समीक्षा ::
दिव्या श्री

देवेश पथ सारिया युवा कवि, कथेतर गद्य लेखक होने के साथ विश्व कविताओं के अनुवाद में भी सक्रिय हैं। फिलवक्त वे ताइवान में कार्यरत हैं। देवेश पथ सारिया द्वारा अनुवादित ताइवान के वरिष्ठ कवि ली मिन-युंग का काव्य संग्रह ‘हक़ीक़त के बीच दरार’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। ली मिन-युंग की कविताओं में जो ख़ास बात है वह है उनकी पाठक को बांध लेने की क्षमता। विषयवस्तु तो अपनी‌‌-सी है ही, अनुवाद भी चुस्त है। कविताओं का रूपांतरण ज़रूर हुआ है, लेकिन आत्मा वही रही है।

ली की कविताओं में उनका देश, स्त्री, संगीत, निर्वासन, युद्ध, पत्ती, अंकुर, स्वप्न, मायूसी, वेदना और प्रेम सब समाया है। इस संग्रह की पहली कविता ‘शताब्दियों के मिलन बिंदु पर प्रार्थना’ है, जिसमें कवि ने युद्ध को इतिहास के पन्नों पर दर्ज़ बताया है। प्राकृतिक आपदा जनित दर्द को एक समय के बाद हम सब बिसर जाते हैं। कवि भविष्योन्मुखी है और उसका अपनी मातृभूमि के भविष्य का सपना क्षितिज पर उगते सूरज जैसा है :

“उगते हुए सूरज की रोशनी
क्षितिज पर चमकती है
सपने बुनता फाॅरमोसा
समुद्र के आलिंगन में रहता है
क्षितिज के ऊपर
उसके वासी, एक सुर में पुकारते हैं ताइवान”

‘औरतें’ शीर्षक कविता पर नज़र पड़ते ही लगा, क्या वहाँ भी स्त्रियों की स्थिति भारत जैसी ही होगी? साक्षरता की दर यही होगी या कि वहाँ की महिलाएं आज़ाद, बिंदास होकर एक मुट्ठी आसमान अपने नाम कर रही होंगी। धार्मिक प्रथाओं पर चोट करते हुए ‘औरतें’ कविता के अंत में कवि ने बहुत ही मार्मिक ढंग से अपनी बात रखी है :

“कुछ दूसरी औरतें हैं
जिनकी छाती पर
सलीब लटकी है
जो बताती है
कि वे रहना चाहेंगी
पवित्र अक्षतयोनि
यही बात है
जो डाले हुए है मुझे
गहरे विषाद में”

एक ही कविता को पाठक अपने-अपने हिसाब से कई-कई बार पढ़ता हैं। कविता की कोई तयशुदा परिभाषा नहीं होती है। ‘रविवार का संगीत’ शीर्षक कविता मुझे बिल्कुल अपनी-सी लगी। छुट्टी के दिन हम सब अपने पसंद के काम करना चाहते हैं। चाहे कहीं घूमने जाना हो, किसी दोस्त से मिलना हो, उसके साथ समय बिताना हो। यह सब इस कविता में मौजूद है। कुल मिलाकर इस कविता का रविवार यादृच्छिक सी घटनाओं का सह-संबंध है।

“एक लड़की और एक अजनबी
समय व्यतीत करने को
प्रविष्ट होते हैं घड़ी की दुकान में

एक बच्चे की आँखें टिकी हैं
कैंडी स्टोर की खिड़की पर”

कितनी सहजता से कवि ली ने बच्चे की आँखों को पढ़ लिया है। अगली पंक्ति में कवि गुज़रे जमाने को याद करते हुए चौराहे पर किसी के लिए रुकी कार की तरफ इशारा करते हैं। एक छुट्टी के दिन एक कार का यूं रुकना भी अवकाश का एक बिंब है। इसी कविता की कुछ और पंक्तियां :

“अगली टेबल पर रखी आइसक्रीम
लाल वाइन फ्लेवर की है
उसे बनाने में प्रयुक्त
अंगूर के खेत एक विदेशी जमीन पर हैं
जहाँ से आती है
विंड चाइम की दर्द भरी ध्वनि”

