कविताएँ::
ललन चतुर्वेदी

 

मेरी प्रेमिका दुर्ग में रहती है

कोई जरूरी नहीं कि जीवन में किसी एक आदमी से ही प्यार हो
वह कहती रहती है कि जीवन में प्यार का विस्तार हो

इतनी उदारमना मेरी मित्र दुर्ग में एक प्रकार से कैद है
उसका पति लोहा पिघलाने के काम में दक्ष है
पर उसे देखकर वह कभी द्रवित नहीं हुई

एक बार चक्रवाती तूफान में
दूरसंचार के जब खंभे उखड़ ग‌ए
फिर भी फोन की घंटियां बजती रहीं
इसी भ्रम में मैं  बगैर सूचना दिए
भरी दोपहरी में प्रवेश कर गया दुर्ग में

उसका पति मुझे देखकर मोम की तरह पिघल गया
पर बाद में सुना वह उसके प्रति लोहे से भी सख्त हो गया
वह लोहा लेने के लिए तैयार बैठी थी
जब उसने सुनाया पवित्र प्रेम का आख्यान
और बतलायी बसपन के प्यार में कभी बासीपन नहीं होता
तो वह और आग बबूला हो‌ गया

वह कहती है— पुरुषों ने अपने हिसाब से तय कर रखे हैं अनुशासन के मानदंड
हरदम उनका मान रखो, नहीं तो भुगतो दंड

सोशल मीडिया के इस क्रान्तिकारी युग में
वह अब तीज त्योहारों पर भी नहीं भेजती है शुभकामना संदेश
एक दिन मेरे जन्म दिन पर जेठ की भरी दुपहरी में उसका काॅल आया
और उसने रुद्ध गले से सिसकते हुए कहा
यह मेरा आखिरी काॅल है
तुम समझ सकते हो मैं डैंजर जोन में हूं
मेरा पति चापाकल है, जितना ऊपर दिखता है
उससे कई-क‌ई फीट नीचे गड़ा हुआ है

मुझे इस नवीनतम उपमान पर खूब हंसी आई
और मैंने उसे समझाया—
शायद अधिकतर पति चापाकल ही होते हैं
ऐन वक्त पर जिनके गले सूख जाते हैं
और हर लड़की एक दुर्ग से निकलकर दूसरे दुर्ग में कैद हो जाती है
शुतुरमुर्ग की तरह दौड़ तो सकती है
लेकिन उड़ान भर नहीं सकती।

ढाई आखर की कविताएँ

(१)
तुम्हारा हृदय संसार का सबसे सुंदर नोटबुक है
इसे मैं कभी रफ कॉपी नहीं बनाऊंगा
मौका मिले तो अमिट स्याही से लिखना चाहूंगा
सिर्फ एक शब्द— प्रेम!

(२)
मैं शतायु होना नहीं चाहता
बिताना चाहता हूं तुम्हारे साथ एक सुनहरी शाम
उसके बाद प्रस्थान कर जाऊंगा
तुम्हें देखते- देखते।

(३)
एक शाम, सिर्फ एक शाम
काफी हाउस के टेबल पर
तुम्हारे संग बैठना चाहता हूं
तुम बिल्कुल चुप रहोगी
मैं भी रहूंगा मौन
हम एक दूसरे को देखेंगे निर्निमेष

(४)
तुम्हारी भाषा में नदी बहती है
तुम्हारी बोली में हवा की लय है
तुमसे मिलकर लौटते हुए
हवा और नदी की तरह बहने लगता हूं।

(५)
तुम्हारी अनुपस्थिति सतत उपस्थिति है
मैं स्वत: विस्थापित हो जाता हूं
सच कहूं तो अनुपस्थित भी
तुम्हारे उपस्थित हो जाने के बाद

(६)
तुम्हारे आने के इन्तजार में
खोज लिया एक महत्वपूर्ण सिद्धांत
प्रतीक्षा एक स्वचालित सतत प्रक्रिया है
प्रतीक्षा जीवन का ईंधन है
और प्रेम भी क्या है प्रतीक्षा के सिवा?

