कविताएँ ::
वंश प्रभात

1. प्रेम कविताएँ

I.
आज की इस बारिश में
कुछ देर और रुक जाओ।
वादा करता हूँ कि
हम चुपचाप रहेंगे— इतने कि
दूर से आती झींगुरों की आवाज़ सुनाई दे।

II.
जिस दिन बात न हो पाई थी तुमसे
भीतर स्मृतियों का कलश छलक पड़ा था
और चिट्ठियों में निकले थे मेरे आँसू।
एक काम करते हैं—
साथ रो लेते हैं, कुछ पल ज़ाया कर
दिल हल्का कर लेते हैं।
तुम्हारे आँसू की दास्ताँ मैं सुन लूँगा
मेरे आँसू की आग से तुम
अपनी ज़िंदगी रोशन कर लेना।

III.
आज अगर तुमको रोक लूँ
तो क्या बचेगा हमारे बीच?
देह को देह मिलेगी,
देह से देह मिलेगी
रूहें शायद न मिल पाएँ
या उनके मिलने का भ्रम मात्र रह जायेगा।
कल सवेरे जब मेरा सर
तुम्हारी सफ़ेद जाँघों पर होगा,
तुम्हारी देह जब मुझे समर्पित होगी,
मुझे डर है कि तुम मुझे कोसोगी।

कल मेरे आलिंगन तुम्हें अजगर के पाश जैसे लगेंगे।
तब क्या करोगी तुम? क्या बचेगा हमारे बीच?
डर है मुझे कि मैं तुम्हें कमॉडिफ़ाई कर दूँगा,
डर है मुझे कि तुम यह स्वीकार कर लोगी,
डर है कि कल सवेरे तुम मुझसे नफ़रत करने लगोगी।

हमारे बीच प्यार नहीं
नफ़रत की बेली फूटेगी और
काले नाग की तरह
रेंगती हुई फैल जाएगी।

2. कायर

भीड़ से घिरे रहने के बाद भी
अकेलेपन का एहसास हुआ है कभी?
शब्दों का स्टॉक होते हुए भी
काली स्याही से सफ़ेद धारियाँ खींची हैं तुमने?

मेरे शब्द चिड़ियों की हड्डियाँ हैं—
उड़ान बहुत भरते हैं, खोखले हैं
मेरे विचार, मेरे आदर्श
ढपोर शंख हैं: संबल बहुत देते हैं—
दूसरों को।

जीवन की सुधा में भीगना चाहता हूँ
पर हिम्मत नहीं होती।

3. डिस्इल्यूज़नमेंट

बुखार से तपती हुई देह पर
ए.सी. से एक ठंडी बूँद गिर पड़ी
और मैं हठात् सचेत हो गया।

खुमारी से जगाने के लिए
एक बूँद ही काफ़ी है;
आग लगाने के लिए
एक चिंगारी ही काफ़ी है।

ये बूँद न जाने कितनी बार
कितनों की देह पर गिरी होगी?
कितनों को इसने जगाया होगा?

हर जागृति नई लगती है
लेकिन इस दुनिया में कुछ भी नया नहीं है—
आदम की नए की चाह बहुत पुरानी है;

इस बूँद से पहले भी कई बूँदें गिर चुकी हैं, आगे भी गिरेंगी
इस बूँद से पहले भी कई लोग जग चुके हैं, आगे भी जगेंगे।
कैसे एक पल में मानव-चेतना की परंपरा का पुल टूट जाता है!
कैसे एक पल में डिस्इल्यूज़नमेंट हो जाता है!

4. पुरानी कोठी

पुरानी कोठी के जाने-पहचाने कमरों सी
याद आती हो तुम।
सब मौन है, सड़कें ख़ाली हैं
और एक स्ट्रीट लाइट भुकभुका रही है
ढलते दिन के हल्के कत्थई साए में आज
दिल पर कुछ पुराने बोझ सहर्ष
आत्मविमर्श से लाद कर लौटा हूँ।

उम्मीद थी कि कदमों की आहट से
देहलीज़ें जाग जाएँगी—
प्रिये! जैसे तुम जागती हो मेरी बाहों में
पर अब, वे देहलीज़ें नहीं रहीं,
न ही रहे वे कमरे, वो हॉल, वे सीढ़ियाँ, वो बरामदा, वो आँगन,
वो गलियारा जहाँ ओल उगते थे।

एक आदिम बू आती थी उन कमरों से—
सीलन लगी दीवार की बू,
वो बू मेरी थी।
अब तो वह कोठी पुरानी तस्वीरों में रहती है।

आज नहीं थी तुम, ठीक उस कोठी जैसी
(मैं जानता था कि नहीं रहोगी तुम)।
यादों के गलियारे में मुझे
उस कोठी के गलियारे दिखे
और उन गलियारों में दिखी तुम।

5. कॉफ़ीहाउस में एक शाम

नीची छत के छोटे से खाली कॉफ़ी हाऊस में
जीवन के ऊँचे कद का अभिमान होता है।
ठंड और अस्तित्व के थकान से उबारने को पल भर के लिए
कॉफ़ी अनंग प्रेयसी बन जाती है।

पछिया हवा के थपेड़े से सूखी हथेली और होठों को
सौंधी प्यालियों से कुछ राहत मिल जाती है।
सामने बैठनेवाले का लिंग क्या है
ये भूल गया।
उसकी खुश्क अँगुलियों के नाखूनों में छूटे हुए नेलपेंट
गरम प्याली को अपने होठों से लगा रहे हैं— ये दिख रहा है:
एक सादी, मासूम शक्ल कॉफ़ी पी रही है।
इस शक्ल से, शक्ल से बराबर लग रहे छूटे हुए नेलपेंट वाले
नाखूनों से मेरा सम्बन्ध पुराना है लेकिन आज ये अजनबी
मालूम होते हैं।

कप की पेंदी में छितराई हुई कॉफ़ी की बूँदों जैसी
कई बातें हैं मन में
जो मन की सतह से इन बूँदों जैसी चिपकी हुई हैं।
न हर्ष है, ना शोक है,
न शांति, न शब्द
एक असमग्रता है।

6. कीट्स के लिए

लंदन के धूल-सने पीले मौसम में
जहाँ आकाश लकवाग्रस्त,अधमरा पड़ा है,
तुम्हारा प्रेम जीवंत था ।

शहर अपने काले-पीले हाथों से प्रेम का गला घोंट देता है।

तुमने सही किया कि तुम फुलवाड़ी में गिर पड़े और वहीं रह गए।
शहर वापस आने की कोई ज़रूरत नहीं थी के. ।

प्रेम शहर की नीली परिधि में कभी समा ही नहीं सकता,
उसे सुदूर लाल क्यारियाँ ही पसंद हैं। तुम उन्हीं लाल
क्यारियों के बीच रह गए और न उठे।

तुमने सच्चा प्रेम किया था के.।


वंश प्रभात  की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। एक नदी के किनारे एक उजड़ते और फिर बिल्कुल नई संरचना में अजनबीपने के साथ फिर बस रहे एक शहर में एक कवि का लिखना शुरू करना और उसके रूखड़ेपन को अपनी उंगलियों से महसूस करना देख पाना, न सिर्फ रोचक है बल्कि सुख का अवसर भी है। हर नया कवि संभावनाओं से भरा हुआ नहीं होता है और यह भी सुखद है कि वंश में संभावनाएँ देखीं जा सकती हैं। वे आगे और रचें और बेहतर रचें। इन्द्रधनुष की ओर से उन्हें शुभकामनाएँ। उनसे vansh.prabhat23@gmail.com पर बात हो सकती है।