फेंगशुई चीनी वास्तु शास्त्र हैं जिसमें ‘ची’ अर्थात अच्छी एनर्जी का बहुत महत्व है। माना जाता है कि विंड चाइम घर से नेगेटिव एनर्जी को दूर करता है। पांच या सात रॉड वाली विंड चाइम को ‘गुडलक विंड चाइम’ कहा जाता है। माना जाता है कि उससे निकलने वाली आवाज ऊर्जा को साफ़ करती है और आपके सौभाग्य को बढ़ाती है।
शीर्षक ‘शीतयुद्ध के बाद गर्मी की एक दोपहर’ कविता में ली ने युद्ध के प्रति अफसोस को शब्दों में ढाला है। और युद्ध के बाद भी क्या? हताशा ही। विकास के नाम पर प्रकृति का विध्वंस :

“रेलमार्ग बनाने के ख़ातिर
हमने पेड़ काट दिए एक महफूज द्वीप के
गगनचुम्बी इमारतों को
परदे की भांति ढंकती दीवार पर
एक नंगी सड़क लेटी है
आसमान का सीना भेद रही है
एक भारी-भरकम क्रेन”

‘प्रदूषण’ कविता भी इसी स्वभाव की कविता है जो बाज़ार के विरुद्ध नारा बुलंद करती है। ‘यदि तुम पूछो’ शीर्षक कविता में कवि ली ताइवान की पूरी समय यात्रा कराते हैं और अपने देश का भविष्य सुपुर्द कर देते हैं ताइवान के वासियों को। ‘पुकार की सीमा में’ शीर्षक कविता में कुछ बर्बर और संघर्षपूर्ण दृश्यों के बाद अपने वांछित दृश्य को ली यूं परिभाषित करते हैं :

“मुझे पूछो तो
बेहतर दृश्य यह होगा
कि सूरज चढ़ने से पहले
एक नवजात को हौले से
झूला झुलाती हो कोई नर्स”

आखिर बच्चे की खिलखिलाहट से बेहतर और क्या दृश्य होगा! वह भी भोर में, सूरज की लालिमा से पहले।

ताइवानी कवि ली मिन-युंग की कविता में अपने देश के प्रति वही प्यार झलकता है जैसा हरेक देशवासी को अपने देश, अपने वतन के प्रति होता है। उन्होंने समुद्र को माँ और आसमान को ताइवान का पिता संबोधित किया है। उनकी कविता में अपने देश के प्रति प्रेम बार-बार झलकता है और मैं उस देश में जाकर कई मर्तबा खो जाती हूँ। देखती हूँ आसमान, नमन करती हूँ समुद्र को, जिसने इस देश को महफूज़ रखा। किंतु आगे क्या? कवि की यह चिंता कई कविताओं में व्यक्त होती है। ‘उत्खनन’ कविता में ली अपने देशवासियों को ताइवान की मूल विचारधारा से जोड़ने का प्रयास करते हैं :

“कलम को बेलचे की तरह प्रयुक्त करता
मैं कागज़ पर मिट्टी खोद रहा हूँ
तलाश रहा हूँ
अपने देश की विचारधारा की जड़ें”

कविता ‘एक दृश्य’ की यह पंक्ति है : “कुत्ता अपनी निगाह नीची करता है/ और बगल में खड़े बच्चे को देखता है/ उसे वह बच्चा/ कुत्ते जैसा दिखता है।” जैसे मनुष्य अपने पालतू पशुओं के प्रति ममता रखता है, वैसी ही ममता पशु मनुष्यों के प्रति रखते हैं। शीर्षक ‘कविता है’ में कवि ली ने कहा है कि कविता में सिर्फ प्रेम या चकमक वाक्य नहीं होते जो पाठक को अपनी ओर आकर्षित करें। कविता वह शय है जो एक हृदय को दूसरे से जोड़ दे। कविता वह संवेदना है जिसके माध्यम से यहूदी यातना शिविर के बच्चों का दर्द हम उसी गहराई से महसूस कर पाएं :

