निज़ार क़ब्बानी की कविताएँ ::
अनुवाद और प्रस्तुति : अंचित
1.
अपनी पोशाक उतारो।
सदियों से कोई करिश्मा हुआ ही नहीं।
मैं ख़ामोश हूँ और
तुम्हारा जिस्म सारी ज़बानें जानता है।
2.
मैं कितना बदल गया हूँ।
एक वक्त मैं चाहता था
कि तुम अनावृत हो जाओ,
और संगमरमर के नग्न जंगल की तरह रहो।
अब मैं चाहता हूँ तुम रहस्य की तरह ढँकी रहो।
3.
मैं चाहता हूँ कि
तुम एक अनोखा हर्फ़ बनाओ।
उसमें, मैं चाहता हूँ
बारिश की लय
चाँद की धूल
स्याह बादलों की उदासी
पतझड़ के चक्कों के नीचे गिरे
विलो पत्तों का दर्द।
4.
जब मैंने तुमसे कहा:
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ”
मैं जानता था
कि मैं क़बिलाई क़ानून के ख़िलाफ़ बग़ावत कर रहा हूँ
कि मैं स्कैंडलों के खोते में हाथ डाल रहा हूँ।
मुझे ताक़त का नियंत्रण चाहिए था
ताकि जंगलों में पत्तों की गिनती बढ़ा सकूँ
मैं समंदर को और नीला बनाना चाहता था
और बच्चों को और मासूम।
मैं चाहता था कि बर्बरों का युग ख़त्म कर दूँ
और आख़िरी ख़लीफ़ा का क़त्ल कर दूँ।
जब तुमसे प्यार करता था
मैं ऐसा चाहता था
कि हरम के दरवाजे तोड़ दूँ और
मर्दों के दाँतो से औरतों के वक्षों की रक्षा करूँ
ताकि उनके बुदबुदे हवा में नृत्य कर सकें।
5.
जब मैं तुम्हारे साथ होता हूँ
मुझे कविता लिखने के बारे में दुःख होता है।
जब मैं तुम्हारी ख़ूबसूरती के बारे में सोचता हूँ
मुझे साँस खोजनी पड़ती है
मेरी भाषा खोने लगती है
और मेरे शब्द टूट जाते हैं।
मुझे इस परेशानी से बचाओ
थोड़ा कम खूबसूरत दिखो
ताकि मैं अपनी प्रेरणा फिर से पा सकूँ।
वह औरत बनो जो सजती है
और इत्र लगाती है और बच्चा पैदा करती है।
दूसरी औरतों की तरह बनो
ताकि मैं फिर से लिख सकूँ।
6.
फ़िक्र न करो
मेरी प्यार,
तुम मेरी कविता और मेरे शब्दों में हो
तुम शायद आने वाले सालों में बूढ़ी हो जाओ
लेकिन तुम मेरे पन्नों में हमेशा जवान रहोगी।
7.
एक मछली की तरह
जो मोहब्बत में स्फूर्त और कायर होती है
तुमने मेरे भीतर मौजूद हज़ार औरतों को मार दिया
और मल्लिका बन गयी।
8.
मैं इश्क़ का मसीहा हूँ
जो औरतों के पास जादू लिए जाता है।
अगर मैंने तुम्हारे वक्षों को शराब से धोया न होता
वे कभी नहीं पकते
मेरे इस छोटे करिश्मे से
तुम्हारे वक्षों के बुदबुदे खिल गए।
9.
मैं तुम्हारा उस्ताद नहीं
कि तुम्हें प्यार करना सिखाऊँ।
मछलियों को तैरना सीखने के लिए
उस्ताद नहीं चाहिए
न चिड़ियों को कोई चाहिए
उड़ना सिखाने के लिए।
खुद तैरो और उड़ो।
इश्क़ के पास कोई किताबें नहीं हैं।
इतिहास के सबसे महान प्रेमियों को पढ़ना नहीं आता था।
10.
जो ख़त मैंने तुम्हें लिखे हैं
वे मुझसे और तुमसे ज़्यादा ज़रूरी हैं।
रौशनी, चिराग़ से ज़्यादा ज़रूरी है कविता,
कॉपी से और होंठों से ज़्यादा ज़रूरी हैं बोसे।
जो ख़त मैंने तुम्हें लिखे हैं
वे मुझसे और तुमसे ज़्यादा महान और ज़रूरी हैं।
सिर्फ़ वही वे दस्तावेज हैं
जिनमें लोगों को मिलेंगे
तुम्हारी ख़ूबसूरती और मेरा पागलपन।
11.
हर वह आदमी
जो तुम्हें मेरे बाद चूमेगा
तुम्हारे होंठों के ऊपर पाएगा
मेरा बोया हुआ वह छोटा अंगूर का लत्तर।
12.
मुझे उम्मीद है कि
एक दिन तुम एक खरगोश की तरह डरती नहीं रहोगी
कि तुम समझोगी
मैं तुम्हारा शिकारी नहीं
तुम्हारा प्रेमी हूँ।
13.
