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महावन मे जीवित छी हमसभ!

राजकमल चौधरीक किछु मैथिली कविता :: हम कविता लिखइ छी, सदत अपना हेतु मात्र अपनेटा हेतु… अहिपन अहिपन मे नहि लिखू फूल पात-लता-चक्र हे स्वप्न-संभवा कामिनी, आब नहि घोरू सिनूर आ उज्जर पिठार! जखन पूर्णिमेक साँझ मे चन्द्रमा भ’ गेल छथि पीयर आ बक्र आब नहि फोलि क’ राखू अप्पन मोनक दुआर! हे स्वप्न-संभवा कामिनी, आब एहि घर-आङन मे अनागतक प्रतीक्षा जुनि करू, जुनि करू… अहिपनक फूल-पात-लता बनि जायत गहुमन...

फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल : हरेकृष्ण झा

मैथिली कविता:: हरेकृष्ण झा फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल फार सँ छिटकैत अछि कनखा इजोतक, भक टूटि जाइत अछि. सोझाँ अबैत अछि अर्घासनक कोहा चर्बी सँ उमसाम, एकटा कुंजी चकरी मारने बीचोबीच. बामा हाथ रखैत छी हरीस पर हरबाहक बाम हाथक संग, दहिना हाथ सँ धरैत छी लागनि, ताव लैत छी खपटी पेट सँ, मारैत छी जोर हरक नास पर ठीकोठीक कुंजीक सीक मे. फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल हरबाहक माथ पर हट्ठा सँ घुरैत काल, पिजा गेल अछि...

हम नहि त्यागब अपना ‘हम’केँ

मैथिली कविता :: अनुराग मिश्र टोकन बैंक मे पाइ भेटबा सँ पहिने भेटैत छैक टोकन जकरा जेबी मे राखि, लोक परतारैत अछि मोन केँ एहि अजस्त्र हेंज मे छी हमहूँ एकटा प्रत्याशी ओहि टोकन केँ देखि-देखि मनुक्ख घोरैत अछि आशाक नेबाड बनबैत अछि भविष्यक मारिते रास चित्र रोपैत अछि नेहक गाछ सजबैत अछि सुखक बंदनवार अहाँ हमर ओहने ‘टोकन’ तँ छी. स्मृतिलोप सोचैत छी कखनहुँ-काल जे हारल मनुक्खक लेल कतेक सुखद होइत छैक...

उदासी जन्म दैत अछि सब सँ आत्मीय कविता

किछु मैथिली कविता :: शारदा झा यात्रा हम की द’ सकैत छियह तोरा रोटी, कपड़ा, मकान, आस, विश्वास? भ’ सकैत अछि ई सबटा मात्र बोल होअह तोरा लेल ढनढनाइत खाली फोकला शब्दक अमार मुदा जखन हम दैत छियह तोरा अपन संवेदनाक स्पर्श आत्मा सँ झहरैत प्रेम हम नहि दैत छियह किछुओ तोरा हम ताकि रहल होइत छी तखन अपन असोथकित विश्वास आ अस्तित्व केँ ओकर ध्येय, उद्देश्य, उपयोगिता आ मर्म केँ हम निर्वाह करैत छी मनुख...