कविताएँ : फ़िलिप लार्किन
अनुवाद एवं प्रस्तुति : उमंग

फिलिप लार्किन, बीसवीं शताब्दी के अंग्रेज़ी साहित्य की सबसे विशिष्ट और गहन आवाज़ों में से एक, कवि और उपन्यासकार थे। उनके शब्दों ने साधारण जीवन की उदासी और गहराई को असाधारण संवेदनशीलता के साथ रूप दिया। लार्किन का साहित्यिक सफ़र बेहद जल्दी शुरू हुआ। उनकी पहली कविता Ultimatum 28 नवंबर 1940 को The Listener में प्रकाशित हुई। इसके बाद जून 1943 में उनकी तीन कविताएँ—A Stone Church Damaged by a Bomb, Mythological Introduction, और I Dreamed of an Out-Thrust Arm of Land, Oxford Poetry (1942–43) में आईं। दो वर्ष पश्चात्, 1945 में, उनकी दस कविताएँ Poetry from Oxford in Wartime में प्रकाशित हुईं, जिन्हें आगे चलकर उनके प्रथम संग्रह The North Ship (1945) में संकलित किया गया। कविता के अतिरिक्त लार्किन ने गद्य में भी अपनी कलम चलाई। उनके दो उपन्यास— Jill (1946) और A Girl in Winter (1947)— आलोचकों द्वारा सराहे गए। 1951 में उन्होंने निजी रूप से XX Poems शीर्षक से केवल 100 प्रतियों का सीमित संस्करण प्रकाशित किया। इसके तुरंत बाद 1954 में Fantasy Press से पाँच कविताओं का एक छोटा-सा पैम्फलेट आया। यहीं से उनकी साहित्यिक यात्रा ने गति पकड़ी। इसी काल में Toads और Poetry of Departures जैसी कविताएँ Listen पत्रिका में छपीं और Marvell Press ने उनका पहला महत्वपूर्ण संग्रह The Less Deceived (1955) प्रकाशित किया, जिसने उन्हें व्यापक ख्याति दिलाई। लार्किन की ख्याति आने वाले दशकों में और प्रखर होती गई। The Whitsun Weddings (1964) को असाधारण प्रशंसा प्राप्त हुई और इसी संग्रह ने उन्हें 1965 में Queen’s Gold Medal for Poetry से सम्मानित करवाया।  High Windows (1974) प्रकाशित हुई, जिसने उन्हें अपनी पीढ़ी के श्रेष्ठतम कवियों में स्थापित किया। उनकी अंतिम महान रचना Aubade दिसंबर 1977 में The Times Literary Supplement में प्रकाशित हुई—एक ऐसी कविता जिसने मृत्यु, भय और मानवीय एकाकीपन को अविस्मरणीय ढंग से स्वर दिया।

लार्किन की कविता अपनी नपे-तुले शब्दों की सटीकता, तीक्ष्ण यथार्थवाद और निर्विकार ईमानदारी के लिए पहचानी जाती है। उनमें एक ऐसा स्वर है जो तुरंत पहचान लिया जाता है—गंभीर किन्तु गहन, उदास परन्तु अत्यंत मानवीय। उनके विषयों में प्रेम, विवाह, मृत्यु, समय का क्षरण और जीवन की नीरस दिनचर्या बार-बार उभरती है। अक्सर उनकी कविताएँ निराशा, कटुता और उदासी का रंग ओढ़े होती हैं, जो उनके निजी जीवन के अनुभवों से उपजी लगती हैं। किंतु इसी उदासी में उनकी दृष्टि आधुनिक पश्चिमी सभ्यता के पतन, मानवीय आकांक्षाओं और वास्तविकताओं के बीच संघर्ष को गहराई से पकड़ लेती है। उनके शब्दों में एक साथ थकान और करुणा, कटु सत्य और सूक्ष्म संवेदना का मेल है। यही विरोधाभास उन्हें विशिष्ट बनाता है—जहाँ वे मानवता की ऊँची नियति के स्वप्न और जैविक, सामाजिक तथा ऐतिहासिक अस्तित्व की कठोर वास्तविकताओं के बीच झूलते रहते हैं। निराशाजनक यथार्थ और गहन अंतर्दृष्टि के इस अद्भुत संगम ने फिलिप लार्किन को आधुनिक कविता का वह स्वर बना दिया जिसने न केवल अपने समय की बेचैनियों को बल्कि सार्वकालिक मानवीय सत्य को भी अमरता प्रदान की।

