कविताएँ ::
पार्वती तिर्की
करम चंदो
(करम के मौसम में खिलने वाले चाँद को ‘करम चंदो’ कहा जाता है। यह सितम्बर का महीना होता है जब छोटानागपुर का आदिवासी समुदाय ‘करम’ का त्यौहार मानता है। इस त्यौहार में ‘करम चंदो’ की विशेष उपस्थिति दर्ज है।)
1.
संगी !
भादो के आसमान में
चाँद फूल खिल रहे हैं,
देखो,
भादो के ड़ाँड़ खेत में
सरगुजा फूल रहे हैं!
2.
सहिया !
करम का त्यौहार आ रहा है
करम चाँद अखड़ा पर आएगा!
अपने संग- साथियों से मिलने
करम चाँद अखड़ा आएगा!
देखना!
माँदर की ताल सुनकर
करम चाँद अखड़ा पर
नृत्य करने को उतरेगा।
3.
सहिया !
आज रात्रि करम चाँद अख़ड़ा पर आने वाला है,
अपने संग सरगुजा से मिलने, बतियाने
और कहानी सुनने
अखड़ा पर आने वाला है।
आज रात्रि करम चाँद और सरगुजा
साथ अखड़ा पर होंगे
नृत्य करेंगे, थिरकेंगे।
सहिया!
देखो माँदर बज रहा है-
धातिंग ताँग ताक ताक
देखो अखड़ा का थिरकना
करम चाँद और सरगुजा के
आगमन की खुशी में!
देखो मेरख़ा राजी का थिरकना,
देखो बिनको का थिरकना,
परता भी थिरक पड़े!
भला कैसे न थिरके सभी!
भादो का ही मौसम होता
जब करम चाँद और सरगुजा साथ होते!
- करम , छोटानागपुर में मनाया जाने वाला लोकपर्व है, इस पर्व में खिलने वाले चाँद को करम चाँद कहते हैं। और, इसी करम के मौसम में सरगुजा के सुनहरे फूल खिलते हैं, जिनसे अखड़ा सजता है।
- ड़ाँड़ खेत – मैदानी खेत
- सहिया – मित्र
- अखड़ा – सामूहिक मिलन का केंद्र
- माँदर – वाद्ययंत्र
- मेरख़ा राजी – पूरा आसमान
- बिनको – तारे
- परता – पहाड़
धानो नानी के गीत
(आदिवासी मौसम-ऋतुओं, बादल-मेघों, जंगल-जुगनुओं आदि को रिझाने की कला जानते हैं।)
बारिश मेरी धानो नानी के गीत
सुनने आती है,
नानी के गीत
उसे बहुत रीझाते!
साँझ बेरा नानी
गीत गा रही थी –
मोख़ारो बदाली, पण्डरू बदाली
ऐन्देर गे चेंप मला पुईंयी भला
ऐन्देर चेंप मला पुईंयी…*
यह गीत संदेश सुनते ही
बारिश आयी
और
पहाड़ों-नदियों के आँगन
खूब रीझ-रीझ कर नाची।
हर मासा नानी गीत गाती है!
ग्रीष्म बिहान
नानी के गीत सुनकर ही
आया था बीड़ी बेलस –
रिमरिमना बिड़ि:आ लागी
मदगी खतेरा लागी..*
बीड़ी बेलस* को यह गीत खूब भाते
यह गीत सुनते ही
बीड़ी बेलस आया था
और खूब सारे
महुआ तोड़े थे!
नानी महुआ बिछते हुए
गीत गा रही थी
और बीड़ी बेलस रीझ-रीझकर
महुआ तोड़ रहा था!
नानी इस कला में खूब पारंगत है,
उनके गीत सबको ही ख़ूब रीझाते!
- ओ काले बादल ! सफेद बादल
बारिश क्यों नहीं ला रहे हो
बताओ भला ! बारिश क्यों नहीं ला रहे हो? कुड़ुख आदिवासी आषाढ़ के मौसम में इस गीत को गाते हैं। ये बारिश कामना के आदिवासी गीत हैं। - खूब धूप है और महुआ खूब टपक रहा है।
दक्षिणी छोटानागपुर में महुआ के मौसम में गाये जाने वाले कुड़ुख आदिवासी गीत हैं। - बीड़ी बेलस सूर्य को कहा जाता है।
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पार्वती तिर्की वाराणसी में रहती हैं और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शोधरत हैं। उनसे ptirkey333@gmail.com पर बात हो सकती है।
हिंदी कविता की नई स्वर Parwati Tirkey की बिल्कुल नई कविताओं को यहाँ पढ़वाने के लिए आभार। ये कविताएँ आदिवासी संस्कृति के कला रूपों से परिपूर्ण हैं और कविता के घर में एक अलहदा स्वर की उपस्थिति का वितान रचती हैं। इन कविताओं से गुजरते हुए समकालीन-काव्य-परिसर के विस्तार को देखा जा सकता है। नब्बे के बाद के दशक में आदिवासी कविता ने जो बढ़त दर्ज कराई है, उसमें संघर्ष का स्वर अधिक रहा है। ये कविताएँ इस लिए भी विशिष्ट हैं कि ये आदिवासी संस्कृति के सौंदर्य और संस्कृति की कविताएँ हैं। नवागत कवि को शुभकामनाएं
बेहद शुक्रिया मंगलम।🌼