स्त्री-संसार  ::
कविता : वारसन शायर
अनुवाद और प्रस्तुति : प्रकृति पार्थ

लंदन में रहने वाली कवि, लेखक, संपादक, शिक्षक और कार्यकर्ता वारसन शायर का जन्म केन्या के नैरोबी में हुआ था. उनके टीचिंग माई मदर हाउ टू गिव बर्थ , हर ब्लू बॉडी  और आवर मेन डू नॉट बिलॉन्ग टू अस  नाम से संग्रह प्रकाशित हैं.  वारसन की गंभीर कविताएँ युद्धग्रस्त क्षेत्रों के अप्रवासियों और शरणार्थियों के दर्दनाक अनुभव के बारे में बताती हैं. उनकी कविताओं में  परिवार और रिश्ते, स्त्री जाति से द्वेष, आत्म-घृणा और यौन उत्पीड़न जैसे विषय प्रमुखता से उभरते हैं. एक कविता में वह कहतीं हैं –

उदासीनता युद्ध की तरह ही है,
ये  दोनों तुम्हारी जान ले लेते हैं, वह कहती है.
धीमे-धीमे स्तन में कर्करोग फैलता है जैसे
या फिर गर्दन प तेज़ तलवार का वार.”

उस औरत के लिए प्रश्न जो मैं कल रात थी

कितनी दूर चली हो तुम उन मर्दों के लिए
जिन्होंने कभी तुम्हारे पैरों को अपनी गोद में नहीं रखा?
कितनी बार तुमने हड्डियों का सौदा किया, खुद की कम कीमत लगा कर?
अनुपलब्ध चीजें आकर्षक क्यों लगती हैं तुम्हें?
कहाँ शुरू हुआ था ये?
क्या गलत हो गया?
किसने तुम्हें इतना बेकार महसूस कराया?

अगर वो तुम्हें चाहते, तो क्या वो तुम्हें चुनते नहीं?
इस पूरे समय, तुम चुपचाप प्रेम की भीख मांगती रही,
और यह सोचती रही कि वे तुम्हें सुन नहीं पाएंगे,
पर उन्होंने सूंघ लिया था यह तुम्हारे ऊपर,
तुम तो जानती ही थी कि वो चख सकते थे
तुम्हारी चमड़ी पर हताशा से भरा हुआ वह गलत निर्णय?

और उनका क्या जो तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकते थे,
क्यों उन्हें खुद से प्रेम करवाया तब तक जब तक
तुमसे वे बर्दाश्त नहीं होने लगे?
कैसे तुम ये दोनों ही स्त्रियां हो,
सनकी भी और जरूरतमंद भी?

कहाँ सीखा तुमने ये, उसे चाहना जो तुम्हें  नहीं चाहता?
कहाँ सीखा तुमने ये, छोड़ जाना उन्हें जो रुकना चाहते हैं?

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प्रकृति पार्थ कवि और अनुवादक हैं और पटना विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही हैं।  उनसे prakritiparth04@gmail.com पर बात हो सकती है।