भोजपुरी कहानी::
तुषार कान्त उपाध्याय

ई गाड़ी कुल्हि कतना देर हो जईहन स कहल नईखे जा सकत…अब त कुहो के दिन खतम हो गईल…ऊहो सात घंटा देरी से…कमल झुझुवात अपना बगल के अनजान जातरी से बरबरात कहत रहले. गाँव से भोर होखे से पहिले तीन किलोमीटर पैदल आ फेर पसिंजर से सवा सई किलोमीटर दूर एह जंक्शन पर पहुचल रहले जहाँ से सीधे गाड़ी कोझिकोड जाये खातिर मिले के रहे. पंद्रह दिन के छुट्टी मना के. स्टेशन आईला प पता चलल गाड़ी सात घंटा बाद खुली. ‘ओह ! शुरुवाते में अतना देर’…. उ आपन सामान ले ले ओह अन्तिम प्लेटफार्म पर आ गईले जहाँ से गाडी खुले के रहे. एह प्लेटफार्म से दिन भर में दू तीन गो गाडी खुलेली, एही से एक आध गो स्टाल आ उहो कवनो गाड़ी के अईले प खूले. दस- पांच लोग. स्टेशन के भीड़-भांड से एकदम दूर. अबही, ढेर डिब्बा लागल एगो बिना इंजन वाली खाली गाड़ी खड़ा रहे. कमल आपन सब सामान एगो बेंच प राखि के आ बैग मुड़ीतर धके धीरे से ओठंघी गईले. भोरे के चलल आ राहिके थकान, ओठंघते उनकर आँखी झापये लागल रहली स. कुछ अजीब से आवाज़ सुनि के उनकर आँख खुलल. आध-मुदाईल आँखिन ऊ देखले, साथ-आठ गो बच्चन के टोली, इहे कुच्छ बारह- पनरह बारिस के . सामने खाली डिब्बा के दरवाजा पर . करीब बारह बारिस के फाटल कपड़ा पहिनले एगो गोर, सुघर लईका के बाँहि पकड़ी के एगो आधिका उमिर के लईका डिब्बा के भीतर खिचे के कोशिश करत रहे आ ऊ बच्चा डिब्बा के सिकिचा धईले पूरा जोर लगा के एह कोशिश में रहे कि भीतर ना जाये पावे. ओकरा मुंह पर कवनो जिबह होखे जात खंसी लेखा रोवे –रोवे के असहाय दीनता पसरल रहे.

‘अरे चलू ना, चलू ना. ढेर दरद थोरे होई . बाद में तोरो मज़ा आवे लागी… चलू ..’ . साथवा वाला
लईका कूल्ह एकरा के धक्का देके भीतर ले जाये के कोशिस मे लागल रहले. पहिले त कमल के कुछु बुझाईल ना…बाकि जब समझले त मन घिन्न आ तकलीफ से भरि गईल रहे. जबतक ई कुछ करे के हिम्मत जुटावास तबतक उ बच्चन के टोली कई डिब्बा आगे निकल गईल रहे. ‘ का फायदा …हम कतना दिन इन्हवा आईब ओकरा के बचावे.’   कुछ ना क सके के खिसि से उनकर मन भारी हो गईल.

यादि आईल पनरह-सोरह बारिस के उ पगली. दिल्ली के लोकल गाडी में सीखचा ढाई के खाड़…बिना कवनो
कारन हंसत. कतना बड पेट… बुझिला सात-आठ महिना के गरभ… ओह ! पिछिले साल के त बाति ह.
ई बच्चा कुल्हि रेल के जनमाई हवे. माई त थोरे दिन तक साथे जरुरे रहेले…बाकि बाप के ह ई त जनम
देबे वाली माईयो पक्का ना बता सकेले…

