मूंद लो आँखें

कविता ::
मूंद लो आँखें : शमशेर बहादुर सिंह

स्वर : बालमुकुन्द

शमशेर बहादुर सिंह (13 जनवरी 1911 — 12 मई 1993) हिंदी के सुपरिचित कवि हैं, जिन्होंने अपनी कलात्मकता को कविता, आलोचना, कहानी, निबंध जैसी साहित्यिक विधाओं में प्रखरता से अपनी अनूठी प्रस्तुतियों में अभिव्यक्त किया। प्रस्तुत कविता में कवि की अनूठी लयबद्ध कविताई का पता चलता है.

मूंद लो आँखें
शाम के मानिंद।
ज़िंदगी की चार तरफ़ें
मिट गई हैं।
बंद कर दो साज़ के पर्दे।
चांद क्यों निकला, उभरकर…?
घरों में चूल्हे
पड़े हैं ठंडे।
क्यों उठा यह शोर?
किसलिए यह शोर?

छोड़ दो संपूर्ण – प्रेम,
त्याग दो सब दया – सब घृणा।
ख़त्म हमदर्दी।
ख़त्म –
साथियों का साथ।

रात आएगी
मूंदने सबको।

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बालमुकुन्द से mukund787@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।

About the author

इन्द्रधनुष

जब समय और समाज इस तरह होते जाएँ, जैसे अभी हैं तो साहित्य ज़रूरी दवा है. इंद्रधनुष इस विस्तृत मरुस्थल में थोड़ी जगह हरी कर पाए, बचा पाए, नई बना पाए, इतनी ही आकांक्षा है.

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