अरुण कमल की कुछ काव्य-पंक्तियाँ ::

चयन और प्रस्तुति : स्मृति चौधरी

 

अरुण कमल के काव्य-संसार से मेरा पहला परिचय तब हुआ था जब मैं स्कूल में थी। ‘नए इलाके में’ हमारी हिंदी पाठ्यक्रम का भाग हुआ करता था। अगले साल मैं बहुत समय बाद उस शहर गई जहाँ मेरा बचपन बीता था, और वहाँ की गलियों से गुज़रते वक्त मेरे दिमाग में उस कविता की कुछ पंक्तियां गूँजने लगी।

“यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं”

यह उन कुछ कविताओं में से थी जो स्कूल खत्म होने बाद भी मेरे मन से भूला नहीं गया। कुछ ऐसी है अरुण कमल की कविताओं की दुनिया। उनकी हर कविता पढ़ कर व्यक्ति खुद को उनसे संबंधित कर सकता है। कविताएँ पढ़ते समय मुझे डेजा वू का एहसास हो रहा था, मन में यह बात आ रही थी की “अरे, ऐसा तो मेरे साथ भी हुआ है एक बार” रोज़मर्रा के जीवन को वो अपनी कविताओं में इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि साधारण से साधारण घटनाएँ पुरजोश लगने लगती है।
हमारे नीरस जीवन में कई रंग हैं जो हम अनदेखा कर देते हैं, और अरुण कमल की कविताएं इन रंगों में चार चाँद लगा देती हैं। जितना सरल इन कविताओं का विषय है, उतना ही सरल उनकी भाषा शैली। यह कविताएँ पढ़ कर ऐसा लगता है मानो हम कुछ पढ़ नहीं रहे, बस अपने मन में ही सोच रहे हैं।

 झड़ना था तो खेत में झड़ता
दाई माई चुन लेतीं
झड़ना था तो राह में झड़ता
चिड़िया-चुरगुन चुन लेतीं
अब तो खंखड़ हूँ मैं केवल
दाना था सो घुन खा बैठे।

 

आज तक मैं यह समझ नहीं पाया
कि हर साल बाढ़ में पड़ने के बाद भी
लोग दियारा छोड़कर कोई दूसरी जगह क्यों नहीं जाते?

 

सबसे छुपा बांधता हूँ रोज़ पट्टियां चुपचाप
देखता हूँ घाव अपने खोलकर हर रात।

 

असंभव
असंभव है सोचना-
जिनकी मिट्टी गंगा-पानी से गुँधी है
उनके लिए असंभव है सोचना की एक दिन

 

गंगा के ऊपर उड़ता हुआ पक्षी
विष की धाह से झुलस जाएगा
कि एक दिन गंगा
नहीं रहेगी और फिर गंगा-
वे रख आए हैं गंगा के द्वार पर विष्पात्र।

***

अपने समय के कवियों को नए लोग पढ़ते हैं तो अपनी तरह से, अपनी स्थितियों के हिसाब से उनका निर्धारण करते हैं. ऐसे समय में जब औसत आलोचना, उत्तर-आधुनिक लचर परिमाण सत्ता में हैं, पढ़ने-लिखने से ज़्यादा सुनाई-दिखाई देना प्रचलन में है और भाषा मृत्यु-उन्मुख है , नई पीढ़ी का यूँ कविता से प्रेम करना आश्वस्त भी करता है और यह उम्मीद भी जगाता है कि विगत दस वर्षों में आ गयी जड़ उदासीनता से हम भाषा को फिर बाहर निकाल लाएँगे. स्मृति भरोसा जगाती है. स्मृति से choudharysmriti9@gmail.com पर बात हो सकती है.

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