शारदा झाक किछु मैथिली कविता ::

यात्रा

हम की द’ सकैत छियह तोरा
रोटी, कपड़ा, मकान, आस, विश्वास?
भ’ सकैत अछि ई सबटा मात्र बोल होअह तोरा लेल
ढनढनाइत खाली फोकला शब्दक अमार

मुदा जखन हम दैत छियह तोरा
अपन संवेदनाक स्पर्श
आत्मा सँ झहरैत प्रेम
हम नहि दैत छियह किछुओ तोरा

हम ताकि रहल होइत छी तखन
अपन असोथकित विश्वास आ अस्तित्व केँ
ओकर ध्येय, उद्देश्य, उपयोगिता आ मर्म केँ
हम निर्वाह करैत छी मनुख होयबाक धर्मक

तोरा तक पहुँचबाक प्रयास
वस्तुतः यात्रा थीक हमर स्वयं तक पहुँचबाक!!

बीति जयबाक क्रम मे

आगाँ बढ़ि जयबाक बाट पर छी आब
ओहि ठाम जत’ सँ
भेटत अपना केँ देखि सकबाक सौभाग्य ओहिना
जेना हम देखैत छी
बसात मे डोलैत पात
पानि सँ भीजल माटि
गोसाउनिक पूजाक लेल सरिआओल डाला

देखि सकब अपन पदचिन्ह
जे छोड़ि रहल छी कालक देह पर

ओझरायल रहलहुँ अछि
संसारक खेल मे
देखैत रहलहुँ दिवास्वप्न
मुदा कहाँ देखि सकलहुँ
एहि बड़का कैनवास पर
अपन रंगक छाप
कहाँ घोरि सकलहुँ अछि
अन्हार मे इजोरियाक चानन

अछि हमरो अस्तित्व मिज्झर भेल
एहि विशालकाय संरचना मे कतहु
से देखबाक सेहन्ता
जागल अछि आब

देखब ओहिना ओहि गाछ केँ
जे ठाढ़ अछि छाहरिक आशीर्वाद दैत
ओहि बीतल बयस केँ
जे कतेको जन्म सँ
घुरि जयबाक लिलसा अंगेजने अछि
ओहि सम्बन्ध केँ
जकर पुरैनि
एखनहुँ धरि  नहि अछि सुखायल

देखब हम ओहि बाट केँ
जाहि पर सँ बीति रहल छी हम
अहाँक संग ।

अश्लील समाजक मादे

कहबाक अछि किछु हमरा
असभ्य, अनियंत्रित, अश्लील समाजक मादे

साहित्य दर्ज करैत आबि रहल छैक आइ धरि
अपन कालक भासल जाइत इतिहास

शब्दक बुनल जाल सँ पकरैत रहल अछि
घटनाक्रमक पोठी आ भाकुर माँछ

शब्दक अर्थ आब धोखरि गेल छैक
बदलल बुझाइत छैक आखरक स्वभाव

पराकाष्ठा पर पहुँचल अछि अश्लीलता
समय अपना केँ
क’ लेने अछि उघार

बलात्कार सँ अश्लील आ घृणित छैक
ओहि खबरि केँ सुनियो क’
ड्राइंग रूम मे बैसल
चाहक चुस्की लैत ओहि पर चर्च केनाइ

बलात्कारक दंश आ हिंसाक पश्चात
मृत्युक कोरा मे सूतल बेटीकेँ दया देखाक’
विधिक सर्वोच्च मंच द्वारा
न्याय देबाक छुच्छ घोषणा
अश्लील काज छैक

व्यभिचार, दुराचार , भ्रष्टाचार मे संलिप्त भए नीति आ विधिक बात केनाइ छैक अश्लीलता

इंद्रधनुषी रंग मे बोरल कपड़ा पहिरने
मात्र लाल रंगक गुणगान करब भेल अश्लीलता

भरल पेट पर भूखमरिक बात केनाइ भेल पाप
आ दू कौर अन्नक लेल
भुखायल केँ मारि देबाक बात पर चर्च
किन्नहु नै भेल
अश्लीलताक परिधि सँ बाहर

विज्ञानक विकास सँ गर्वोन्नत माथ
आइ दर्प सँ परमाणु युद्धक चेतौनी दैत छैक
कोन परिभाषा सँ ई
अश्लीलता नहि कहाओत

किछुओ नै झाँपल रहैत छैक आब
ने कोनो देहक किछु मोल
ने कोनो विचारक उपयोगिता
ने कोनो वीभत्स योजना

खूजल छै सब किछु बेपर्द भेल
‘लाज’ भ’ क’ रहि गेल अछि
शब्दकोश मे जहल कटैत
आब दूटा आखर मात्र

वात्स्यायनक कामसूत्र
अथवा खजुराहोक मूर्ति देखैत काल
किन्नहुँ नहि नुकाबथु अपन मुंह
हमर नांगट भेल समाजक लोक

धोखरल शब्दक अर्थ सब
घुरि नहि आयत आब कहियो
काल बना रहल अछि अहाँक, हमर, सभक टीपनि
गणना कए हम सब बनब
सबटा पाप आ अश्लीलताक भागी
भोगहि पड़त अपन अपन
अरजल कर्म
हमहूँ छी एहि अश्लील समाजक
एकटा बिषाएल अंग

 इजोत दिस बढ़ैत डेग

जँ हम टूटि -भखरि नहि जाइ
माँटि नहि भ’ जाइ जीवनक दुखक भार सँ
हेरा ने जाइ अकाबोन मे
तकैत एक मिसिया इजोत
जँ बाँचल रहि जाय हमरा मे
अन्यायक विरोध करबाक हुब्बा

तँ मनुष्यतर बनबैत अछि हमरा
वियोगी विरहिणी जीवनक विषाद
तोड़ि दैत अछि हमर हाथक अएना
मुक्त करैत अछि अपन कारा सँ हमर दृष्टि केँ

उदासी जन्म दैत अछि
सब सँ आत्मीय कविता केँ
बाँटल रहैत छैक सुख
मुदा दुख होइत छैक नितांत अप्पन
घोर पीड़ाक क्षण बनि जाइत छैक तखन जीवनक पर्याय

ओ घीचि लैत अछि कने आर अपना दिस
साक्षी बनैत ओकर सोलहो कलाक
आस्वादन करैत नओ रसक
हम होइत छी कने आओर कृतज्ञ

हम जोड़ैत छी अपन घरक खसि पड़ल भीत
बीछि लैत छी निविड़ निशीथ राति मे सिंगरहार
अपन दुखकें टेमी बना
लेसि दैत छियै ओहि मे जिजीविषाक आगि
हम ओरियबैत छी नबका भोर
हम रोपैत छी एकटा गाछ

***

[शारदा झा मैथिली स्त्री कविताक प्रखरतम स्वर छथि. ‘प्रेम कविताक बाद’ शीर्षक सँ हिनक एकगोट मैथिली कविता संग्रह प्रकाश मे छनि. शारदा जी सम्प्रति हैदराबाद मे रहैत छथि आ मैथिली केँ संग-संग हिन्दी मे सेहो लिखैत छथि. हिनक एकगोट हिन्दी काव्य संकलन ‘तेरे ख्यालों की धूप’ सेहो दृश्य मे छनि. हिनका सँ jhasharda@gmail.com पर सम्पर्क संभव अछि. प्रयुक्त छवि अभिषेक मिश्र केँ सौजन्य सँ.]

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