1. अरुंडेल का मकबरा

सर्वत्र, उनके चेहरे धुंधले हो गए,
अर्ल और काउंटेस पत्थर में समाए पड़े हैं,
उनकी पोशाकें धुंधली दिखाई गईं—
जैसे सुदृढ़ कवच, सख़्त चुन्नट,
और वह विसंगति की मद्धिम झलक—
जैसे उनके पैरों के नीचे नन्हे कुत्ते।

पूर्व-बारोक की सादगी
नज़रों को छू भी नहीं पाती, जब तक
वह उसके बाएँ हाथ के कवच से न मिल जाए; फिर भी
दूसरे में खालीपन जकड़ा हुआ है और
कोई तीव्र, कोमल चुभन के साथ देखता है—
उसके हाथ विरक्त, उसकी हाथों को थामे हुए।

उन्होंने सोचा न था कि इतने समय तक पड़े रहेंगे।
प्रतिमा में ऐसी विश्वसनीयता,
केवल एक बारीक़ी थी जो मित्र देख पाते:
शिल्पकार की वह मधुर, साधिकार शोभा
त्याग दी गई ताकि आधार पर फैले लैटिन नामों
को सार्वकालिक किया जा सके।

वे अनुमान न लगा पाए कि कितनी जल्दी,
उनकी स्थिर, उर्ध्वशायी यात्रा में
वायु नीरव क्षति में तब्दील हो जाएगी।
पुराने जागीरदारों को विदा कर दो,
कितनी शीघ्र उत्तरवर्ती आँखें
देखने लगती हैं, पढ़ती नहीं।

दृढ़ता से वे लेटे रहे, संग बंधे हुए
समय की विस्तीर्णता से। हिमवर्षा हुई—बिना तिथि के।
हर ग्रीष्म, प्रकाश शीशे में उमड़ आया।
शुभ नावपक्षियों की चहचहाहट बिखरी हुई—
उसी हड्डी भरे मैदान पर और उसी पथ पर
आते रहे असंख्य परिवर्तित इंसान,
अपनी पहचान को धुंध से ढके हुए।

अब, बेसहारा इस नवीन युग के
खोखलेपन में, उनके इतिहास के कतरन पर
लिपटी धुएँ की एक चादर,
अब केवल एक नज़रिया बचा है।

वक़्त ने उन्हें असत्य में
परिवर्तित कर दिया—उस पत्थर की निष्ठा,
वे शायद ही चाहते थे इसे उनका
आख़िरी प्रतीक होना, और यह प्रमाणित करना कि हमारी
प्रवृत्ति लगभग सही है:
जो हममें बचेगा वह प्रेम ही है।

2. प्रभाती प्रेमगीत

मैं पूरे दिन काम करता हूँ और रात को आधे नशे में रहता हूँ।
जगता हूँ चार बजे शांत अंधकार में और घूरता हूँ।
समय के साथ परदे के कोने प्रकाशित होते हैं।

तब तक मैं देखता हूँ जो वास्तव में हमेशा मौजूद है:
अशांत मृत्यु, अब एक पूरे दिन और करीब,
जो सभी ख़यालों को असंभव बना देती है—
और यह सोचने को कि मैं कैसे, कहाँ और कब मरूँगा।

व्यर्थ प्रश्न, फिर भी मृत्यु का भय
और मृत होना—
नए सिरे से चमकता है, हमें हिरासत में लेने और भयभीत करने को।

मस्तिष्क चकाचौंध में निरर्थक हो जाता है। आत्मा ग्लानि का कारण नहीं—
अच्छे कार्य न किए गए, प्रेम न दिया गया,
समय बिना इस्तेमाल किए फेंक दिया गया—न कि दुखी होकर,
परन्तु केवल जीवन ही इतना समय लेता है चढ़ाई पूरी करने को।

