कविताएँ ::
सागर
मेरे पास जवाब है
कुछ भी नया नहीं रहता
हरेक नया, किसी भी वक्त पुराना हो सकता है
न्यूनतम समय की देरी, किसी बहुत नए को
किसी से पुराना बताने में सक्षम है,
सवाल यह है कि
कितने वर्ष लगे ईश्वर के कुम्हार को
तुम्हारा रूप गढ़ते,
तुम्हारी आँखों को तैयार करने में
कितनी बारीकियों से होकर गुजरना पड़ा होगा,
कितनी सावधानियां बरती गयीं होंगी
तुम्हारी सादगी को अक्षुण रखने में
‘पहला प्रेम कभी आखिरी नहीं बन सका
हरेक प्रेमी-प्रेमिका किसी न किसी का ‘पूर्व’ है’
कितना आसान हो गया है
किसी के पीछे ‘पूर्व’ लगाना,
बल्कि ‘पूर्व’ शब्द को तो इतना भारी होना था
कि किसी के पीछे लगाने से पहले
कुछेक दिन उसे गले लगाकर, रोते-बिलखते
इस बारे में विचार करना ज़रूरी था
जहाँ अब सबकुछ नया हो रहा है
और इस काल का सबसे मुश्किल काम
पुराने को बचाये रखना,
जबकि पुराना ही सबसे नया है
सबकुछ पुराना होते रहने के इस दौर में
तुमने कैसे बचाकर रखा है, अपने पुराने का नयापन
कोई श्रृंगार इतना धनी तो नहीं
कि तुम्हारे सामने दिखा सके अपना वर्चस्व,
कौन सी शक्ति तुम्हारी बढ़ती उम्र को
तुम्हारे सौंदर्य के इर्दगिर्द भटकने नहीं देती,
क्या है जिसने अबतक बनाये रखा है
तुम्हारा आकर्षण,
कोई कली हर सुबह आकर दे जाती है
अपनी रंगत या
ईश्वर नींद से जागने के बाद
जो पहला चेहरा देखते हैं, वो तुम्हारा होता है
तुम्हारे पास जवाब नहीं है
तुम्हारे किसी दूसरे प्रेमी के पास
ईश्वर या वैज्ञानिक के पास भी नहीं,
लेकिन मेरे पास है ‘मेरी आँखें’।
प्रतीक्षा गीत
कितना कमजोर हूँ
कोई एक प्रेमपत्र भी नहीं भेज पाया
उस एक पते पर
जो तुम बार-बार बताती रही
ओस सा ठहराव लिए उन आँखों से
तुम्हारे नाम के लिखे कितने ही पत्र
रोजाना लिखकर फाड़ता रहा
अनगिनत टुकड़ों में,
टुकड़े ऐसे कि कोई देखकर
जोड़ भी लेता पूरा पत्र
लेकिन जान नहीं पाता तुम्हारा नाम
कमजोर व्यक्तियों के लिए नहीं है प्रेम
अगर होता तो शायद तुम होती
मेरे हाथों को दबाये
और दबाना ऐसा कि जैसे कोई डर हो
कि अब छूट जाएगा हाथ
कि तब छूट जाएगा
प्रतीक्षा करना
हमेशा नहीं होता प्रतीक्षा करना,
ऐसा होता है कि देरी होती जाती है
धीरे-धीरे-धीरे,
देह कर लेती है धरातल से स्नेह
आँखें हो जातीं हैं मोम
वक्ष हो जाता है पत्थर
कितनी सुंदर लगती है प्रतीक्षा
जब बहुत देर से ही सही
लेकिन कोई होता है
किसी भी रास्ते, किसी भी दिशा से आनेवाला
प्रतीक्षा बीतती है
बीत जाता है व्यक्ति,
आत्मा हो जाती है मौन
आँखें उठती हैं लेकिन पता होती है सच्चाई,
होंठ अविश्वास से भरकर
ये कभी कह भी नहीं पाते कि
‘हाँ! सच में कोई है
जो आएगा, यकीनन आएगा’
क्षेत्रफल
हमदोनों की दुनिया
इतनी छोटी तो होनी ही चाहिए
कि हमारा कंधा टकराता रहे
मिनटों, घण्टों या बहुत से बहुत पहरों के अंतराल पर,
