कविता ::
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
स्वर : उपांशु

राजे ने अपनी रखवाली की;
किला बनाकर रहा;
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं।
चापलूस कितने सामन्त आए।
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए।
कितने ब्राह्मण आए
पोथियों में जनता को बाँधे हुए।
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
लेखकों ने लेख लिखे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे
रंगमंच पर खेले।
जनता पर जादू चला राजे के समाज का।
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं।
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर।
ख़ून की नदी बही।
आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं।
आँख खुली– राजे ने अपनी रखवाली की।

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सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (21 फ़रवरी 1896 – 15 अक्टूबर 1961) ख्यातिलब्ध कवि-लेखक हैं। उपांशु हिंदी कविता की युवा-पीढ़ी से सम्बद्ध कवि हैं और पटना में रहते हैं। उनसे m.upanshu@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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