अपने ग़लत आरम्भ के बारे में स्पष्ट, और शायद कभी नहीं,
लेकिन हमेशा एक संपूर्ण खोखलेपन के साथ,
यात्रा करता है उस निश्चित अंत की ओर,
जहाँ हमेशा वह हैरान रहेगा—यहाँ न रहने को,
कहीं भी न रहने को,
और जल्द ही; कुछ भी अधिक भयानक नहीं, कुछ भी अधिक सत्य नहीं।

यह भयभीत होने का एक विशेष तरीक़ा है।
कोई उपाय काम नहीं आता। धर्म प्रयास करता है—
वह विशाल, प्राचीन, दिव्य ज़री का वस्त्र
सृजित किया गया यह ढोंग करने को कि हम कभी नहीं मरते,

और दिखावटी पदार्थ, जो कहता हैं— कोई तर्कपूर्ण मनुष्य
उस चीज़ से कभी नहीं डरता जिसका अनुभव उसे कभी नहीं हुआ।

ना देख पाना कि यही वह चीज़ है जिससे हम डरते हैं— ना दृष्टि, ना आवाज़,
ना कोई स्पर्श या स्वाद या गंध, ना कुछ सोचने को,
ना कुछ प्रेम करने को या जोड़ने को—
वह शक्तिहीन अवस्था जिससे कोई नहीं उबरता।

और इसी तरह यह दृष्टि के किनारे ही रह जाता है,
एक छोटा-सा धुंधला बिंब, एक स्थायी सिहरन,
जो प्रत्येक आवेग को धीमा कर देती है, दुविधा में बदलकर।

अधिकांश कार्य शायद कभी न हो पाएँगे, लेकिन यह होगा—
और इसका एहसास फैलता है
भट्ठी जैसे भय में, जहाँ हम फँस जाते हैं
लोगों और शराब के बिना। साहस व्यर्थ है:

इसका अर्थ है दूसरों से न डरना, साहसी होना,
किसी को भी कब्र से बाहर न निकलने देना।

मृत्यु में कोई अंतर नहीं,
चाहे हम चीखें या उसका सामना करें।

आहिस्ता दिन प्रबल होता है, और कमरा आकर ले लेता है।
वह स्पष्टतः एक अलमारी की तरह खड़ा रहता है, जिसे हम जानते हैं,
सदैव जानते रहे हैं, जानते हैं कि इससे भाग नहीं सकते,
फिर भी इसे स्वीकार नहीं कर पाते। एक पक्ष को जाना होगा।

तब तक टेलीफ़ोन अपना मोर्चा संभाले रहता है, बजने को तत्पर,
ऑफ़िसों में बंद, और पूरी निश्चिंत—
जटिल किराये की दुनिया जागती है।

आकाश मिट्टी के समान सफ़ेद, बिना सूरज के।
कार्य तो करना ही होगा।
डॉक्टर, पोस्टमैन की तरह घर-घर जाएँगे।

3. फिर से प्रेम करना

फिर से प्रेम : तीन बजकर दस मिनट पर हस्तमैथुन
(अवश्य ही अब तक वह उसे घर ले गया होगा)

बैडरूम बेकरी जैसा गर्म,
नशा उतर गया, बिना यह दिखाए कि
कल और उसके बाद कैसे मिलें,
और वही सामान्य दर्द, जैसे दस्त।

कोई और उसकी स्तनों और योनि को महसूस कर रहा है,
कोई और उस आकर्षक, विस्तृत निगाहों में डूब गया,
और मैं अनभिज्ञ समझा गया,
या तो उसे हास्यास्पद समझ लें, या परवाह ही न करें।
फिर भी क्यों उसे शब्दों में बाँधा जाए?
बल्कि इस तत्त्व को अलग ही कर दो,

जो दूसरों के जीवन में वृक्ष की तरह फैलता है,
और किसी प्रकार की अनुभूति में बहा ले जाता है,
और कहो कि यह मेरे लिए कभी क्यों काम न आया।
कुछ हिंसा से जुड़ा हुआ, और गलत इनाम,
और अहंकार में डूबी अनंता।