किसी के लाख न चाहने के बावजूद
जब भी तुम आओ छत पर
तो तुम्हारा चेहरा देखा जा सके
किसी अन्य के छत पर चढ़े बग़ैर
बिना किसी ज्यादा मशक़्क़त के,
जब भी खोलो तुम खिड़की
तुम्हें हमेशा दिखे
किसी खिड़की के पीछे बैठी मेरी जैसी ही आँख,
दुनिया के किसी बाज़ार में
यदि तुम निकलो माँ, बहन, भाई, दोस्त, पिता, पति
या किसी नए प्रेमी के साथ,
तो तुम्हें मालूम हो कि
कोई और भी है यहीं, इसी बाज़ार के किसी कोने में
जो जानता है तुम्हारी पसंद
बार-बार ख़राब होकर
यदि रुकती रही मेरी गाड़ी
तो कभी-कभी तुम्हारे घर के सामने
ख़राब होने का भाग्य भी हो, मेरे नसीब में
प्रेम करने की जगह
इतनी छोटी होनी चाहिए कि
कोई एक छोड़कर भागे, किसी एक को
तो टकरा जाए वापस उसकी ही छाती से,
उन जगहों की यात्रा इतनी बड़ी कि ‘जाना’
बहुत लंबे समय से खोना लगे
और पुनः आने पर, इस तरह लिपटे
जैसे लिपटती है माँ
मेले में खोए हुए बच्चे को देखकर
हमारी दुनिया इतनी बड़ी है
कि मुझे डर है
कि हमदोनों किसी अन्य के प्रेम में लिप्त
भूल जाएं एक दूसरे का चेहरा
या हम दोनों एक-एक कर मर जाएं
और ज्ञात भी न हो
कि कौन पहले, कौन बाद में!
झूठों और अफ़वाहों के प्रति
कुछ अफ़वाहें
विजय प्राप्त करवाती हैं
लगातार जीतते रहने वाले दुखों पर,
आशाएँ जो नहीं मिलती, वहाँ
एक झूठ देता है, एक घनी उम्मीद
जब कोई कहता था तुम खड़ी हो छत पर
मेरी उत्सुकताओं पर
ईश्वर भी हो उठते थे विभोर,
लाफिंग बुद्धा कितनी ही बार
मेरी हृदय की हँसी पर होते आश्चर्यचकित,
तुम्हारे न आने के दुख पर
हमेशा हावी रही
तुम्हारे आने की झूठी खबर
तुम्हारी आँखें रहती थीं
मेरे रास्ते पर
तुम्हारे हृदय का एक छोटा कोना
शायद है मेरे लिये भी सुरक्षित,
ऐसी कई झूठी ख़बरों ने
मेरे हरेक दिन को तब्दील किया उत्सव में,
किसी के बोले झूठों के आकाश तले
जवान होती रहती हैं
जीवन की सबसे महत्वपूर्ण स्मृतियाँ,
उससे उतना हँसा भी जा सकता है
जितना कि रोया
लोकप्रिय कविताएँ लेती हैं जन्म
साधारण झूठों से,
कुछ झूठों और अफ़वाहों के प्रति
हमें हमेशा आभारी रहना चाहिए
कुछ झूठ बोलना और
कुछ अफवाहें बहुत ज़रूरी है उड़नी
जीवन के हरेक पहर में।
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बहुत ज़्यादा दिखाई देने की आकांक्षा रखने वाली कवियों की पीढ़ी में ख़ुद को छुपा कर रखना— अपने भीतर संवेदना बचा कर रखना है। सागर की ये कविताएँ ईमानदार तो हैं ही, भावुकता और संवेदना की उस आकाशगंगा से आती हैं, जिसका नकार मनुष्यता से असहमत होना है। सागर हिंदी और मैथिली कविता-संसार में आते हुए लोगों में से हैं। उनसे thejhasagar@gmail.com पर बात हो सकती है।
बहुत अच्छी कविताएं
‘डियर बालकनी वाली’ श्रृंखला के बाद सागर को फिर से पढ़ना अच्छा लगा।