अगल बगल आवाजाही शुरू हो गईल रहे. उनकर गाड़ी कबहियों प्लेटफार्म प आके लागी जाई. मुंह-हाथ
धोके के बगल के स्टाल से चाय लेबे के मन बनावत बाड़े कि गाड़ी सरकत आ गईली. उनकर डिब्बा थोरहीं
आगे लागी गईल बा. जल्दी-जल्दी ऊ आपन सामान अपना बर्थ के नीचे राखि के आ बगल वाला बर्थ के भाई साहेब से सामान देखत रहे के निहोरा क के नीचे उतरि आवत बाड़े. चाय पिए के मन आ ओह लईकन के फेरु से देखे के लालसा. चाय के कप हाथ में लेले उनकर आंखी एने-ओने भटकत बाड़ी स. भरल प्लेटफार्म पर उनकर आँखि ओह लईकन के टोली के खोजत बिया. आ तबे एगो लईका जान लगा के भागल आवत जरिये से गुजरता . पीछे पीछे एगो जवान सिपाही हाथ में डंडा लेले दऊरता. ओह लईका के भागी जाये प खिसियाईल सिपाही माई -बहिन में रेलिए डाली देबे लेखा गारीं बकता फेरु भेट गईला प हाथ गोड तुरी देबे के धमकी देत लवट जाता. अगल-बगल जातरी से भरल प्लेटफार्म प कवनो असर नईखे परत. कवनो उनका साथे थोरे भईल बा. सिपाही खातिर गारी तकिया-कलाम ह आ बच्चा खातिर रिश्ता. केहू खातिर एह गारीं से मान-मरजादा के नाता नईखे. जेकरा परत होखे उ आपन कान बन क लेउ.

रेलगाड़ी घंटन भर से चल रहल बिया , आ कई घंटा बाद रुकी. लोग आपन-आपन बिछवाना लगा के आराम से अपना में मगन हो गईल बाड़े. की तबे लईकन के एगो टोली डिब्बा में घुसि आवत बा. अब ई उहे टोली ह की दुसर, कहल मुश्किल बा. सब तो एके लेखा. अझुराइल बार आ जेने तेने से कपड़ा. हहं …चेहरा प उहे आदमी के बच्चा नियन मासूमियत. सोझा वाला बर्थ प आधा उठुन्घल आ कपड़ा से धनि-मानी बुजुर्ग झुझुवात बाड़े .

‘बताईं अब सेकंडो एसी के कोच में हवा-हेली. हई ससुरा मोरी के किरा कुल्हि घुसि आवत तारे स. ‘आ ओह बच्चन के जोर से डांटे लागत बाड़े. अंग्रेजी वाली गारी कुल्हि. जवान पढल-लिखल आदमी अपना के सभ्य देखावे खातिर अपना से छोट लोगन के देला. एगो बड़का लईका उनका से अझुराए लागत बा. ओह टोली के कुछ लईका अन्यासे हँसे लागत बाड़े. सब लोग चुप बाकि कमल से देखल नईखे जात. उ बड़का लईका के जोर से बोलत तारे.

‘अरे ! ते तनी ठीक से ना बोलि सकेले.’ कमल के बोली में लईकन खातिर उहे अपमान वाला भाव उतरि आवत बा.
‘ उमिरियो नईखे लउकत तहनी के. तनी आदर से नईखस बोले सकत.’
‘आदर, ऊ कईसे बोलल जाला. हमनी त मुन्हवे से बोले जानेनी जा.’ आ कुल्हि लईका खे-खे क के हंसत
चली जात बाड़े ओहिजा से.

कमल लाजईला लेखा अपना बर्थ प आ जात बाड़े.
ओह! हमहू कहवाँ इज्ज़त आ आदर के उमेद लगा लेनी हाँ. एह रेली के जनमाई बच्चन के लात आ गारी के
आदत हो जाला. बुझिला जानवरों इन्हनी से निमन जिनगी जिए के हकदार बाड़े. भीतर से डूबत मन लेले
कमल माथा तकिया प टेका देत बाड़े.

***

तुषार कान्त उपाध्याय भोजपुरी आ हिंदी कहानी में चिन्हल-जानल नाम बाड़ें आ साहित्यिक गतिविधि आउर में मगन रहेलें। इनकर कहानी ढेर पत्र-पत्रिका सब में लगातार प्रकाशित होत रहेला आ पाठ्यक्रम सब में भी लागल बा।  इहां से tushaar9@gmail.com पर सम्पर्क कइल जा सकेला। 

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