4. सामाजिक कविता

मेरी पत्नी और मैंने एक बेकार भीड़ से कहा कि
आओ और हमारा व अपना समय बर्बाद करो, शायद
आप हमारे साथ शामिल होना चाहेंगे? बिल्कुल नहीं, दोस्त।
दिन ढल जाता है।
गैस की ज्वाला साँस भरती है, वृक्ष अंधकार में झूमते हैं,
और इसलिए, प्रिय वरलॉक-विलियम्स: मुझे डर लग रहा है—

अजीब है कि अकेला होना कितना कठिन है।
अगर मैं चाहूँ, तो अपनी शाम का आधा हिस्सा
एक गिलास वाशिंग शेरी पकड़े बिता सकता हूँ,
किसी चुड़ैल की बकवास सुनने के लिए झुककर,
जिसने ‘विच’ के अलावा कुछ पढ़ा ही नहीं।
बस सोचो कि कितना खाली समय बीत गया,

काँटों और चेहरों से भरे हुए,
सीधे अस्तित्वहीनता की ओर, लैंप की रोशनी तले,
कोई प्रतिदान न पाकर, हवा की सरसराहट सुनते हुए,
और बाहर चाँद को देखते हुए,
जो हवा की तेज धार से
एक नुकीले ब्लेड में बदल गया था।
एक जीवन, फिर भी यह कितनी सख्ती से अंकित किया गया है।

सारा एकांत स्वार्थी है। अब कोई विश्वास नहीं करता
उस संन्यासी पर, जो अपने वस्त्र और भिक्षापात्र के साथ
ईश्वर से बात करता है (जो भी अब चला गया है)। सबसे बड़ी तमन्ना यही है कि
लोग तुम्हारे साथ अच्छे रहें—और उसका मतलब है कि
तुम्हें भी उनके साथ अच्छा व्यवहार रखना होगा।
नैतिकता सामाजिक है। तो क्या ये दिनचर्याएँ

केवल उदारता का अभिनय हैं, जैसे चर्च जाना?
कुछ ऐसा जो हमें उबाता है, कुछ ऐसा जिसमें हम अच्छे नहीं हैं
(उस गधे से उसके निष्फल शोध के बारे में पूछना)।
पर फिर भी कोशिश करो महसूस करने की, क्योंकि चाहे जितना भी भद्दा हो,
यह हमें दिखाता है कि होना क्या चाहिए।
बहुत उत्कृष्ट है। बहुत शालीन भी। ओह, क्या मुसीबत है!

केवल युवा ही आज़ादी से अकेले रह सकते हैं।
अब संगति के लिए समय कम है,
और दीपक के पास बैठना
अक्सर शांति नहीं, बल्कि और चीज़ें ले आता है।
प्रकाश से परे असफलता और पश्चाताप खड़े हैं।
फुसफुसाते हुए, प्रिय वरलॉक-विलियम्स: क्यों, हाँ, बिल्कुल।

5. यही कविता हो

वे तुम्हें बिगाड़ देते हैं — तुम्हारे माता-पिता।
हो सकता है कि उनका ऐसा इरादा न हो, लेकिन वे ऐसा करते हैं।
वे तुम्हें अपनी गलतियों से भर देते हैं,
और उसमें कुछ अतिरिक्त जोड़ देते हैं — सिर्फ़ तुम्हारे लिए।

पर वे भी अपने समय में बिगाड़े गए थे,
पुराने फैशनेबल टोपी और कोट पहनने वाले मूर्खों द्वारा,
जो आधा समय करुणा-कठोर रहते थे
और आधा समय एक-दूसरे की गर्दन पर।

मनुष्य दुख को मनुष्य को सौंपता है।
यह समुद्र की गहराई की तरह बढ़ता जाता है।

जितनी जल्दी हो सके, निकल जाओ,
और अपने बच्चे मत पैदा करो।

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उमंग अंग्रेजी में कवितायें लिखते हैं और अनुवाद करते हैं।
उनके इंद्रधनुष पर पूर्व-प्रकाशित काम यहाँ देखे जा सकते हैं : कवि का उचित अनुसरण करें