जॉर्ज लुई बोर्हेस के कुछ उद्धरण ::
अनुवाद और प्रस्तुति : उत्कर्ष
जॉर्ज लुई बोर्हेस (२४ अगस्त १८९९ – १४ जून १९८६) अर्जेंटीना के जानेमाने लघुकथा-लेखक, कवि और अनुवादक थे। उनकी रचनाओं में फंतासी और दर्शन का बेजोड़ प्रयोग नजर आता है। उनकी कल्पना-दृष्टि अत्यंत विस्तृत है और उनकी रचनाएँ मानव-इतिहास का व्यापक अनुभव प्रस्तुत करती हैं। ‘द बुक ऑफ सैंड’ (१९७५), फ़िक्शन्स (१९४४), एल एलेफ (१९४९) और ‘लेबिरिंथ्स’ (१९६२) उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल है। प्रस्तुत उद्धरण इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों से साभार चुने गए हैं।
मत बोलो, अगर तुम ख़ामोशी को बेहतर नहीं कर सकते।
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मन सपने देख रहा था। और दुनिया इसका स्वप्न थी।
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जब लेखक मरते हैं, वो किताब बन जाते हैं, जो आख़िरकार, कोई बहुत ख़राब अवतार नहीं होता।
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लिखना एक निर्देशित स्वप्न से बढ़कर और कुछ नहीं है।
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कुछ भी पत्थरों पर नहीं बना होता; सबकुछ रेत पर बना होता है, लेकिन हमें ऐसे जरूर बनाना चाहिए कि लगे जैसे रेत ही पत्थर हो।
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तुम जो मुझे पढ़ रहे हो, क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि तुम्हें मेरी भाषा समझ में आ रही है?
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तुम समय को दिन के माफ़िक नहीं गिन सकते, जिस तरह तुम पैसे को डॉलर और सेंट्स की तरह गिनते हो, क्योंकि डॉलर तो सब वही है, जबकि हर दिन एक दूसरे से अलग है, और शायद हर एक घण्टा भी।
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दोबारा एक बार फिर पढ़ना, बस एक बार पढ़ने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।
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मनुष्य की स्मृतियाँ उसके भीतर उसके अपने स्वर्ग को आकार देती हैं।
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एक किताब अपने आप में कोई अकेली चीज नहीं है, यह एक रिश्ता है, ढेर सारे रिश्तों की एक धुरी।
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मुझे लगता है कि पाठक को जो वह पढ़ रहा है, उसे बेहतर बनाना चाहिए। उसे लिखे को गलत समझना चाहिए; उसे उस लिखे को किसी और मतलब में बदल देना चाहिए।
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मैंने धरती के सभी आइनों में देखा है और किसी में मेरा प्रतिबिम्ब नहीं था।
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इस संसार में ऐसा कुछ नहीं है जो रहस्यमयी न हो, लेकिन यह रहस्य एक-दूसरे में की तुलना में कुछ खास चीजों में ही प्रतीत होती है : समुद्र में, बुजुर्गों की आंखों में, पीले रंग में, और संगीत में।
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मैंने हमेशा कल्पना की है कि स्वर्ग एक तरह का कोई पुस्तकालय होगा।
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मैं यकीन से नहीं कह सकता कि यह असल में मेरा अपना अस्तित्व है। मैं वह सारे लेखक हूँ जिन्हें मैंने पढ़ा है, वे सारे लोग जिनसे मैं मिला हूँ, वो सभी औरतें जिनसे मैंने प्रेम किया; वे सारे शहर जहाँ मैं गया।
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जबतक मैं किताबों से घिरा हुआ नहीं, तबतक मैं सो नहीं सकता।
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उन्हें इसका अभिमान करने दो कि उन्होंने कितने पृष्ठ लिखे हैं; मैं उसपर गर्व करूँगा जितने मैंने पढ़े।
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तो अपने बगीचे खुद लगाओ और अपनी आत्मा को सजाओ, नाकि किसी का इंतजार जो तुम्हारे लिए फूल लेकर आए।
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इस दुनिया की मशीनरी, आदमी की सहजता के लिए बहुत ही जटिल है।
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असल सच्ची कविता जोर से बोल के पढ़ी जानी चाहिए। एक अच्छी कविता खुद को धीमी आवाज़ में या चुपचाप पढ़वाना नहीं चाहेगी। अगर हम उसे चुपचाप पढ़ते हैं, तो वह उस तरह वैध नहीं होती: कविता उच्चारण की माँग करती है। कविता को सदैव यह याद रहता है कि वह पहले मौखिक कला थी, लिखित कला होने से पहले। इसे याद रहता है कि सबसे पहले यह गीत थी।
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मेरे पास यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि जिन घटनाओं को मैं बताने जा रहा हूँ, वो प्रभाव थीं या कारण।
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तुम्हारे साथ होना और तुम्हारे साथ न होना, मेरे लिए समय माँपने का यही एकमात्र तरीका है।
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उत्कर्ष कवि-अनुवादक हैं। उनसे yatharthutkarsh@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।