(७)
दूरी कोई मायने नहीं रखती
सात समंदर को हम सेकेंडों में लांघ जाते हैं
किसी को क्या मालूम
सामने आराम कुर्सी पर बैठा शख्स, बैठा नहीं है
प्रेम की नदी में नौका-विहार कर रहा है।

(८)
जब बातें होती थीं, कोई बात नहीं होती थी
अब बातें नहीं होती, मगर खूब बातें होती हैं
हम एक ही बात को तरह-तरह से दोहराते हैं
दुनिया वाले नहीं समझेंगे
नगमे कभी पुराने नहीं होते।

(९)
याद है न!
हमारे प्रेम का सफर पिछली शताब्दी में शुरू हुआ था
अब हम न‌यी शताब्दी में हैं
प्रेम शताब्दियों का सफर है।

(१०)
कुछ बरसों बाद जब हम मिलेंगे
हमारे मुंह में दांत नहीं होंगे
पर दिल में वही जज़्बात होंगे
हमारी हंसी को लोग नहीं समझ पायेंगे
लेकिन हम हंसेंगे जरूर।

(११)
प्रेम कभी पूरा नहीं होता
लेकिन प्रेम कभी अधूरा नहीं होता
जब मैं नहीं रहूंगा अपने घर पर
तुम मुझसे मिलने जरूर आना
नाराज़ मत होना
जब मैं घर पर नहीं होता हूं
तुम्हारी खोज में निकला होता हूं।

(१२)
हम कभी साथ नहीं रहे
कभी साथ चल भी नहीं पाए
तो साथ जायेंगे कैसे
मगर,मुझसे बिना पूछे मत जाना
बतलाकर जाना दूर देश का अपना ठिकाना
ताकि मैं भी समय से शुरू कर सकूं सफर
समय से तुम्हारे पास पहुंच सकूं
ओ मेरे हमसफ़र!

(१३)
एक साथ सूक्ष्म और विराट हुआ जा सकता है
हो सकता है एक ही समय में मौन और संवाद भी
अलग-अलग होते हुए एक-दूसरे में लय भी
प्रेम में असंभव संभावनाएं होती हैं
प्रेम में संकोच है तो अनंत पर्यन्त विस्तार भी!

सुगंध फूल की भाषा है

भाषा क‌ई बार बिल्कुल असहाय हो जाती है
कभी-कभी गैरजरूरी और हास्यास्पद भी
बिना बोले भी आख्यान रचा जा सकता है
मौन संवाद का सर्वोत्तम तरीका है
भाषा केवल शब्दों का समुच्चय नहीं है
और किसी लिपि की मोहताज भी नहीं
जैसे फूल क्यारियों में खिलते हैं और हृदय में खिलखिलाते हैं
वैसी भी तो हो सकती है भाषा
मौन कितना मुखर हो सकता है
फूल से बेहतर कोई और नहीं समझा सकता
सुगंध हवा की लिपि में लिखित फूल की भाषा है।

तलाश

मैं किसी अनजान द्वीप की तलाश में नहीं हूं
मुझे कोई यात्रा भी नहीं करनी है फिलहाल
मैं एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में हूं
जो मुझे शिद्दत से सुनने के लिए तैयार बैठा हो
यहां लोग भाग रहे हैं बेतहाशा
कोई किसी को सुनने को तैयार नहीं
लोग इतना बोल रहे हैं कि सारी आवाजें गड्डमड  हो ग‌ई हैं
सिसकियां शोर में कैसे सुनाई देंगी
कब तक बढ़ती रहेंगी सुनवाई की तारीखें
संतोष से मरने के लिए जरूरी है कि
फरियादी को फैसला सुना दिया जाए।

•••
ललन चतुर्वेदी कवि हैं। उनसे lalancsb@gmail.com पर बात हो सकती है।

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