सब पूरा हो गया।
तुम मेरी प्रेमिका बन गयी।
तुम मेरे मांस में घुसी एक लम्बी कील की तरह
जैसे बटन अपने छेद में समाता है
जैसे एक स्पानी औरत के झुमके
॰॰॰
मेरी प्रेमिका रहो
और ख़ामोश हो जाओ
तुम्हारे लिए
मेरे प्यार के जायज़ होने के बारे में बहस मत करो।
तुम्हारे लिए
मेरा प्यार एक क़ानून है जो मैंने लिखा है।
तुम्हारा काम है
मेरी बाँहों में डेज़ी के फूल की तरह सोना
और मुझे राज करने देना।
तुम्हारा काम है मेरी प्रेमिका बने रहना।
14.
मैं जानता था
कि जब हम स्टेशन पर थे
तुम किसी और आदमी का इंतज़ार कर रही थी।
मैं जानता था
कि जब मैं तुम्हारा सामान उठा रहा था
तुम किसी और आदमी के साथ सफ़र करोगी।
मैं जानता था
कि
मैं उस कामचलाऊ चीनी पंखे से ज़्यादा नहीं था
जो तुम्हें गर्मी से बचाने के काम आता है।
मैं यह भी जानता था
कि जो प्यार के ख़त मैंने तुम्हें लिखे
वे तुम्हारे घमंड को दिखाने वाले आईनों से ज़्यादा कुछ नहीं।
॰॰॰
इन सब के बावजूद
मैं तुम्हारा सामान उठाऊँगा
और तुम्हारे प्रेमी का सामान भी
क्योंकि
मैं उस औरत को थप्पड़ नहीं मार सकता
जो अपने सफ़ेद हैंडबैग में
मेरी ज़िंदगी के सबसे हसीन दिन लिए फिरती है।
15.
यह किस तरह का मुल्क है
जो इश्क़ को अपने पाठ्यक्रम से मिटा रहा है
और कविता की कला को
और एक औरत की आँखों के रहस्य को ?
यह किस तरह का मुल्क है
जो बरसात के मेघ से लड़ रहा है
जो हर वक्ष के लिए एक गुप्त फ़ाइल खोल रहा है
और रिपोर्ट दर्ज कर रहा है हर गुलाब के लिए?
16. घर में नज़रबंदी के दौरान मोहब्बत
मैं तुमसे अलविदा कहने की इजाज़त लेना चाहता हूँ
क्योंकि खून
जो पानी में नहीं बदल सकता है
पानी में बदल गया है।
आसमान,
जिसके नीले शीशे जो मुझे लगता था
कभी नहीं टूटेंगे
टूट गए हैं।
सूरज
जो तुम्हारे कानों पर
मैंने स्पानी झूमकों की तरह टांगा था
ज़मीन पर गिर गया है
और टूट गया है।
वे शब्द
जो मैं तुम्हें ओढ़ाता था
जब तुम सोती थी,
डरे हुए परिंदों की तरह उड़ गए हैं
तुम्हें अनावृत छोड़ कर।
॰॰॰
मैं तुमसे अलविदा कहने की इजाज़त लेना चाहता हूँ
तुम्हारे वक्षों के बीच की आँधियाँ
अब मेरे पास नहीं तुमसे बात करने की इच्छा
तुमसे प्यार करने की इच्छा
अब मुझमें जोश नहीं रहा
किसी चीज़ का बचाव करने का
किसी चीज़ पर हमला करने का।
हम गोल-गोल घूमते समय में फँस गए हैं
जहाँ तुम्हारी कमर और मेरे हाथ के बीच की दूरी नहीं बदलती
मेरे सूंघने की क़ाबिलियत और तुम्हारी देह गंध नहीं बदलती
तुम्हारी जाँघों के बीच की दूरी और मेरी मौत का घेरा नहीं बदलता।
॰॰॰
मैं तुमसे अलविदा कहने की इजाज़त लेना चाहता हूँ।
संकुचित समय जिसमें हैं
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तुरत-फ़ुरत की चाहतें
और बोसे जो मैं बग़ैर चाहत के दे रहा हूँ
जैसे तारीख़ पार कर चुका बिल
॰॰॰
मैं तुमसे अलविदा कहने की इजाज़त लेना चाहता हूँ
एक लम्बी छुट्टी लेने के लिए
मैं बिना प्यार और बिना चाहत जीते रहने के एहसास से थक गया हूँ
मैं इस फ़र्नीचरों से भरे घर से तंग आ गया हूँ,
जहाँ मेरी भावनाएँ चौकोर हैं इसकी दीवारों की तरह
और मेरी हवस इसके गलियारे की तरह लम्बी।
मेरी महत्वाकांक्षाएँ इसके छत की तरह नीची हैं।
***
निज़ार क़ब्बानी (21 मार्च 1923–30 अप्रैल 1998) किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे अरबी भाषा के कवि हैं। समय समय पर उनकी कविताएँ हिंदी में अनुवाद होतीं और पाठकों के बीच लोकप्रिय होती रही हैं। ये अनुवाद बस्सम फ़्रंगे और क्लेमेंटिना आर. ब्राउन के अंग्रेज़ी अनुवादों पर आधारित हैं। अंचित से anchitthepoet@gmail.com पर बात हो सकती है।
It is very fortunate that you are serving the writings of foreign poets in a very beautiful way. Thank you from the bottom of my heart.