कविताएँ ::
शंकरानंद

इस बारिश में

चकाचौंध से भरी दुनिया में
मौके बहुत हैं मुस्कुराने के लिए
मगर उस मन का क्या
जो अभी बारिश नहीं
सुकून की तलाश में बेचैन है

रंगों से भरी दुनियां में
बेरंग मन कांपता है
गीली टहनी की तरह
मन कोई आवाज सुनना चाहता है
छूना चाहता है मीठा जल
कोई चेहरा देखना चाहता है
जो बदल दे
मन के मौसम का हिसाब

मनुष्य की जगह
न बादल ले सकते हैं
न बारिश
न वसंत
चाहे ये कितने ही खूबसूरत हों
फर्क नहीं पड़ता.

 खेत के लिए

वही मिट्टी आजकल बंजर है
जिसमें फसलें लगती थी तो
घर भर जाता था
ज़मीन तो मेरे पास हैं
बीज बोने का हुनर नहीं आया!

बच्चे की दुनिया

कैनवस की तरह
जिन्दगी मिली है
साथ में हिदायतें भी भरपूर

चाहा हुआ नहीं मिलता कुछ
यातना मिलती है
रंग मिलते हैं तो
उन्हें चुनने का मौका नहीं मिलता

हर लकीर होना कुछ चाहती है
हो कुछ और जाती है
इस तरह तैयार होती है दो दुनिया

एक के लिए शाबाशी मिलती है
दूसरी मन के अँधेरे में घुंट कर
एक दिन दम तोड़ देती है.

पिता की आवाज

आज भी उनकी आवाज गूंजती है
तब अक्सर लगता है कि
वे पुकार रहे हों शायद

उस आवाज के होने भर से
एक भरोसा हो जाता है
तसल्ली होती है कि
वह यहीं कहीं गूंज रही है

कितनी जरूरी होती है आवाज
कितना जरूरी होता है बोलना
ये चुप रहने वाले लोग
नहीं समझ सकते

आवाज का गूंजना
मनुष्य के होने का पता होता है
जो नहीं होते
उनकी आवाज भी नहीं होती.

प्यार

गमले में खिला एक फूल
जो बहुत मुश्किल से
खिला

उस पर भी
सबकी नज़र लगी है
क्या पता
कौन तोड़ ले अँधेरी सुबह में!

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शंकरानंद हिन्दी के चर्चित कवि हैं। उनकी कविताएँ सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। उन्हें विद्यापति पुरस्कार और राजस्थान पत्रिका सृजनात्मक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनसे shankaranand530@gmail.com  पर बात हो सकती है।

 

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