मैथिली कविता ::

अनुराग मिश्र

टोकन

बैंक मे पाइ भेटबा सँ पहिने
भेटैत छैक टोकन
जकरा जेबी मे राखि, लोक परतारैत अछि मोन केँ
एहि अजस्त्र हेंज मे छी हमहूँ एकटा प्रत्याशी

ओहि टोकन केँ देखि-देखि
मनुक्ख घोरैत अछि आशाक नेबाड
बनबैत अछि भविष्यक मारिते रास चित्र
रोपैत अछि नेहक गाछ
सजबैत अछि सुखक बंदनवार

अहाँ हमर ओहने ‘टोकन’ तँ छी.

स्मृतिलोप

सोचैत छी कखनहुँ-काल
जे हारल मनुक्खक लेल
कतेक सुखद होइत छैक स्मृतिलोप.

हटा कए सबटा दुख
मेटा कए सबटा विषाद
नीप सबटा संताप
पोति सबहक अधलाह
उपटा दैत अछि सबटा ‘तीत’ अतीतक
आ ठाढ़ कए दैत अछि मनुक्ख केँ –
एक गोट एहन बाट पर
जकर पथिक होइत अछि
प्रायः ओ एकसरे.

डाँरि

कहैत छथि ओ –
जे पाडू एकटा डाँरि
सिनेहक बिचहिँबीच
जकर एहि पार नहि आबि सकी अहाँ
आ नहि ओहि पार टपि सकी हम

किंचित छथि ओ अनभिज्ञ एहि सत्य सँ
जे चाहौक नदी लाख मुदा
सागर मे मिलब थिक ओकर प्रारब्ध
कहैत छथि, छल थिक ई एकाकार होएबाक गप्प
फूसि फटकक प्रपंच
हम नहि त्यागब अपना ‘हम’केँ
रहू अहूँ अपन ‘अहीं’ मे बन्न
आ मोका रहल अछि कंठ
दुनूक मध्य किछु ‘सझिया सन’क
अही अनटोटल अंतर्द्वन्द्व मे.

जखन कखनो हम सोचैत छी

मनुक्ख लग कतेक जरूरी
काज बात छैक करैक लेल संसार मे

हँसब-कानब
रूसब-मानब
जीयब-मरब
प्रेम-बिछोह

आ एहि सभक मध्य
बिसरि जाइत छी हम
अहाँ के निरेखब
जे कि अकारणो
जीवित रहबा सँ बेसी
आवश्यक अछि
हमरा लेल.

[अनुराग मिश्र मैथिली कविताक नव्यतम पीढ़ी सँ सम्बद्ध कवि छथि. मैथिली काव्य-जगत मे विगत किछु समय मे संभावनाशील युवावर्गक जे एक समूह सोझाँ आएल अछि, अनुराग ताहि मे सँ एक छथि. हिनक कविता सभ एखनधरि मुख्यतः अप्रकाशित रहलनि अछि. वर्तमान समय मे जखन कि अधिकांश रचनाकार सोशल मीडिया फोबिया सँ ग्रस्त छथि, सोशल मीडिया पर प्राप्त लाइक-कमेंट सँ कविताक दशा-दिशा तय करैत छथि; अनुराग बेसी सँ बेसी पढ़बा मे जुटल रहब पसीन करैत छथि. कवि मे ई गुण-धर्म बनल रहतनि से भरोस अछि. हिनका सँ  anuragmishra75492380@gmail.com पर सम्पर्क कएल जा सकैछ.]

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