मैथिली कविता::
हरेकृष्ण झा
फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल
फार सँ छिटकैत अछि
कनखा इजोतक,
भक टूटि जाइत अछि.
सोझाँ अबैत अछि
अर्घासनक कोहा
चर्बी सँ उमसाम,
एकटा कुंजी
चकरी मारने बीचोबीच.
बामा हाथ रखैत छी
हरीस पर
हरबाहक बाम हाथक संग,
दहिना हाथ सँ धरैत छी लागनि,
ताव लैत छी
खपटी पेट सँ,
मारैत छी जोर
हरक नास पर
ठीकोठीक कुंजीक सीक मे.
फार सँ छिटकत आब
बेलीक फूल हरबाहक माथ पर
हट्ठा सँ घुरैत काल,
पिजा गेल अछि माटिक
प्राण-शक्ति सँ.
किएक मुदा एहिना
माइक कोखि तं कोनो बेर बदलल नहि हेतनि !
खूनमे ममताक सोह
एके रंग चलल हेतनि –
मोन मे सपनाक लहरि सेहो एके रंग !!
तरेगन सभक संग तालमेल क’ क’
ओगरने हेताह अहाँ कें ओहिना
चन्द्रमा ओ सूर्य
जेना अहाँक आन कोनो भाइ कें-;
जीव नेहसँ चपचप करैत सत्त भुवनक
रचने होएत सभ गोटएकें
एके तरहक गाढ़ अनुरागसँ;
झहरल होतए अन्तरिक्षमे सोहर
सभक बेरमे एक रागभासमे !!
एके गोसाउन सँ मँगैत छी
सहज सुमतिक वरदान-
एके बीजी पुरूख सँ पबैत छी नाम-गाम-ठाम;
एके माटिपानि मे करैत छी
अपन-अपन जीबाक ओरिआओन !!
जखन ई भुवन होइत रहैत अछि लहालोट
बिलहैत सौंदर्यक शुभंकर सनेस-
कोना लगैत अछि पसाही सभक नस-नस मे
एक दोसराक लेल-
चमकैत अछि भालाक नोक कोना
सभक एकेकटा धड़कन मे-?
-अरे होइत एलैक’ छै भैयारी मे एहिना अदौ सँ
कहैत छथि पकठोस बुधियार सभ गामे-गाम-
पूछि क’ देखिऔ तं एको बेर अहाँ
पूछि क’ देखिऔ तं एको बेर
अपन आलाक निविड़ एकान्त मे-
किएक मुदा एहिना ?
[हरेकृष्ण झा (28.03.1949-24.04.2019) मैथिलीक समादृत कवि-अनुवादक छथि. कोइलख, मधुबनी निवासी हरेकृष्ण झा दसेक वर्ष धरि मार्क्सवादी-लेनिनवादी-माओवादी आंदोलन सं जुड़ल रहलनि. हिनक ‘एना तं नहि जे’ शीर्षक सं एकगोट काव्य संकलन प्रकाश मे छनि. एकरा अतिरिक्त हिंदी मे ‘धूप की एक विराट नाव’, ‘राजस्थानी साहित्यक इतिहास’, वाल्ट विटमैनक कविता सभक मैथिली अनुवाद ‘ई थिक जीवन’ शीर्षक सं तथा बाढिक समस्या पर दिनेश कुमार मिश्रक पोथीक अंग्रेजी अनुवाद ‘लिविंग विद द पोलिटिक्स ऑफ़ फ्लड्स’ शीर्षक सं प्रकाशित छनि. बहुत रास कविता आ अनुवाद कार्य अप्रकाशित सेहो. हरेकृष्ण झा कें मैथिली साहित्य मे हुनक महत्वपूर्ण योगदान लेल चेतना समिति द्वारा ‘कीर्ति नारायण मिश्र पुरस्कार’ आ स्वस्ति फाउंडेशन द्वारा ‘प्रबोध साहित्य सम्मान’ प्राप्त छनि.]