दृश्य
दिख ही जाता है

जैसे कि
और काला पेड़
और काली नदी
और काला आदमी…

रात कितनी ही काली हो
उसमें उड़ता हुआ प्रकाश
कहीं से आ ही जाता है

दिन भी कितना ही चमकीला हो
उसमें छायाएँ
रहती ही हैं

जैसे
छायाएँ पत्तियों की
छायाएँ पानी की
आत्माओं की छायाएँ…

दिन कितना ही चमकीला हो
बैठा हुआ-दौड़ता हुआ कालापन
उसमें होता ही है

इस तरह
रात में
छुपकर रहता है दिन
दिन में
छुपकर रहती है रात…

20.

डूबता हुआ सूरज
वादा करता हुआ सूरज है

और उगता हुआ
उसे निभाता हुआ सूरज…

21.

शाम के गर्भ से
जनमती है रात
रात के गर्भ से
जनमती है सुबह

शाम
रात की माँ है
रात
सुबह की माँ
शाम है
नानी सुबह की

…इस तरह
बेटियों के जनमने से
जनमती है दुनिया
बेटियों के मरने से
दुनिया मर जाती है…


संजय शांडिल्य चर्चित हिन्दी कवियों में से हैं। उनकी कविताएँ सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। उनकी कई पुस्तकें भी प्रकाश में हैं और उन्होंने उल्लेखनीय संपादन कार्य भी संभव किए हैं। सिनेमा और रंगकर्म से भी उनका गहरा रुझाव रहा है। उनसे sanjayshandilya15@gmail.com पर बात हो सकती है। 

 

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