सम्पादकीय ::
प्रभात प्रणीत

संस्था प्रमुख महोदय,
नमस्कार

आशा है कोविड संक्रमण से मुक्त होने के बाद आप अब पूर्ण स्वस्थ होंगे. कल आपको एक सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित करते देखकर अच्छा लगा, आप उन खुशनसीबों में से हैं जो इस जानलेवा बीमारी से सुरक्षित बचे हैं और स्वभाविक तौर पर आपको चिकित्सा संबंधित असुविधाओं का भी सामना नहीं करना पड़ा होगा. ना ही कोविड से जूझते वक्त आपको इस बात की चिंता हुई होगी कि आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीजन, आईसीयू या वेंटिलेटर की व्यवस्था कैसे होगी. आप जैसे चंद खुशनसीबों को अपने बीच देखना ही तो इस देश की सवा अरब जनता का सबसे बड़ा सौभाग्य है.

आपको अभी पत्र लिखने की एक खास वजह है. दरअसल मैं आपको बधाई देना चाहता था. उस रहस्य का समाधान करने के लिये जिसने मेरे जैसे कम बुद्धि वाले व्यक्ति को काफी समय से परेशान कर रखा था.पिछले डेढ़ वर्षों में और खासकर इन दो-तीन महीनों में इस वैश्विक महामारी ने जिस तरह हिंदुस्तान में कहर बरपाया है, मेरे जैसा व्यक्ति, इसके कारण को समझने के लिये परेशान है. समझ में ही नहीं आ रहा था कि इसका मुख्य दोषी कौन है, इस जघन्यतम स्थिति का वास्तविक जिम्मेवार कौन है. आपने कल के अपने संबोधन में स्पष्ट रूप से सबसे प्रमुख दोषी का नाम सबसे पहले लेकर हमलोगों की सारी दुविधा का निराकरण कर दिया.

जैसा कि आपने कहा, नागरिक, सरकार और नौकरशाह इसके दोषी हैं. आपने सबसे पहले नागरिक बोल कर हमारी दुविधा खत्म कर दी. असली गुनाहगार, पहला गुनाहगार तो इस देश का मूर्ख नागरिक ही है, सारी तबाही का जड़ वही है. वैसे आपने नागरिकों के बाद सरकार और नौकरशाहों को भी दोष दिया है लेकिन आपके वक्तव्य की इस विशेषता का तो मैं कायल हो गया. यदि आपने अनमने ढंग से भी सरकार और नौकरशाहों का नाम नहीं लिया होता तो इस देश के मूर्ख नागरिक इसी बात को मुद्दा बना लेते, बेवजह ही बखेड़ा खड़ा हो जाता.आपने बिल्कुल सही कहा कि इस सारी तबाही में नागरिकों का बहुत बड़ा योगदान है.

जब पता है कि महामारी है, जब साहब तक कह रहे हैं कि सभी घर में रहें तो ये लोग आखिर बाहर निकलते क्यों थे, क्या रोज बाहर निकलना जरूरी है, अरे रोजी-रोटी की चिंता क्यों करनी, पहले अपनी जान तो बचाओ मूर्खों! हमारे गौरवशाली इतिहास से भी तो सीखना चाहिए था इन्हें. क्या इन्हें पता नहीं कि स्वर्णकालीन मनुयुग में इस महान राष्ट्र के 90 फीसदी नागरिक तो कई-कई दिन भूखे, अधनंगे अवस्था में रहकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देते थे और ऐसा वे हजारों साल तक करते रहे, क्या मजाल है कि उन्होंने आह भी भरी हो. आज सबको तीनों टाइम खाना चाहिए, ऊपर से बच्चों को स्कूल भी भेजना है, पढ़ाना है, टीवी भी चाहिए, और तो और इनके बच्चे डार्क चॉकलेट के सपने भी देखने लगते हैं. अब यह सब नाजायज सपने देखेंगे तो बाहर निकलना ही होगा और कोविड से मरना भी होगा. इनके चक्कर में देश बर्बाद हो रहा, मर ये लोग रहे हैं और बदनाम देश हो रहा है.