“जब मैं पढ़ता हूँ
यहूदी यातना शिविरों में बच्चों की लिखी कविताएँ
मैं सुन सकता हूँ
बच्चों के तेज धड़कते दिलों की आवाज”

इसी संदर्भ में कवि ली कहते हैं एक समझदार पाठक ढूंढ ही लेता है कि उसे क्या पढ़ना है। कविता मनुष्य का अस्तित्व मिट जाने पर भी उन्हें बचाए रखती है :

“कविताओं को लिख दिए जाने पर
मृत मनुष्य
कागज़ पर
जीवित हो उठते हैं”

क्या मनुष्य का जीवन एक परिपाटी से बंधा हुआ होना चाहिए? इसी प्रश्न का आंशिक उत्तर ली अपनी कविता ‘आवेगहीन सौंदर्यशास्त्र’ की इन पंक्तियों में करते हैं :

“नौकरी एक बंजर भूमि है
जहाँ जवानियाँ दफनाई जाती हैं।”

इस संग्रह की आखिरी कविता ‘स्वप्न’ है। जिसके मूल में प्रेम है और इसी कविता की दूसरी पंक्ति इस संग्रह का शीर्षक है।
इस आखिरी कविता में कवि ली कहते हैं….

“तुम नहीं जकड़ सके
मेरे हाथ में खिंची
प्यार की लकीर को”

ली की कविताएँ पढ़ते हुए लगा जैसे हमारे सामने ताइवान की सांस्कृतिक और साहित्यिक छवि गुजर रही है। कवि ली को पढ़ते हुए कितने ही कवि याद आये। कवि ली ने समुद्र को माँ भी कहा है। यह कवि प्रकृति से संलग्न हो जीवन जीने का पक्षधर है। ली की कविताएं पढ़ते हुए मुझे सत्रहवीं शताब्दी के महान कवि एंड्रयू मार्वल की याद आती है। अंग्रेजी कवि एंड्रयू मार्वल प्रकृति और प्रेम के जाने-माने कवि हैं। ‘टू हिज काॅय मिस्ट्रेस’ कविता में कवि एंड्रयू मार्वल कहते हैं जीवन बहुत छोटा है क्यों न इसे प्रेम करते हुए गुजारा जाए। वह अपनी दोस्त से कहते हैं अगर मेरे पास बहुत समय होता तो मैं तुम्हें समय दे सकता था चाहे तुम जितना लेतीं। लेकिन दुर्भाग्य है कि हम अपने अनुसार समय तय नहीं कर सकते। एक दिन ऐसा आयेगा जब तुम्हें, तुम्हारी अक्षतयोनि के साथ मिट्टी में दफ़न कर दिया जायेगा और तब कीड़े- मकोड़े तुम्हारा कौमार्य भंग करेंगे। इसलिए हमें समय के साथ चलना होगा।अनुवाद में दो भाषाओं का ज्ञान तो होना ही चाहिए लेकिन उससे भी अधिक कविताओं के मर्म को समझना पड़ता है। अनुवाद करते हुए यह हमेशा ध्यान रखना पड़ता है कि तन बदले लेकिन मन वही रहे, तब जा कर अनुवाद सफल होता है। अनुवाद दो भाषाओं को ही नहीं दो मुल्क़ों को भी जोड़ता है। एक-दूसरे से साहित्यिक और सांस्कृतिक परिचय भी कराता है। उम्मीद करते हैं कवि देवेश पथ सारिया आगे भी इस तरह का कार्य जारी रखेंगे।

कविता संग्रह : हक़ीक़त के बीच दरार
मूल कवि : ली मिन-युंग
अनुवाद : देवेश पथ सारिया
प्रकाशक : कलमकार मंच
वर्ष : 2021
पृष्ठ : 96

दिव्या श्री कला संकाय से स्नातक कर रही हैं, कविताएँ लिखती हैं और अनुवाद में रूचि रखती हैं। उनसे divyasri.sri12@gmail.com पर बात हो सकती है।

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