इन नागरिकों की मूर्खता की सच में कोई सीमा नहीं. अरे कुंभ का आयोजन इनके पापों से मुक्ति के लिये ही तो किया गया था. इनके चलते सरकार ने एक साल पहले ही इसका आयोजन किया, इस तंग अर्थव्यवस्था की हालत में भी आयोजन में कितने खर्च हुए, ठीक है कि इससे अखाड़ों की आमदनी भी हजारों करोड़ हुई लेकिन उनका तो त्याग, तपस्या भी कितना ज्यादा है. अब ये लोग आये ही तो कोविड की जाँच करवा कर आते, हरिद्वार की पावन धरती पर मास्क, सेनेटाइजर और अन्य कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना था, इन लोगों ने यह किया नहीं और बीमारी देश भर में फैल गई.

लोकतांत्रिक देश की अपनी मजबूरी होती है, चुनाव कराना पड़ता है, राज्य की स्थिति के हिसाब से यह आठ चरण में भी हो सकता है लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि ये लोग लापरवाह हों जायें. ठीक है, साहब की रैली को सफल बनाना जरूरी है, लाखों की संख्या में पहुँचना जरूरी था लेकिन आपस में दो गज की दूरी तो रख सकते थे, एक दूसरे पर चढ़ने की क्या जरूरत थी. ज्यादातर ने तो मास्क भी नहीं लगा रखा था. अब कुतर्क देखिए, बोलते हैं साहब ने भी तो मास्क नहीं पहना था, पहली बात वे साहब हैं वे जो चाहें वो कर सकते हैं, और उन्होंने वैक्सीन भी ले रखी है, ऊपर से वे तो मंच पर रहते हैं न, लोगों से दूर, उन्हें मास्क पहनने की भला क्या आवश्यकता? अब उन्हें टीवी पर देखकर सबने उनका अनुकरण ही शुरू कर दिया तो यह तो लोगों की गलती है.

खुद गलती कर ये लोग अब बोल रहे हैं कि जब सारी दुनिया पिछले साल वैक्सीन के रिसर्च, प्रोडक्शन में हजारों करोड़ खर्च कर रही थी, प्रोडक्शन शुरू होने के पहले ही अपने देश के लोगों के लिये एडवांस ऑर्डर दे चुकी थी तो हमारे साहब ने ऐसा क्यों नहीं किया, सरकार ने एक रुपया न रिसर्च में लगाया और न ही पिछले साल वैक्सीन का कोई ऑर्डर ही दिया. दिया भी तो सिर्फ ऑक्सफोर्ड वाले Covishild और भारत बायोटेक के Covaxin के मात्र दो करोड़ डोज का ऑर्डर इस साल जनवरी में. अब बताइये, इसमें साहब की भला क्या गलती, वे कोई मूर्ख कांग्रेसी हैं जो देश का धन वैक्सीन जैसी चीजों में बर्बाद करें. क्या हालत कर दी है कांग्रेसियों ने, बच्चा जन्म लिया नहीं कि दसों वैक्सीन मुफ्त में ही बच्चों को दिलवा देते हैं. सोचिए, देश का कितना पैसा बर्बाद होता है इसमें. अरे बच्चा आपका तो उसके लालन-पालन की जिम्मेवारी भी तो आपकी हुई न, अब उनके जिंदा रहने, बीमारी मुक्त रखने की गारंटी भला सरकार क्यों ले? वैक्सीन, दवा सबकी जिम्मेवारी सरकार ने ले रखी है इसी से जनसंख्या नियंत्रण नहीं हो पा रहा है, यह सब नेहरू और कांग्रेस की अदूरदर्शिता का परिणाम है.

और सच कहें तो इस समय दरअसल साहब के साथ धोखा हुआ है, उन्होंने तो इस देश के नागरिकों की ‘स्ट्राँग इम्यूनिटी’ पर भरोसा कर के अन्य देशों की तरह न वैक्सीन के शोध में कोई खर्च किया और न ही सबकी तरह एक साल पहले ही ‘एडवांस ऑर्डर’ करने में देश का पैसा फूंका. उन्होंने तो नागरिकों की इम्युनिटी पर इतना बड़ा भरोसा कर के ही दावोस के मंच से पूरी दुनिया के सामने कोविड पर जीत की घोषणा भी कर दी थी, लेकिन नागरिकों ने धोखा दिया, अब देखो खुद मरे जा रहे हैं, ऑक्सीजन, दवा, हॉस्पिटल के लिये ट्वीट कर देश को बदनाम कर रहे हैं. मरने को मरें, कम से कम देश को बदनाम तो न करें, साहब की छवि का तो खयाल रखें, कितना धक्का पहुँचा है उनकी छवि को पूरे विश्व में. जबकि वे तो इन्हीं नागरिकों के लिये कोविड बनाने वाली दोनों कंपनियों की फैक्ट्रियों के दौरे पर भी गये थे, और भला वे क्या कर सकते थे. उनका वहां जाना ही उनके ‘वैक्सीन गुरु’ होने की सबसे बड़ी पहचान थी.

नागरिकों की इम्युनिटी पर भरोसा कर के ही तो साहब ने अपने देश के नागरिकों को लगाए गए वैक्सीनों से ज्यादा संख्या में वैक्सीन दुनिया के अन्य जरूरतमंद देशों को भेज दी और जिसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र की बैठक में भी की गई, जिससे हमारे देश की प्रतिष्ठा में इजाफा भी हुआ, लेकिन ये तो नागरिक हैं जिन्होंने न अपनी इम्युनिटी पर काम किया और न ही कोविड से अपना बचाव ही किया, भुगतना देश को पड़ रहा है.

अब लोग कह रहे हैं कि देश भर के विशेषज्ञ जब जनवरी से ही दूसरी लहर की चेतावनी दे रहे थे तो साहब ने रोकथाम की व्यवस्था क्यों नहीं की, ऑक्सीजन, आईसीयू, वेंटिलेटर का इंतजाम क्यों नहीं किया, हॉस्पिटल क्यों नहीं बनवाये, कुंभ टाल देते, चुनाव एक-दो चरण में करवा लेते, इतनी रैलियां नहीं करते. इससे एक तो देश भर में गलत संदेश गया और इंतजाम न होने की वजह से लाखों लोग मर गये. मतलब हद है, अरे चेतावनी तो बारिश की भी हर तीसरे दिन आती है तो क्या बारिश होती है. चेतावनी सुनकर बिना बारिश के सब रेनकोट तो पहन कर नहीं निकल जाते. कई बार तो चक्रवात की चेतावनी भी गलत साबित हो जाती है. तो इन्हें इतनी गंभीरता से साहब जैसा महामानव तो नहीं ले सकता न. उन्होंने संकट आने का इंतजार किया, अब आया है तो जो वे कर सकते हैं, कर ही रहे हैं, उन्होंने राज्यों को हमेशा की तरह कहा है कि वे व्यवस्था करें, वैक्सीन भी खुद ही दुनिया भर से ‘ग्लोबल टेंडर’ द्वारा मंगवा लें, केंद्र की तरफ से कोई रोक नहीं है.

संस्था प्रमुख जी, आपने एक और बहुत बड़ी बात कही है जिसके लिये मैं आपको विशेष धन्यवाद देना चाहता हूँ. आपने कहा कि जो चले गये वे चले गये, वे तो दरअसल मुक्त हो गये जीवन की आपाधापी से, तनाव से. बिलकुल ठीक कहा आपने, इसी मुक्ति के लिये लोग क्या नहीं करते हैं, कोविड के कारण उन्हें आसानी से मुक्ति मिल गई. अब उनके बारे में सोचकर कष्ट करने से क्या फायदा, बेमतलब का हर तरफ निगेटिव माहौल बनाकर क्या होगा? ठीक है कि जो चले गये उनके परिवार वालों के समक्ष आजीविका संबंधित संकट होगा लेकिन यह इन परिवारों के, उनके बच्चों के लिये आत्मनिर्भर होने का मौका भी तो है, आत्मनिर्भर हिंदुस्तान का निर्माण इसी से तो होगा.

जो लोग साहब को बेमतलब का दोष दे रहे हैं वे समझ नहीं रहे हैं कि उन्होंने दुनिया के तमाम देशों से अलग कुछ करने की कोशिश की है. उन्होंने इस आपदा को अवसर में बदला है, एक तरफ जो लाखों लोग मर गये उन्हें तो इस संसार के कष्ट से मुक्ति मिली ही, दूसरी तरफ अब उनके परिवार जब आत्मनिर्भर बनेंगे तो यह महान राष्ट्र भी आत्मनिर्भर बन जायेगा. साहब की यह दूरदर्शी सोच ही हिंदुस्तान को विश्व गुरु बनाएगी.

महोदय, आपके इस विशेष संबोधन, समाधान के लिये एक बार पुनः धन्यवाद.

‘आदर्श सहनशील नागरिक’ की आपकी अपेक्षाओं पर खड़ा उतरने का प्रयत्न करता महान राष्ट्र हिंदुस्तान का एक नागरिक
प्रभात प्रणीत

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